वृद्ध स्त्री की त्चचा (जापानी कहानी)
- golchakkarpatrika
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मूल कहानी : आओ ओमाये
अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह
मुझे सदैव से सुंदर कहे जाने से घृणा थी। मुझे देखकर जो भी ऐसा कहता, मुझे ऐसा लगता मानो जो कुछ भीतर है उसका कुछ भी महत्व नहीं है। इनमें से कोई भी वास्तव में मुझे नहीं देखता है। मैं महसूस करती रह जाती कि जैसे वे मुझे बस एक अच्छे चेहरे वाली गुड़िया मानते हैं और मुझसे उसी तरह का व्यवहार भी करते हैं। एक बार मैंने किसी से यह कहने का प्रयत्न भी किया कि मुझे इससे घृणा है। और तब उसका जवाब था, “हुँह ? क्या यह बड़बोलापन नहीं है?” मैं स्तंभित सी रह गयी। ऐसा हाईस्कूल के समय हुआ था। तब से मैंने किसी से अपनी अनुभूतियों के बारे में कुछ नहीं कहा। मैं कह नहीं सकती थी। इसलिए जब मुझे एक वृद्ध महिला बनने के लिए आमंत्रित किया गया, मैं खुश थी।
“वाह! आश्चर्यजनक।”
जो कुछ भी उसने कहा उसके बावजूद, यूरी कुछ कुछ प्रभावित सी लग रही थी, तब जब हम एक ख़ास अवलोकन बिंदु से, जहाँ हम रुके हुए थे, तदामी नदी को देख रहे थे। पहाड़ों पर के वृक्ष बर्फ़ से ढँके हुए थे और सम्पूर्ण परिदृश्य एक श्वेत मैदान जैसा हो रहा था। एक रेलगाड़ी तदामी नदी के पुल पर से घाटी को पार करती हुई गुज़र रही थी। मैंने शांत अवलोकन बिंदु पर हमारे चारो ओर कैमरों के शटर क्लिक होने की आवाज़ें सुनी। ढेरों लोग पहाड़ों के सौंदर्य, नदी, और रेलगाड़ी को एक साथ एक फ़ोटोग्राफ़ में उतारने के लिए इस क़स्बे में आया करते थे। कभी-कभी पहाड़ों के बीच से गुज़रता कुहरा दृश्य को और भी अलौकिक बना देता था।
यद्यपि मैं दृश्य की सुंदरता से अभिभूत थी, पर यूरी की आवाज़ के ठंडेपन ने मुझे परेशान कर दिया। मैं मिशिमा, जहाँ मैं बड़ी हुई थी, वहाँ से बाहर जा रही थी। मुझे काम के सिलसिले में टोक्यो स्थानांतरित कर दिया गया था और यूरी मुझे अपनी कार से फ़ूकूशीमा स्टेशन तक छोड़ने जा रही थी। मैं और यूरी इस पूरे समय मिशिमा में एक साथ रहे थे। क़स्बा तदामी नदी के किनारे फ़ूकूशीमा प्रांत के पश्चिमी हिस्से में स्थित था। मैं वहीं पैदा हुई थी लेकिन यूरी प्रारम्भिक विद्यालय के दौरान सिजुओका से वहाँ आयी थी। स्पष्टतः वह अलग-थलग महसूस करती थी क्योंकि वह फ़ूकूशीमा की बोली नहीं बोल पाती थी। मैं पहली थी जिसे उसने मित्र बनाया। आप क़स्बे में हमारी उम्र के बच्चों को उँगलियों पर गिन सकते थे, इसलिए यूरी और मैं अक्सर मिशिमा के वार्षिक कार्यक्रमों में एक साथ भाग लेते थे। यदि मैं एक क्षण के लिए भी आँख बंद करती, उस समय, जो मैंने उसके साथ व्यतीत किया था, के तमाम दृश्य मस्तिष्क में आ जाते।
यूरी बीमार हो जाया करती है - ऐसा अक्सर होता है - क्योंकि वह कुट्टू के आटे का बना बहुत सारा नूडल्स खाती थी और नवम्बर में नव सोबा उत्सव के दौरान उसे पेट दर्द हो गया था। यूरी साइनोकामी - जनवरी में अच्छे स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए मनाये जाने वाले अग्नि समारोह की ऊँची लपटों के प्रति इतनी अधिक उत्साहित रहती थी कि अब जब हम बच्चे नहीं रहे थे तब भी, वह उछल कूद रही होती। वसंत के काटाकूरी सकूरा त्योहार के क्षण, जहाँ विभिन्न अवाक कर देने वाले फूलों के रंग - पुष्पित लिली, आकाश को ढके चेरी ब्लोसम - विचित्र और उस जगह से परावर्तित प्रकाश द्वारा