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महमूद दरवेश की कविताएँ

  • golchakkarpatrika
  • Apr 12
  • 4 min read

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महमूद दरवेश की कविताएँ
अनुवाद : श्रीविलास सिंह


मैं वहाँ का हूँ


मैं वहाँ का हूँ। मेरी हैं ढेरों स्मृतियां। मैं पैदा हुआ था जैसे हर कोई पैदा हुआ है।

मेरी एक माँ है, एक घर बहुत-सी खिड़कियों वाला, भाई, मित्र, और जेल की कोठरी बर्फ सी ठंडी खिड़की वाली!

मेरे पास है एक लहर सीगुल द्वारा छीन ली गई, मेरी अपनी चित्रमाला।

मेरे पास है एक सघन चारागाह। अपने शब्द के क्षितिज की गहराई में, मेरे पास है चाँद, एक चिड़िया की जीविका, और जैतून का एक अमर वृक्ष।

मैं जिया हूँ इस धरती पर तलवारों द्वारा मनुष्य को शिकार में बदल देने से पूर्व।

मैं वहाँ का हूँ। जब स्वर्ग विलाप करता है अपनी माँ के लिए, मैं लौटा देता हूँ स्वर्ग को उसकी माँ को।

मैं रोता हूँ ताकि एक वापस लौटता बादल ले जा सके मेरे आँसू।

तोड़ने के नियम, मैने सीख लिए हैं तमाम शब्द जो ज़रूरी हैं अग्निपरीक्षा हेतु।

मैने सीखे और खंडित कर दिए सारे शब्द निकालने को उनमें से बस एक शब्द : घर।



इस जगह के बाहर आत्मा के लिए पते 


मुझे पसंद है यात्रा करना…

एक गाँव की जो कभी नहीं टांगता मेरी अंतिम सांझ को अपने साइप्रस के वृक्षों पर। मुझे पसंद हैं वृक्ष जो साक्षी हैं कि कैसे दो पक्षियों ने कष्ट सहे हमारे हाथों, कैसे हमने उठाए पत्थर। 

क्या यह बेहतर न होता यदि हम उठाते अपने दिनों को

धीरे धीरे विकसित होने को और इस हरीतिमा का आलिंगन करने को? मुझे पसंद है बारिश

दूर चरागाहों में स्त्रियों पर। मैं पसंद करता हूँ झिलमिलाते जल को और पत्थर की महक को।

क्या यह बेहतर न होता यदि हम धता बताते अपनी उम्र को 

और और लंबे समय तक ताकते रहते आसमान चंद्रमा के अस्त होने के पूर्व?

इस जगह के बाहर, आत्मा के लिए पते। मुझे पसंद है यात्रा करना 

किसी भी हवा तक… किंतु मुझे नहीं पसंद पहुँच जाना।



इस पृथ्वी पर 


इस पृथ्वी पर हमारे पास वह है जो बनाता है जीवन को जीने योग्य : अप्रैल की हिचकिचाहट, रोटी की महक

भोर में, एक स्त्री का दृष्टिकोण एक पुरुष के बारे में, एशाइलस के नाटक, शुरुआत

प्रेम की, पत्थर पर की घास, बाँसुरी की आह और आक्रांताओं के डर की स्मृतियों में जीती माँएं।

इस पृथ्वी पर हमारे पास वह है जो बनाता है जीवन को जीने योग्य : सितंबर के आख़िरी दिन, एक महिला

रसीला बनाए रखती हुई अपनी खुबानियों को चालीस के बाद, बंदीगृह में धूप का एक घंटा, एक बादल प्रतिबिंबित करता 

प्राणियों के झुंड को, उनके लिए लोगों का ताली बजाना जो सामना करते हैं मृत्यु का मुस्कराहट के साथ, गीतों के प्रति एक तानाशाह का भय।

इस पृथ्वी पर हमारे पास वह है जो बनाता है जीवन को जीने योग्य‌ :  इस पृथ्वी पर, महान धरती 

माँ समस्त आदि और अंत की। उसे कहते थे फिलिस्तीन। उसका नाम बाद में हो गया

फिलिस्तीन। मेरी प्रिय, क्योंकि तुम हो मेरी प्रिय, मैं योग्य हूँ जीवन के।




हमें अधिकार है पतझड़ को प्रेम करने का 


और हमें भी है अधिकार पतझड़ के अंतिम दिनों को प्रेम करने का और पूछने का : 

क्या जगह है मैदान में एक नए पतझड़ के लिए, ताकि हम भी पड़े रहें अंगारों की भांति?

