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युद्ध पर कुछ प्रासंगिक कविताएँ

  • golchakkarpatrika
  • May 9
  • 4 min read





युद्ध पर कुछ प्रासंगिक कविताएँ
अनुवाद : यादवेंद्र


अज्ञात सैनिक

              —अब्दुल्ला पेसिऊ 

                  (कुर्द कवि)


यदि अचानक बाहर से कोई आए

और मुझसे पूछे :

यहाँ कहाँ है अज्ञात सैनिक की क़ब्र?

मैं कहूँगा उससे :

आप किसी भी नदी के किनारे चले जाएँ

आप किसी भी मस्जिद की बेंच पर बैठ जाएँ 

आप किसी भी घर की छाया में खड़े हो जाएँ 

आप किसी भी चर्च की दहलीज़ पर कदम रख दें

किसी कंदरा के मुहाने पर 

किसी पर्वत की किसी शिला पर 

किसी बाग़ के किसी वृक्ष के नीचे

मेरे देश में

कहीं भी किसी कोने में 

निस्सीम आकाश के नीचे कहीं भी—

फ़िक्र मत करिये बिल्कुल भी 

थोड़ा सा नीचे झुकिए 

और रख दीजिये फूलों की माला 

चाहे कहीं भी.....


************



जिस ज़माने में अमेरिका इराक पर आक्रमण कर रहा था, उस समय बहुत सारे बुद्धिजीवी कवि लेखक अमेरिकी सरकार की युद्ध समर्थक उन्मादी नीतियों के विरोध में खड़े थे और उन्होंने मिलकर एक वेबसाइट 'पोएट्स अगेंस्ट द वार' बनाई थी जिस पर युद्ध विरोधी कवियों की रचनाएँ आती थीं। प्रस्तुत कविता में कवयित्री रॉबिन टर्नर तब के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की पत्नी लॉरा बुश के साथ एक सैनिक की माँ का संवाद दर्शाती है। 



कैसा दुःख

           —रॉबिन टर्नर 


क्या आपको एहसास है कि अमेरिकी अवाम

कितना दुखी और आक्रांत है?


लॉरा बुश : हाँ, मुझे बख़ूबी एहसास है...

और आप यक़ीन मानिये

प्रेसीडेंट से और साथ में मुझसे ज़्यादा दुखी और कोई

कैसे हो सकता है भला...ये सब देखकर?



डियर मिसेज बुश...डियर लॉरा...

आप नाराज़  तो नहीं हो जाएंगी यदि मैं आपको बस

लॉरा कहकर बुलाऊँ?

हम दोनों स्त्रियाँ हैं तो हैं- दोनों ही माँ भी हैं

और दोनों टेक्सास की ही रहनेवाली हैं....

हम दोनों एक ही बोली बोलती हैं

और हमारी मातृभाषा भी एक ही है

क्या आपको एहसास है कि अमेरिकी अवाम

कितना दुखी और आक्रांत है?


सुबह-सुबह

मैं कपड़े पर इस्तरी कर रही थी

तभी आपका इंटरव्यू देखा

अपने छोटे बेटे की उस कमीज़  पर इस्तरी...

जो उसके भैया की ही तरह होने के कारण

उसको ज्यादा अजीज़  है...

उसका भैया अब कभी लौटकर नहीं आएगा घर...

वह मारा गया इराक में


प्रेसीडेंट से और साथ में मुझसे ज्यादा दुखी

और कोई कैसे हो सकता है भला?


मन में आया आपको अंदर बंद रखनेवाले

सुरक्षा कवच  को तोड़ डालूँ

और आप यूँ ही मेरी किचन में बैठी रहें

जब तक मेरे कपड़ों की इस्तरी पूरी न हो जाए...

बस केवल आप और मैं

और बतियातें रहे औरतों वाली तमाम बातें

मैं अपने दिल की बातें कहूँ आपसे...

कि अब ये किस कदर टूट चुका है— बातें कुछ भी करें

और बातें सब कुछ की...छोटी से छोटी बात भी

जैसे महज़ एक शब्द

या मेरे बांके पति के सजीले चेहरे पर

बेटे की मौत की घुटी हुई पीड़ा की...

मैं आपको बताऊँ कि...

कैसे आँसू बन गये हैं हमारी ज़ुबान अनजाने ही

और दिन भर की बातचीत से इस भारी नदी को अलहदा करना

हमारे लिए मुमकिन नहीं हो रहा अब...


वहाँ गुमसुम पड़ी किचन में बस हम दो ही तो रहेंगे

आप और मैं...

ऐसा हो सकता है कि बतकही में मुझे ये सुध ही न रहे

कि दरअसल मैं तो इस्तरी कर रही थी

और बस नाक की सीध में ही अपलक देखती रह जाऊँ

आज सुबह की तरह....

संभव है शर्ट को जलाती हुई प्रेस पर

मेरी छोड़ आपकी निगाह ही पड़ जाए...

आपको छेद दिख जाए जो शर्ट में बना है नया

बिल्कुल अभी-अभी… या आपका ध्यान खींच ले

अनायास उठता हुआ धुंआ

इससे ज़्यादा दुःख भला किसके कंधे टिका होगा?

लॉरा, आप मेरा यक़ीन करें....।


************



प्रख्यात अमेरिकी कवि और कम्युनिस्ट संगठनकर्ता रे ड्यूरेम ( 1915 - 1963) ने लगभग पिचहत्तर साल पहले यह मार्मिक कविता लिखी थी जो वैसे तो अमेरिका के अश्वेत आंदोलन का लगभग घोषणा पत्र मानी जाती रही है.... पर यह परमाणु विभीषिका की निष्ठुर और गैर पक्षपाती भूमिका को भी बड़ी पारदर्शिता के साथ प्रस्तुत करती है :



असली बराबरी

        —रे ड्यूरेम 


जानते हो जोए 

जानते हो जोए, बड़ी मज़ेदार बात है !

सारा जीवन तुम मुझको लेकर परेशान रहे 

डर था कि कहीं मुझे भी नौकरी न मिल जाये तुम्हारे साथ 

फ़िक्र थी कि मुझे भी कहीं उसी टेबल पर न बैठा दिया जाये 

जिस पर बैठते  हो तुम

तुम्हें हरदम भय सताता रहा :

कहीं मैं प्यार न कर बैठूँ तुम्हारी बहन को 

या क्या पता, चाहने लगे वह ही मुझे .....  

कभी तुमने चाहा नहीं कि मैं खाने बैठूँ संग तुम्हारे 

वह भी अगल-बगल? 

कहीं ऐसा हो न जाए... जोए 

पर उस एटम बम का क्या करोगे, जोए?

लगता है मरूँगा तो मैं तुम्हारे संग ही...

बिलकुल असह्य अन्याय लगता है न तुम्हें?

है न जोए?

कालों को मारने के लिए अलग बम होना चाहिए,

तुम्हारे हिसाब से गोरों जैसा तो बिलकुल नही?

पर लगता है मरूँगा तो मैं तुम्हारे संग ही।





यादवेंद्र वरिष्ठ अनुवादक हैं। उनसे अधिक परिचय के लिए पढ़ें : नाई की दुकान, फिलिस्तीनी बच्चे : कुछ कविताएँ, मेरी ओलिवर की कविताएँ






2 תגובות


हिमांशु जमदग्नि
09 במאי

अंतिम कविता ♥️

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कुमार मुकुल
09 במאי

मार्मिक कविताएं

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