निर्देशित, यूरी के गालों पर चमकते हुए टंके रहते। एक बार जब मैं वहाँ से चली गयी, कुछ समय के लिए मैं वे सारी चीज़ें नहीं देख सकूँगी। यूरी मिमिशा टाउन हाॅल में काम करती थी। एक दिन उसने मुझे स्पष्ट रूप से कहा कि जब मैं टोक्यो में रहूँगी, उसे मेरी कमी महसूस होगी। मुझे भी उसकी कमी महसूस होगी। लेकिन यह नौकरी थी, इसलिए ऐसा कुछ नहीं था जो मैं इस सम्बन्ध में कर पाती। साथ ही मैं नहीं कह सकती थी कि मैंने टोक्यो के जीवन को एक मौका देने का कभी भी नहीं सोचा था। फ़ूकूशीमा स्टेशन के रास्ते में कार में बैठे हुए हमने मुश्किल से कोई बात की थी, जो कि असामान्य था। फ़ूकूशीमा और टोक्यो की दूरी… यह सिंकेनसेन से मात्र दो घंटे का सफ़र था। मैं थोड़े समय में ही वापस आ सकती थी। ऐसा नहीं था कि हम सदैव के लिए अलग हो जाते। फिर भी दो भिन्न जगहों पर रहना दुखद होता। मैं उसके साथ इस समय का आनंद उठाना चाहती थी। एक तरह से अजीब माहौल को आशापूर्ण तरीक़े से ठीक करने हेतु मैंने पूछा, "क्या तुम किसी हॉट स्प्रिंग पर रुकना चाहती हो?"
"निश्चय ही," उसने बस इतना ही कहा और गाड़ी के पहिए मोड़ दिए।
त्सुचियू ओन्सेन अंजुमा पर्वतों के मध्य बना हुआ एक हॉट स्प्रिंग रिसॉर्ट है। यह विभिन्न आपदाओं से प्रभावित होता रहा है — न केवल 2011 के भूकंप और सुनामी, बल्कि अराकावा नदी द्वारा तट तोड़ने और यदि और पीछे जाएँ तो भीषण आग लगने से भी — लेकिन हर बार, यहाँ के मजबूत निवासियों ने नए आधार पर फिर से पुनर्निर्माण कर पुनः अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रयास किए। उनकी प्रसिद्ध कोकाशी गुड़ियों और उनके विशाल चेहरों को दर्शाने वाले, अराकावा-ओहाशी पुल की बग़ल में लगे, आगंतुकों के लिए स्वागत संकेतक कुछ कुछ साहसी प्रतीत हो रहे थे।
“वाह्ह्ह्ह…. मममम.....”
जब यूरी स्नानागार में गयी, उसने आनंद की उसाँस ली। उसके अंग-प्रत्यंग गाड़ी चलाने से थक चुके थे और वह एकदम पसर गयी। जब मेरे मुँह से एक “आह” निकली, यूरी की “मम्म” की आवाज ने उसे आच्छादित कर लिया और हम दोनों उसी प्रकार आराम से कुछ देर आहें भरते पड़े रहे। मैं प्रसन्न थी। हम दोनों के चेहरों पर प्राकृतिक मुस्कराहट थी।
“हम एक दूसरे को कॉल कर सकते हैं,” यूरी ने कहा। “और हम मैसेज भेज सकते हैं, और फिर वीडियो चैट। ठीक। ऐसा कुछ नहीं है कि हम बिलकुल दूर कर दिए जा रहे हैं।”
“हुह?” मैं हँसी।
मैंने अपनी चीजें पहले ही टोक्यो में अपने अपार्टमेंट में भेज दी थीं। मेरे माँ-बाप ने कहा था कि वे चाहते थे कि मैं किसी समय मिशिमा वापस आऊँ, लेकिन मैं जानती थी कि गुप्त रूप से वे दोनों चिंतित थे कि मैं अपने बीस के दशक के मध्य में थी और अभी भी उनके ही साथ रह रही थी। मुझे एकमात्र तकलीफ यूरी को छोड़कर जाने की थी लेकिन ऐसा लग रहा था कि यह भी ठीक ही रहेगा। चीजें जिस तरह से गुज़र रहीं थीं, लग रहा था, हमारे लिए भी मुस्कराहट के साथ एक दूसरे से अलग होना संभव होगा। जो भी हो, मैंने यही सोचा था।
हमारे पास अभी भी वक़्त था, इसलिए हमने उसका फायदा उठाने और ओनसेन हापिंग पर जाने का निर्णय लिया। हर स्नान के पश्चात् हमें और अधिक आराम महसूस हो रहा था और हमें इतना आनंद मिल रहा था मानो हम उन स्वतंत्र दिनों की ओर चले गए हों जब हम युवा विद्यार्थी थे। जब मैं गुनगुने पानी में अपने उनींदेपन का आनंद ले रही थी, मुझे अकस्मात् भान हुआ कि यूरी मुझे ताक रही थी।
“क्या?”
