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शिवांगी पांडेय की कविताएँ

  • golchakkarpatrika
  • Jul 25
  • 2 min read

Updated: Dec 4

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शिवांगी पांडेय की कविताएँ


(1)


आज एक आदमी ने

एक चींटी

कुचल दी


अच्छा ही हुआ


चींटी बहुत से बहुत बढ़ जाती तो कितना बढ़ जाती?

रेत के एक कण से

थोड़ी बड़ी

और दो कणों से

थोड़ी छोटी


कुचले जाने के बाद

चींटी उस आदमी के बूट से चिपक गई


अच्छा ही हुआ


अब चींटी दुनिया घूम लेगी

जीवित वह बहुत से बहुत करती तो क्या करती?

अपने जैसी कई सौ चींटियों के संग 

मिलके एक बांबी बनाती 

फिर लोगों की जूठन और 

अपने ही जैसे

कीड़े-मकोड़े के शव वहाँ खींच कर लाती 

और बाक़ी चींटियों संग मिलकर खाती


फिर एक दिन एक मनमौजी बच्चा आता  

और खेल-खेल में बांबी उजाड़ देता

इसके बदले सौ चींटियाँ बेचारे को काट खातीं 

उस बच्चे के सुकोमल शरीर पर लाल चकत्ते भर आते


अच्छा हुआ कि 

रेत के एक कण से ज़रा बड़ी

और दो कणों से ज़रा छोटी 

वह चींटी आज कुचल दी गई।



(2)


वह जो मेरे मकान के मलबे पर बैठा है

वह यथार्थ है

और कल्पना?

कल्पना बगीचे में है

पोस्त के बीज के साथ 


जो मुझे अपने रक्त में मिला था 

तब जब मकान की पहली गिरती दीवार ने 

मेरे गाल को छील दिया था


मैं उसे उठाकर 

दर्द से कराहती हुई 

बाहर बग़ीचे में गई 

और उसे ज़मीन में बो आई


मकान यूँ ही गिरता रहा 

मेरे अंग यूँ ही छिलते रहे 

और मैं रक्त से पोस्त के बीज चुनकर 

कराहती हुई

उन्हें अपने बग़ीचे में बोती रही


एक दिन 

इस निरंतर रक्तचक्र से

निढ़ाल हो मृत्युशय्या पर

लेट जाने पर 

मुझसे मिलने एक कवि आया


कवि ने 

मुझसे बहते रक्त को-

जो अब सूखकर महक रहा था-

बरसात की उपमा दी 

हमारे सड़ते हुए अंगों को 

खाद की 

और ख़ाली पड़े बग़ीचे को 

पृथ्वी की


अब मृत्यु पश्चात

मैं कवि हूँ 

और मेरी वर्षों पुरानी कराह 

कविता है


अब मेरी मृत्यु 

केवल सुंदर नहीं 

सुंदरतम है


मेरी चिता पर आग नहीं लहकती 

उससे सर्दी की धूप निकलती है 

उसमें चारु, चंचल किरणें 

अठखेलियां करती हैं


अब 

मैं उन सभी कविताओं की 

मुख्य नायिका हूँ 

जो मेरे रक्त और ध्वंस भरे 

जीवन तक कभी नहीं आईं


अब 

यथार्थ कल्पना का कारोबारी है 

और मैं 

लौटना चाहती हूँ 

वापस उस टूटते हुए मकान के पास 


और दोबारा सींचना चाहती हूँ 

उस पोस्त के बीज को

लहू से नहीं, पानी से

ताकि मेरी कल्पना सार्थक हो सके 


और मैं अपने दर्द से कराहने को 

एक बार केवल कराहना कह सकूँ 

कविता में नहीं 

सरल सीधे वाक्य में।



शिवांगी पांडेय एक प्रतिभाशाली युवा कवयित्री हैं। उनकी कुछ कविताएँ पोषम पा पर पढ़ी गई हैं।

2 Comments


Vinita. Badmera
Dec 08

बहुत सुंदर। कविताएं हैं। बधाई

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नीरज
Dec 04

अच्छी कविताएं।

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