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योगेंद्र गौतम की कविताएँ

  • golchakkarpatrika
  • 13 minutes ago
  • 2 min read


समसामयिकी 


समय के फूहड़ नृत्य और बेसुरे आलाप के बीच 

जीवन एक भद्दे कहकहे में बदल चुका है 

सांसें लेने जितनी मुश्किल शर्त शायद ही किसी दौर में रही हो! 

या फिर हर दौर की अपनी विवशताएं थीं 

अपने हत्यारे 

अपने लड़ाके 

और अपने कायर (?)



यूँ ही 


मैं नींद को स्वप्न में याद करता था

नदी को प्यास में 

और तुम तक जाने वाले सभी रास्ते मुझे समंदर में याद आते थे 

तुम्हारे मुझ तक पहुँचते पत्र भीग जाते 

बादलों से पीठ टिकाए 


मुझे मौसमों के बदलने से याद आती 

लंबी कहानियां 

जिनमें मिट जाता अंतर 

बुढ़िया के चेहरे और वर्षावनों का 

चेहरे की झुर्रियों और पत्तों की शिराओं में 

गूंजता जीवन का संगीत 


जीवन निकलता उन कठिन घाटियों से 

जिनसे पराजयों तक जाते युद्धों की राह में खड़े होते पर्वत सीना तान कर

जीत पर, जबकि

यूँ ही कोई मुस्कुरा देता 

हवा में सिक्का उछाल कर।



केदार चोटी से प्रिया को आवाज़ 


किसी एक क्षण 

असंगत हो जायेगी सभी सोच

किसी एक क्षण सोचना भी अपना नहीं रहेगा 

किए हुए से हो जाऊंगा असंपृक्त 

किसी क्षण मैं भी न रहूंगा मेरा 

तुम आना उस क्षण

मेरी होने, 

क्या होओगी मेरी 

                    — हे तुम!



तुम्हीं में 


एक संपूर्ण जीवन सामने है 

एक अंधियारे जन्म की स्मृति के बाद 


जीवन की तीखी, चमकदार तलवार के नीचे 

सुस्ता लेता हूँ दो घड़ी ठंडी मीठी छांह 


तुम्हारे वक्ष पर धूं-धूंकर

जलती मेरी ही चिताएं हैं


तुम्हीं में रिसता हूँ बूंद-बूंद।



चेहरे 


जीवन जीते हुए उसके अनेक अनुभवों के बीच 

मेरे पास हर हो चुकी घटना के 

कई विकल्प मौजूद थे 

और कई चेहरे।

मैं रच रहा था कई जीवन 

किसी एक जीवन के समानांतर।

अनुभव और यथार्थ के बीच 

बहुत झीनी अनगिन परतों से होकर 

मेरी आयु हर घटना में अलग समयखंड से होकर बीतती 

कुछ सेकंड, सप्ताह या साल के बीच 

कुछ नहीं बचता था

जो बचता था, वह मैं 

मिनट, माह और मुल्क की सीमाओं से दूर 

दिन की परिधि पर।

— शाश्वत।



योगेंद्र गौतम युवा कवि हैं। विगत कई वर्षों से साहित्य से जुड़ाव। भावात्मक अभिव्यक्ति हेतु स्वतंत्र लेखन। अनुवाद में भी रुचि। विभिन्न वेब पत्रिकाओं में प्रकाशन।


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