top of page


विधान गुंजन की कविताएँ
कुम्हार का घर चलाने में
उन पत्थरों का भी योगदान रहा,
जिनकी वजह से
अक्सर फूट जाया करते थे
मटके


हिमांशु विश्वकर्मा की कविताएँ
जान हथेलियों पर रख
पहाड़ पर अगर
बन्दूक़ से
भालू मार गिराना है
तो ढलान की तरफ़
भागना होगा


आदित्य चंद्रा की कविताएँ
कुछ दिन तक रहा दरख़्त
धीरे-धीरे शाम ढली
और होती गई वृद्ध
कलरव के इंतज़ार में लद गयी कई शामें,
दरख़्त की चीखों से


शिवम तोमर की कविता
छोटी-छोटी सफ़ेद गोलियाँ
असंख्य विचारों के विचरण को करतीं निस्तेज
बन जाती हैं विशालकाय आलोकित हाथ
और खींच लेती हैं डूबते चित्त को


जनमेजय की कविताएँ
मेरे जन्म से पूर्व
ब्रह्माण्ड एक बिन्दु भर था
और बचपन में ही
गणित की पुस्तक में
मैंने पढ़ लिया था :
एक बिन्दु से अनंत रेखाएं गुज़र सकती हैं


शिवांगी पांडेय की कविताएँ
मकान यूँ ही गिरता रहा
मेरे अंग यूँ ही छिलते रहे
और मैं रक्त से पोस्त के बीज चुनकर
कराहती हुई
उन्हें अपने बग़ीचे में बोती रही


ज्योति रीता की कविताएँ
जीवन जो उन्हें देखते हुए जिया जा रहा था—
अब बस अंधेरा है…
कहाँ से आएगी कोई रोशनी
क्या कोई खिड़की खुलने की उम्मीद अब भी बची है


योगेंद्र गौतम की कविताएँ
मुझे मौसमों के बदलने से याद आती
लंबी कहानियां
जिनमें मिट जाता अंतर
बुढ़िया के चेहरे और वर्षावनों का


मौमिता आलम की कविताएँ
उन्होंने किराने का सामान जमा नहीं किया है
उनके पास कल नहीं है
उनके पास आज ही है
वे इक्कीस दिन तक नहीं जीते


खेमकरण ‘सोमन’ की कविताएँ
हमेशा होश में लिख
कदम बढ़ाकर जोश में लिख
आँखों में आँखें डालकर लिख
ख़ुद को थोड़ा उबालकर लिख


हिमांशु जमदग्नि की कविताएँ
यहाँ हर रात काल गश्त लगाता है
खा जाता है उन सृपों के सर
जो कोतवाल के ख़िलाफ़ जाने वाले थे


सुधीर डोंगरे की कविताएँ
आज अचानक उसे स्मृत हो आयी स्नानागार की वह दीवार जहाँ वह रखकर भूल आयी थी अपने कुंवारेपन का झीना लिबास।




सुमन शेखर की कविताएँ
बहुत आसानी से गुम हो जाती है हँसी
हवा मे डूब जाती है कोई चीख
हमारी देह क़ब्र का स्पर्श लिए फिरती रहती है


रुपेश चौरसिया की कविताएँ
मैंने नींद में धोखे से
ख्वाब देख लिया था
नींद ऐसे टूटी जैसे किसी ने
ज़ोरदार तमाचा लगाया हो


अमित तिवारी की कविताएँ
चारों तरफ़ सतत निर्माण की खट-खट
बीच-बीच में नारे और रैलियाँ
कुछ भी ठीक से उबाल नहीं उठा पाता


जय प्रकाश सिंह की कविताएँ
वह मानती थी कि हर अच्छी चीज़ को खिलना ही चाहिए
कि हर अच्छी चीज़ वितरित होनी चाहिए




शिवांगी गोयल की कविताएँ
बेटियाँ अंतिम संस्कार के दिन आ पाती हैं
अपने ससुराल से लौटकर
बस अंतिम प्रणाम कर पाती हैं
और माँ के साथ बैठकर रो पाती हैं।


bottom of page
%20(3).png)

