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युद्ध पर कुछ प्रासंगिक कविताएँ
प्रेसीडेंट से और साथ में मुझसे ज्यादा दुखी
और कोई कैसे हो सकता है भला?


कोबायाशी इस्सा के हाइकु
क्योतो में भी,
सुनकर कोयल की कूक,
मुझे क्योतो की याद सताती है।


महमूद दरवेश की कविताएँ
हम भी होते अंजीर के वृक्ष की पत्तियां, अथवा एक उपेक्षित मैदान के पौधे ताकि महसूस कर पाते मौसम का बदलना


मोहन सिंह की कविताएँ
बर्फ़ गिर रही है...
पर इस बार इसके फाहे
रुई की तरह,
स्त्री के ओठों की तरह
नर्म, निग्घे और कोमल नहीं हैं


ली मिन-युंग की कविताएँ
निर्वासन में
एक सड़क
पीछे की ओर जाती है


अनिल चावड़ा की कविताएँ
जिनके पेट में दावानल जला है
ऐसे भूखे लोगों का
स्वाद से भला क्या लेना-देना?


मेरी ओलिवर की कविताएँ
चीज़ें, चीज़ें, कितनी चीज़ें... आग लगा दो इन सब में। जल जाएँ सारी चीज़ें। इन सबको मिला कर जो आग बनेगी, वह कितनी ख़ूबसूरत होगी।


फ़ोरुग फ़रुख़ज़ाद की कविता
जीवन शायद रति के दो क्षणों के मध्य के
मादक विश्राम में सिगरेट का सुलगाना है


लखमीचंद की रागिनियां
पीस पकाकर खिलाना, दिन भर ईख निराना
साँझ पड़े घर आना, गया सूख बदन का खून
निगोड़े ईख तूने खूब सताई रे


जीन-बैप्टिस्ट ताती-लुटार्ड की कविताएँ
आदम के बेटों के सिर पर जंग आ चुका है
और मैं कफ़न ओढ़कर सोऊंगा


तीन विश्व कविताएँ
हवा में
माचिस की तीली
सुलगा कर
उसने देखा
अँधकार किस तरफ़
जा रहा है।


पैट श्नाइडर की कविताएँ
एक खिड़की से ज़्यादा दरियादिल भला क्या है?


फिलिस्तीनी बच्चे : कुछ कविताएँ
हम यहाँ रहते हैं, अपने ही मुल्क के अंदर लेकिन मुल्क से निष्कासित


नाओमी शिहाब नाए की कविताएँ
ख़ुशी पड़ोस वाले घर की छत पर गाती हुई उतरती है
और जब चाहे अदृश्य हो जाती है।
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