रुपेश चौरसिया की कविताएँ
- golchakkarpatrika
- Apr 8
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रुपेश चौरसिया की कविताएँ
एक
हमने अपेक्षाओं की पीठ पर
उगाए हैं रिश्ते
प्रयोजन का तापमान गढ़ता है
इसकी परिभाषा
संदेह
रिश्तों की गर्दन पकड़कर
गहराइयों में उतारता है,
स्वार्थ बालों से खींचकर
उन्हें सतह पर ला पटकता है।
पेड़ों की कमी से नहीं
धरती झुलसेगी
प्रेम की कमी से एक दिन
दो
‘नहीं’ की अस्वीकृति
पसरती रहती है पूरी देह में
दिन पर दिन
क्रोध और विक्षोभ
के रूप में जन्मती है
पर ग्लानि नहीं उगी अब तक
मेरी आवाज़ मेरी प्रेयसी तक पहुँचती
मगर मेरे दंभ से टकराकर लौट आई।
तीन
मैंने नींद में धोखे से
ख्वाब देख लिया था
नींद ऐसे टूटी जैसे किसी ने
ज़ोरदार तमाचा लगाया हो।
एक चुटकी ख्वाब के लालच में
मेरा अपहरण हो गया।
लोग मुझे टूटी हुई चप्पल की तरह
छोड़ गए बीच सड़क पर हर बार
मेरी ऑंखों में इतनी धूल झोंकी गई
कि मुझे हर रंग स्याह दिखता है
चार
मेरे पापा रोज़ रोटी में थोड़ा-सा
ज़हर मिलाकर दिया करते थे खाने में
लोगों को लगता है कि
मेरी मौत नाम को जन्म देने वक़्त
प्रसव पीड़ा से हुई।
मेरे नाम के सिर से ज़हर
किसी गीत से नहीं उतरेगा
वह ज़हर उतारने वाली काकी का
चादर ओढ़कर निकलता है बाजार में
वह रोज़ ईमानदारी की गाली खाता है।
अगर अनाथ को अनाथ न कहो
तो नाजायज़ होने का डर बढ़ जाता है।
पाँच
किताबों को घोलकर
मैंने कंठ में छुपा रखा है शिव की तरह
पर मेरे कंठ में छेद है
मैं मरूंगा रोज़ धीरे-धीरे
जिस बरस ज्यादा मरूॅंगा
उस बरस ज्यादा पूजा होगी मेरी
मैं अपनी संतान को
इसी दरिया में डूब जाने का श्राप दूॅंगा
मैं एक चम्मच विष पीता हूॅं रोज़
मैं अपने बेटे को तीन चम्मच पिलाऊॅंगा।
चमगादड़ की तरह लटकी है शिक्षा इस देश में।
रूपेश चौरसिया खगड़िया, बिहार से हैं। इससे पहले कुछ पत्रिकाओं (सदानीरा, Poems India) में इनकी कविताऍं प्रकाशित हो चुकी हैं। ईमेल : chaurasierupesh123@gmail.com
एक जीवंत कविता, एक अलग ही मनोदशा, सही एवं तर्कसंगत कल्पना, वाकई बहुत खूब 🙏🙏
प्रिय रूपेश
तुम्हारी कविता पढ़कर बहुत खुशी हुई! यह वाकई में बहुत सुंदर और प्रभावशाली है। तुम्हारी कल्पना, शब्दों का चयन, भावनाएं बहुत अच्छा लगा।
तुमने अपनी भावनाओं और विचारों को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है। तुम्हारी रचनात्मकता और लेखन कौशल कमाल का है।
इस शानदार कविता के लिए तुम्हें बहुत-बहुत बधाई! मुझे उम्मीद है कि तुम आगे भी ऐसे ही बेहतरीन रचनाएं लिखते रहोगे।
तुम्हारा दोस्त....... अभिषेक केशरी
Bht mst hai bs aise hi likhte raho 😁
Bohot badhiya rupesh bhai
गजब की प्रतीकात्मकता। नए बच्चे अच्छा कर रहे हैं।