कोबायाशी इस्सा के हाइकु
- May 4
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कोबायाशी इस्सा के हाइकु
अनुवाद : पल्लवी व्यास
ओस का यह संसार
ओस सा एक संसार है,
फिर भी, और फिर भी।
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भूल न जाना
हम चल रहें हैं नर्क की आग पर,
फूलों को निहारते।
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यक़ीन! सिर्फ़ यक़ीन!
ओस की बूँदें
बरस रहीं हैं।
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दुःख और दर्द की दुनिया
फूल खिलते हैं
फिर भी।
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चेरी ब्लॉसम
बरसो! बरसो!
इतना कि मेरा पेट भर सकूं।
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चेरी ब्लॉसम की छाँह में
अजनबी नहीं होते
अजनबी।
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इन अंतिम दिनों,
बुरे वक़्त में भी,
खिलते हैं चेरी ब्लॉसम हर जगह।
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करता हूँ कुछ भी स्पर्श
जब करुणा से, आह,
चुभता है जैसे कोई कांटा।
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जाता है
फिर लौट आता है–
एक बिल्ली का प्रेममय जीवन।
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नींद से जागो, बुज़ुर्ग बिल्ली,
और अच्छे से लेकर जम्हाई और अंगड़ाई
चलो राह ए इश्क़।
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जहाँ जहाँ हैं इंसान,
तुम्हें मिलेंगी मक्खियां,
और बुद्ध।
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एक बेहतर दुनिया में
मेरे चावलों पर हक़ तुम्हारा कुछ ज़्यादा होगा
नन्ही मक्खी।
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नदी संग बहती
टहनी पर
एक झींगुर, गुनगुनाता।
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कीट पतंगों में भी–
कुछ गा सकते हैं,
कुछ नहीं।
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क्योतो में भी,
सुनकर कोयल की कूक,
मुझे क्योतो की याद सताती है।
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दूसरी दुनिया में
क्या हम-तुम मौसेरे भाई बहन थे
कोयल?
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एक गौरैया बुन रही है अपना घोंसला
बेख़बर उस पेड़ पर
जिसकी नियति है कटना।
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हर तरफ़ फैली है आग
पंछी भी यही गुनगुना रहें...
"जब भी हो मुमकिन चुनो प्रेम"
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ओ शंबुक!
चढ़ना है फ़ूजी पर्वत,
लेकिन धीरे, धीरे!
अठारहवीं सदी के जापान में जन्मे कोबायाशी इस्सा को हाइकु परंपरा के महान कवियों में से एक माना जाता है। समस्त प्राणियों, मानव और गैर-मानव, के प्रति इस्सा की करुणा, जीवन के प्रति उनके दार्शनिक और काव्यात्मक दृष्टिकोण की पहचान है।
पल्लवी व्यास युवा अनुवादक हैं। गोल चक्कर पर पूर्व प्रकाशित उनके अनुवाद के लिए देखिए : पैट श्नाइडर की कविताएँ
कई साल पहले मैंने पहली बार कोबायाशी इस्सा को पढ़ा और उनके दर्शन का कायल हो गया। कितने कम शब्दों में जीवन की बड़ी से बड़ी बात कह देने का हुनर काश हिंदी कवियों को भी आता।
जीवन और प्रेम को सेलिब्रेट करने के नायाब उदाहरण:
एक बेहतर दुनिया में
मेरे चावलों पर हक़ तुम्हारा कुछ ज़्यादा होगा
नन्ही मक्खी।
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हर तरफ़ फैली है आग
पंछी भी यही गुनगुना रहें...
"जब भी हो मुमकिन चुनो प्रेम"
सहज प्रवाहमान अनुवाद। पल्लवी व्यास तक मेरी बधाई पहुंचा देना भाई। गोलचक्कर अच्छा काम कर रहा है, लगे रहो देवेश।
यादवेन्द्र
प्रभावी क्षण चित्र