एक पतझड़ जो रंग देता है अपनी पत्तियों को सोने से।

यदि हम भी होते अंजीर के वृक्ष की पत्तियां, अथवा एक उपेक्षित मैदान के पौधे ताकि महसूस कर पाते मौसम का बदलना !

काश हम भी कभी न कहते अलविदा बुनियादी बातों को

और प्रश्न करते अपने पिताओं से जब वे भाग गए खंजर की नोक पर। 

कविता और ईश्वर का नाम रहम करे हम पर !

हमें है अधिकार भर देने का गर्माहट से सुंदर स्त्रियों की रातों को, और उस बारे में बात करने का जिसने छोटी कर दी रात कुतुबनुमा तक पहुँचने को उत्तर की प्रतीक्षा करते दो अजनबियों की।

यह पतझड़ है। हमें है अधिकार सूंघने का पतझड़ की गंध को और रात्रि से स्वप्न मांगने का।

क्या स्वप्न भी, ख़ुद स्वप्न देखने वालों की भांति, दुखी करते हैं? पतझड़। पतझड़।

हमें भी है अधिकार मरने का जैसे भी हम चाहें।

धरती छिपा ले स्वयं को गेहूँ की एक बाली में !



अंतिम रेलगाड़ी रुक चुकी है


अंतिम रेलगाड़ी रुक चुकी है आख़िरी प्लेटफॉर्म पर। कोई नहीं है वहाँ गुलाबों को बचाने हेतु, न ही फाख्ता बैठने को शब्दों से बनी स्त्री पर।

समय का अंत हो चुका है। कविता का असर नहीं होता झाग से अधिक।

मत विश्वास करो हमारी रेलगाड़ियों का, प्रिय। मत प्रतीक्षा करो भीड़ में किसी की।

अंतिम रेलगाड़ी रुक चुकी है आखिरी प्लेटफॉर्म पर। किंतु कोई नहीं बना सकता नर्सिसस का प्रतिबिंब पीछे रात्रि के दर्पणों पर।

कहाँ लिख सकता हूँ मैं देह के अवतरण की अद्यतन कथा?

यह अंत है उसका जिसका अंत निश्चित था ! वह कहाँ है जिसका होता है अंत?

मैं कहाँ स्वतंत्र कर सकता हूँ स्वयं को अपनी देह में मातृभूमि से?

मत विश्वास करो हमारी रेलगाड़ियों का, प्रिय। उड़ गई अंतिम फाख्ता।

अंतिम रेलगाड़ी रुक चुकी है आख़िरी प्लेटफॉर्म पर। और कोई नहीं था वहाँ।






1941 में जन्मे महमूद दरवेश फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधी साहित्य के इस सबसे बड़े कवि माने जाते हैं। महमूद दरवेश बचपन से ही फ़िलिस्तीनियों पर इज़रायली अत्याचारों के मुखर विरोधी रहे। 1970 में इन्हें विश्व प्रसिद्ध 'लोटस' पुरस्कार और 1983 में 'लेनिन शान्ति पुरस्कार' मिला। सैकड़ों विदेशी भाषाओं में इनकी कविताओं के अनुवाद हो चुके हैं। 12 अगस्त 2008 को अमरीका में हृदय-सर्जरी के दौरान देहान्त।


श्रीविलास सिंह वरिष्ठ कवि, गद्यकार एवं अनुवादक हैं। हमारे पटल पर उनका पूर्व प्रकाशित काम देखने के लिए क्लिक करें :केन का मेमना 






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