“तुम वास्तव में बहुत सुन्दर हो, क्योको। तुम कितनी सौभाग्यशाली हो। मुझे पक्का यक़ीन है तुम टोक्यो में भी प्रसिद्ध हो जाओगी।”
मेरे भीतर घृणा बढ़ने लगी और मेरी देह ठंडी पड़ गयी।
मैं जानती थी कि उसका मतलब अच्छा था। किन्तु ऐसा लगा जैसे वह भूल गयी थी कि, हाईस्कूल के दिनों से ही, मुझे इस तरह की बात से कितनी घृणा होती थी। यदि मैं उसे अभी यह स्मरण दिलाती, मुझे पता था, कि वह वातावरण नष्ट हो जाता जो बना पाने में हम सफल रहे थे, इसलिए मैं कुछ नहीं कह सकती थी। मैंने गर्मी लगने का सा अभिनय किया और स्नानागार से बाहर आ गयी। आश्चर्य करते हुए कि यह घृणा कहाँ से आयी, मैं बर्फीले ओनसेन रिसॉर्ट में इधर उधर भटकती रही। जब लोग - यूरी भी - मेरे लिए ‘सुन्दर’ और ‘प्रसिद्ध’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, मुझे महसूस होता है कि मैं उसी में तिरोहित हो गयी हूँ, मानो मुझे उस पिंजरे में कैद कर लिया गया है - दुनिया मुझे जैसा होते देखना चाहती है। और जैसे कि, मैं जो हूँ उस तथ्य को जानबूझ कर भुलाया जा रहा है।
अपने स्कूल के दिनों में, थोड़े समय के लिए मुझे उन पुरुषों से डर लगता था जो मुझसे बात करना चाहते थे क्योंकि मुझे लगता था कि वे मुझे केवल सेक्स अथवा रोमांस की किसी वस्तु के रूप में देखते थे। अभी भी जब मैं किसी लिफ्ट में होती हूँ अथवा रात में किसी सड़क पर किसी आदमी के साथ अकेली होती हूँ, मैं स्वयं में सिमट सी जाती हूँ।
अपने सामने की ओर, मैंने ढेरों चहरे देखे, कोकेशी। एक उपहार गृह में प्रदर्शन हेतु सजी गुड़िया, सभी मेरी ओर देखती हुई, लाइन से लगी हुई थीं। त्सुचियू कोकोशी अपनी सादगी के लिए प्रसिद्ध थी। उनकी लम्बी छरहरी देह बहुत अधिक सजावटी नहीं होती थी, लेकिन सामानांतर रेखाएं होती थी जिन्हें रोकुरोसेन कहा जाता था। कुछ एक कोकेशी गुड़िया मेरे माँ-बाप के घर भी सजावट के लिए लगी थी, प्रवेश द्वार और तातामी कक्ष (बैठक) में। जब मैं छोटी थी, वे मुझे आकर्षित करती थी। उनकी मुस्कराती हुई ऑंखें उन चीजों के आरपार देखती हुई सी प्रतीत होती थीं जिन्हें वे देख रही होती थीं। मुझे पक्का विश्वास था कि यदि मैंने कुछ ग़लत किया, तो कोकेशी रात को भयंकर सजा देने आएंगी। किन्तु अब इस क्षण उनकी दृष्टि काफी कुछ विश्वसनीय सी लगती थी। कोकेशी के देखने से मुझे लगता था जैसे मेरी शक्ल का कोई खास महत्त्व नहीं था। मैंने वह पहली गुड़िया ख़रीद ली जिससे मेरी दृष्टि टकराई। यूरी को स्नानागार में समय लगता दिख रहा था। मैंने उसे मैसेज किया लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए मैंने कोकेशी को अपने बैग में रखा और चलती रही।
