शिवम तोमर की कविता
- golchakkarpatrika
- Jul 30
- 2 min read

एंटी-डिप्रेसेंट
(1)
बर्बरीक की भाँति अपना निद्राविहीन सिर
इन गोलियों को अर्पित करता हूँ
क्योंकि मेरी जागृति तय नहीं कर सकती
कि असमाप्त विचारशीलता और शयन-कामना-
कौन अधिक ताक़तवर है
मैं चेतना का छिन्न साक्षी
निहारता हूँ रासायनिक शिखरों से
युद्ध जिसमें मैं भाग नहीं ले सकता।
(2)
छोटी-छोटी सफ़ेद गोलियाँ
असंख्य विचारों के विचरण को करतीं निस्तेज
बन जाती हैं विशालकाय आलोकित हाथ
और खींच लेती हैं डूबते चित्त को
अंधेर सागर से
छोटी-छोटी सफ़ेद गोलियाँ
छुटा-छुटा कर फेंकती हैं
परजीवी कुंठाओं को
शिराओं में उद्वेलित ज्वार
एक समंदर
एक गोली के घुलने मात्र से
हो गया है शांत झील
एक अंधेरी दुनिया का पटाक्षेप
मृतप्राय नींद जीवित हो उठती है
जैसे मरुस्थल में खिलता एक फूल
लेकिन क्या हो सकेगा कल
यह सब पुनरावर्तित?
या इन गोलियों को बोना होगा हर बार
इस नींद से बंजर चित्त में
नींद, क्या ये गोलियाँ तुम्हारा नैवेद्य हैं?
(3)
नींद, तुम्हारी स्वायत्तता कहाँ है?
क्या तुम्हें नहीं आता तरस
हाशिए पर खड़े जीवन पर?
किसके लिए है तुम्हारी प्रतिबद्धता?
जवाब देने की बजाय
अपने नागपाश में जकड़ रही हो मुझे
बेशर्म।
(4)
भारी भरकम नींद है
जैसे पलकों पर रख दिया गया पहाड़
हज़ार नींदे एक साथ आईं हैं
जिन्हें हज़ार रातों खोजा था खुली आँखों से
जम्हाई बनती जा रही है एक नई भाषा
जिस में हैं दो ही शब्द
'नींद' और 'निढाल'
मेरे मानस
तुम जो दुनिया भर की ग़ैर-ज़रूरी चीज़ों पर
तुरुप के पत्ते की तरह फेंकते थे मेरी नींद
आज क्यों पड़े हो, पस्त?
(5)
अंतस की शहतीरों से उल्टा लटका एक बेताल
क्षितिज की सियाह दीवारों पर प्रक्षेपित करता है
सिल्विया, सेक्सटन और मायकोव्स्की के जीवन के अंतिम चलचित्र
और प्रश्नांकित करता है आत्महत्या की नैतिकता
उत्तर की खोज में मैं पहुँचता हूँ तो बस
एक औषधीय संवेदनहीनता तक
जहाँ जीवन को ख़तरे में डालने वाली हर चीज़
न्यायोचित है, और मृत्यु एक राहत
इस अस्थाई अनस्तित्व में ज़रा देर ठहर कर
मुझे लौटना होगा उस सघन-सतम अरण्य में
जिसका अलक्षित आदि एवं अंत मेरे ही भीतर है
जहाँ विन्यस्त हैं एक जैसे कई बेताल
अनुत्तरित, असंतुष्ट एवं अविनष्ट।
(6)
यथार्थ में होते दैहिक अतिस्वेदन से अनभिज्ञ
औषधि-निर्मित स्वप्न-भ्रमों में
एक वाष्पशील यूटोपिया के भीतर उकड़ूँ बैठा
सूखता हुआ
निहारता हूँ स्मृति की मिथ्या
उठता हूँ
दरकने की सीमा से एक पग पहले
मराठवाड़ा के जैसी सूखी जिह्वा लिए।
शिवम तोमर युवा कवि-लेखक एवं अनुवादक हैं। वह द्विभाषी वेब पत्रिका पोयम्स इंडिया के संस्थापक-संपादक हैं। उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। वह ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में रहते हैं। ईमेल : shivamspoetry@gmail.com
%20(3).png)





'मृतप्राय नींद जीवित हो उठती है
जैसे मरुस्थल में खिलता एक फूल'
यह बिम्ब लंबे समय तक
नींद आने पर सुकून देता रहेगा और
नींद न आने पर Haunt करता रहेगा।