जय प्रकाश सिंह की कविताएँ
- golchakkarpatrika
- Mar 31
- 2 min read

जय प्रकाश सिंह की कविताएँ
एक
शिकायतों से भरे लोगों के लिए
बसंत एक उदास राग भर है
मौसम ने तापमान की संवेदनशीलता को
नकार सा दिया है
महसूस होता है कि
इस बसंत मेरी उम्र थोड़ी बढ़ गई है
और भी पीले पड़ गए है,
किताबों में दबे प्रेम-पत्र
एक अलसाई-सी हवा बह रही है
झर रहे हैं, सूखे पत्ते
हवाओं में टंगे है
पतझड़ के सारे प्रतीक
थोड़ी दूर
सरसों के खेत में
बच्चों की हमजोली
जो ताली पीट कर हँसे जा रही है
एक नन्हा बच्चा दौड़ रहा है
तालियाँ बजाते हुए,
वे बच्चे बसंत के अग्रदूत हैं
वे बच्चे ही बसंत की उम्मीद हैं।
दो
गाँव में मेरी नानी थी,
जो सबसे पहले बसंत की आहट पहचान लेती थी
और बिखेर देती थी
अपने इर्द-गिर्द क्यारियों में
फूल, फल, सब्ज़ियों के बीज
वहाँ धनिए की गंध फैली होती थी
वह दाना डालती थी
चिरई, चुरमुनों को
वह अक्सर कहती थी—
इस धरती पर तुम्हारा हक़ उतना ही है
जितना अन्य जीव-जंतुओं का...
नानी की दुनिया में लौटना मानो
बचपन की सबसे मधुर स्मृतियों को
उसी त्वरा में जीना था और
महसूस करना था फिर से
मिट्टी, पानी, और प्रकृति को
वह मानती थी कि हर अच्छी चीज़ को खिलना ही चाहिए
कि हर अच्छी चीज़ वितरित होनी चाहिए
वह हिस्सेदारी वाली परम्परा की अंतिम प्रतिनिधि थी।
तीन
इस साल भी
पूरी वर्षा नहीं हुई
और खलिहान में नहीं हुआ
मनमाफ़िक धान
इस साल भी नहीं आया
आम में पर्याप्त बौर
इस साल भी महुआ के कोटरों में
नहीं लौटे गहरे हरे देशी-सुग्गे
और इस साल भी
उस लड़की की शादी नहीं हुई
उसके बेरोज़गार युवा-प्रेमी से
इस साल भी नहीं बदला गया
गाँव की बुढ़िया दादी के चश्मे का फ्रेम
और इस साल भी नहीं आया तुम्हारा कोई संदेश
इस साल भी यह बसंत यूँ ही बीत रहा !
चार
प्रेम की भाषा से महरूम
सभ्यताएँ
अक्सर युद्ध में पड़ जाती है..
गुलाब के फूल पकड़ने में
थरथराने वाले हाथ
बंदूकों पर सख्त हो जाते हैं..
प्रेमगीत गुनगुनाते होंठ
करने लगते हैं, युद्धघोष
एक घायल फाख्ता उड़ जाती है
और एक नन्हा बच्चा डरकर
अपना कान बंद कर लेता है...
देखना,
एक दिन
आलिंगन पर आक्रमण को
तरजीह देने वाली सभ्यताएँ ही
अंत की इबारत लिखेंगी।
जय प्रकाश सिंह की कविताएँ एवं आलेख हिन्दीस्थान, उम्मीदें, पहली बार तथा समकालीन जवाबदेही इत्यादि जगहों पर प्रकाशित हो चुके हैं।
ईमेल : jps4582@gmail.com
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बहुत प्रभावशाली रचना।