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टी एस एलियट की कविताएँ
बीता हुआ समय और आने वाला समय
जो हो सकता था और जो होता रहा
एक ही सिरे की ओर इशारा करते हैं, जो सदा वर्तमान है।


दो फिलिस्तीनी कहानियां
उसे जब कुछ नहीं समझ आया तो उसने बोतल का ढक्कन हटाया और अंदाज़ से उस जमीन पर पूरा दूध उड़ेल दिया जहाँ वह अपने बच्चे को छोड़कर गई थी


रोक डाल्टन की कविताएँ
मैं तुम्हारा स्वागत करता हूँ कविता
बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आज तुमसे मुलाक़ात के लिए
(ज़िंदगी और किताबों में)
तुम्हारा वजूद सिर्फ़ उदासी के चकाचौंध कर देने वाले
भव्य अलंकरण के लिए ही नहीं


अंधों का देश (अंग्रेज़ी कहानी)
एक अजीब चीज़ है, जो आंख कहलाती है। यह चेहरे पर एक महीन अवसाद रचने के लिए बनी होती है


रॉबर्ट ब्लाय की कविताएँ
कुछ लोग देखते हैं आपको
कुछ लोग कभी ध्यान भी नहीं देते आप पर
कुछ लोग अपने हाथों में लेना चाहते हैं आपका हाथ
कुछ लोग मर जाते हैं रात में




टॉमस ट्रांसट्रोमर की कविताएँ
चर्च के भीतर है एक भिक्षा-पात्र
जो धीरे-धीरे उठता है फ़र्श से
और तैरने लगता है भक्तों के बीच।


मैदान वाला ख़ाली मकान (कोरियाई कहानी)
कौन यक़ीन करेगा कि यह खाली घर कभी खुशियों और स्वर-लहरियों से भरा हुआ था? ऐसी खुशियों से जो शायद आपको सिर्फ़ किसी दंतकथा में ही देखने को मिले। मैदान पर चल रही हवाएँ इसकी गवाह हैं। वे जानती हैं कि सुनसान मैदान में अकेला खड़ा यह यह मकान कभी खुशियों से भरा हुआ था।




सायत नोवा की कविताएँ
एक तिल ने समंदर को शांत किया संवार
एक ने गिरा दी सृष्टि की मीनार
और एक ने ठप्प किया चांदी का बाज़ार
और फिर एक ने ख़ाली की खदान


हॉली मैक्निश की कविता
शहरों के अस्पताल में पटापट मर रहे हैं बच्चे
उलटी-दस्त से पलक झपकते
माँओं का दूध पलट सकता है पल भर में यह चलन
इसलिए अब नहीं बैठूँगी सर्द टॉयलेट की सीटों पर


मौमिता आलम की कविताएँ
उन्होंने किराने का सामान जमा नहीं किया है
उनके पास कल नहीं है
उनके पास आज ही है
वे इक्कीस दिन तक नहीं जीते


क्रिस्टीना पेकोज की कविताएँ
सेब का दरख़्त
जिसे लगवाने में उसने मदद की थी
फलने को तैयार है फिर से


इलेन काह्न की कविताएँ
कला के कठोर शब्द
छुअन की असंभव कारीगरी
यह, यह है तुम्हारा गाल
यहाॅं, यहाॅं है तुम्हारी गर्दन।




युद्ध पर कुछ प्रासंगिक कविताएँ
प्रेसीडेंट से और साथ में मुझसे ज्यादा दुखी
और कोई कैसे हो सकता है भला?




महमूद दरवेश की कविताएँ
हम भी होते अंजीर के वृक्ष की पत्तियां, अथवा एक उपेक्षित मैदान के पौधे ताकि महसूस कर पाते मौसम का बदलना


मोहन सिंह की कविताएँ
बर्फ़ गिर रही है...
पर इस बार इसके फाहे
रुई की तरह,
स्त्री के ओठों की तरह
नर्म, निग्घे और कोमल नहीं हैं


नाई की दुकान (नॉर्वेजियन कहानी)
आखिरकार मैं नाई की दुकान तक पहुँच ही गया। दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हुआ और यह देखकर चकित रह गया कि बीते दिनों में दुनिया कितनी बदल गई
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