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टॉमस ट्रांसट्रोमर की कविताएँ

  • golchakkarpatrika
  • Nov 5
  • 3 min read
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टॉमस ट्रांसट्रोमर की कविताएँ 
अनुवाद : मनोज पटेल

अक्टूबर में रेखाचित्र 


जंग के कारण चकत्ते पड़ गए हैं नाव में

यह क्या कर रही है यहाँ 

समुद्र से इतनी दूर ज़मीन पर?

और यह ठंडक में बुझा हुआ एक भारी लैम्प है.

मगर पेड़ों पर हैं चटकीले रंग : दूसरे किनारे के लिए संकेतों की तरह 

मानो लोग आना चाहते हों इस किनारे पर


घर आते हुए मैं देखता हूँ 

पूरे लाॅन में मशरूम उगे हुए

वे सहायता के लिए फैली हुई उँगलियाँ हैं किसी ऐसे इंसान की 

जो वहाँ नीचे के अँधेरे में 

जाने कब से सिसकता रहा है अपने आप में ही

हम पृथ्वी के रहने वाले हैं।

    

               

बिखरी हुई सभा 


(1)

हम तैयार हुए और अपना घर दिखाया

आगंतुक ने सोचा : तुम शान से रहते हो

झोपड़पट्टी ज़रूर तुम्हारे भीतर होगी।


(2)

चर्च के भीतर, खम्भे और मेहराब 

प्लास्टर की तरह सफ़ेद, जैसे श्रद्धा की 

टूटी बाँह पर चढ़ा हुआ पलस्तर।


(3)

चर्च के भीतर है एक भिक्षा-पात्र 

जो धीरे-धीरे उठता है फ़र्श से 

और तैरने लगता है भक्तों के बीच।


(4)

मगर भूमिगत हो गईं हैं चर्च की घंटियाँ

वे लटक रही हैं नाली के पाइपों में

जब भी हम बढ़ाते हैं क़दम, वे बजती हैं।


(5)

नींद में चलने वाला निकोडमस चल पड़ा है 

गंतव्य की ओर, पता किसके पास है?

नहीं मालूम, मगर हम वहीं जा रहे हैं। 

                  


जोड़ा 


वे बत्ती बंद कर देते हैं और उसकी सफ़ेद परछाईं 

टिमटिमाती है एक पल के लिए विलीन होने के पहले 

जैसे अँधेरे के गिलास में कोई टिकिया और फिर समाप्त

होटल की दीवारें उठते हुए जा पहुँची हैं काले आकाश के भीतर

स्थिर हो चुकी हैं प्रेम की गतिविधियाँ, और वे सो गए हैं 

मगर उनके सबसे गोपनीय विचार मिलते हैं 

जैसे मिलते हैं दो रंग बहकर एक-दूसरे में 

किसी स्कूली बच्चे की पेंटिंग के गीले कागज़ पर

यहाँ अँधेरा है और चुप्पी

मगर शहर नजदीक आ गया है आज की रात समीप आ गए हैं अंधेरी खिड़कियों वाले मकान

वे भीड़ लगाए खड़े हैं प्रतीक्षा करते हुए,

एक ऐसी भीड़ जिसके चेहरों पर कोई भाव नहीं।

                    


पेड़ और बारिश 


एक पेड़ चहलक़दमी करता हुआ बारिश में 

धूसर बारिश में भागता है हमारे बग़ल से

एक काम है उसके पास 

वह जीवन एकत्र करता है 

बारिश में से जैसे बाग़ में कोई श्यामा चिड़िया 


पेड़ भी रुक जाता है बारिश रुकने पर

शांत खड़ा रहता है बिना बारिश वाली रातों में 

और प्रतीक्षा करता रहता है जैसे हम करते रहते हैं 

प्रतीक्षा, उस पल की 

जब हिमकण खिलेंगे आकाश में।

                


घर की ओर


फ़ोन की एक बातचीत छलक गई रात में 

और जगमगाने लगी शहर और देहात के बीच 

होटल के बिस्तर पर करवटें ही बदलता रहा उसके बाद 

सुई की तरह हो गया मैं किसी दिशा सूचक यंत्र की 

जिसे लिए जंगलों से होकर भाग रहा हो कोई दौड़ाक  

धड़धड़ाते हुए दिल के साथ।



हिमपात  


आती रहती हैं अंत्येष्टियाँ 

अधिकाधिक संख्या में 

जैसे बढ़ती जाती है संख्या यातायात संकेतों की 

ज्यों-ज्यों हम क़रीब पहुँचते जाते हैं किसी शहर के


टकटकी लगाए हुए हज़ारों लोग 

लम्बी परछाइयों के देश में


धीरे-धीरे 

एक पुल निर्माण करता है स्वयं का 

सीधा अन्तरिक्ष में।



स्वीडिश कवि टॉमस ट्रांसट्रोमर का जन्म स्टाकहोम में 1931 में हुआ। अब तक उनकी पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं और उनकी कविताओं का अनुवाद 60 से भी अधिक भाषाओं में हो चुका है. 1990 में पक्षाघात से पीड़ित होने के बाद उनकी बोलने की शक्ति और दाहिने हाथ से काम करने की क्षमता जाती रही। वे एक ही हाथ से पियानो बजाते हैं।


दिवंगत मनोज पटेल हिंदी के बेहद महत्वपूर्ण अनुवादक थे। अनुवाद करना उनका जुनून था और उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कवियों का परिचय हिंदी संसार से कराया। उनके असमय निधन ने हिंदी की अपूरणीय क्षति की। यह प्रस्तुति गोल चक्कर की ओर से उनको सादर श्रद्धांजलि है। इन कविताओं को उपलब्ध कराया है कवि-चित्रकार मनोज छाबड़ा ने।

1 Comment


Kumar Arun
Nov 05

शुक्रिया आपका, जो ट्रांस्टोमर की कविताओं को यहां सुलभ कराया.

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