लम्बी सीढ़ियों के ऊपर शोतोकू ताइशी-दू स्थित था। वहाँ पर लगा संकेतक बता रहा था कि लगभग 1400 वर्ष पूर्व राजकुमार शोतोकू ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु अपनी मूर्तियों के साथ राजदूत पूरे देश भर में भेजे थे। इनमें से एक राजदूत बीमार पड़ गया। तब राजकुमार की मूर्ति उसके सपने में प्रगट हुई और उसने उससे कहा “शिनोबुन गुन के त्सुचियू में एक गर्म पानी का स्रोत है; ठीक होने के लिए वहाँ जाओ। तुम निश्चित रूप से उपचारित हो जाओगे।” यह गर्म जल स्रोत खोदने के पश्चात और ठीक होने के लिए स्नान करने के पश्चात, अपने स्वप्नों में प्राप्त निर्देशों का पालन करते हुए राजदूत ने मूर्ति की स्थापना हेतु इस हाॅल का निर्माण कराया। हुह, मैंने सोचा। जब मैंने अपने फोन में देखा, मुझे शोतोकू ताइशी दू पूरे देश में ही महसूस हुआ। किन्तु त्सुचियू ओनसेन में स्थित यह अन्य जगहों से भिन्न था, क्योंकि यह लकड़ी से निर्मित था और इसमें राजकुमार शोतोकू की 16 वर्ष की आयु वाली मूर्ति स्थापित थी।
याकुशी कोकेशी दू ताइशी दू के मैदानों में स्थित थी। कुछ वर्ष पूर्व तक वे कोकेशी गुड़ियों की स्मृति में एक उत्सव का आयोजन किया करते थे। ऐसी कोकेशी जिनके मालिकों की मृत्यु हो गयी होती थी और जिन्हें रखने, देखभाल करने वाला कोई नहीं होता था, यहाँ इकठ्ठा की जाती थीं। यह संभवतः उनका मानवीय चेहरा होता था जो उनसे मुक्त हो पाना इतना मुश्किल बना देता था।
मैं बचपन में एक बार इस जगह आयी थी। मेरी दादी की मृत्यु हो गयी थी और मैं अपने पिता के साथ उनकी प्रिय कोकेशी गुड़िया को यहाँ छोड़ने आयी थी। अपने जीवन के बिलकुल अंतिम दिनों में वे अक्सर अपनी कोकेशी को मेरे नाम से पुकारती थीं। तुम कितनी प्यारी हो लड़की, कितनी प्यारी लड़की हो, वे कहती थीं। तुम एक प्यारी लड़की हो इसलिए तुम पकड़ ली जाओगी और तुम्हारा बड़ा भयानक परिणाम होगा... जब मैं उन्हें देखने अस्पताल गयी, वह इस तरह बात कर रही थीं मानो उनकी स्मृतियाँ उस पूरी जगह में व्याप्त हों, लेकिन मैं सोचती हूँ, संभवतः वे मेरे लिए चिंतित थीं। जिस समय मैं कोकेशी दू छोड़ कर, थोड़ा भावुक महसूस करते हुए वापस लौटी, प्रार्थना के घंटे के सामने एक वृद्ध महिला खड़ी हुई थी। वह झुकी हुई थी और उसकी एक भी पेशी गतिशील नहीं थी--- उस बिंदु तक कि मुझे वह सब विचित्र सा लगा।
चिंतित हो कर मैंने पूछा, “ओह, आप ठीक तो हैं?” जाड़े के दिनों में भी गर्मी लगने अथवा निर्जलीकरण का खतरा संभव था।
वह बिना कुछ कहे मेरी ओर मुड़ी। मुस्कराते हुए वह एक कोकेशी की भांति सीधी खड़ी हो गयी। उसने मुझे थोड़ा सा मुस्कराते हुए ऐसी आँखों से देखा जो सब कुछ देखती हुई सी लग रही थी। फिर उसने कहा, क्या तुम एक वृद्ध महिला बनना चाहोगी ?
***
जब मैंने अभिलेखागार का द्वार खोला, मुझे उसमें से धूल की गंध जैसी महक आयी। वह इतना अधिक दमघोंटू था कि आपको उस स्थान को सम्यक रूप से हवादार करने हेतु दर्जनों एयर कंडीशनर्स की आवश्यकता होती। आलमारियों की पंक्तियाँ छत तक ऊँची थी, किसी पुस्तकालय के शेल्फों की भांति और उन सबमें फाइलें ठुंसी हुई थीं। मैंने एक-दो को खोलने का प्रयत्न किया लेकिन उतने से ही बस हो गयी। बिलकुल वैसे ही, जैसा कि मेरे बॉस ने धुंधली सी मुस्कराहट के साथ कहा था, अलमारियों में काग़ज़ात बिना किसी कालक्रम अथवा अन्य किसी व्यवस्था के यूँ ही ठूंसे हुए थे। आहा हा हा ! मैंने उस पर आश्चर्य किया कि हर चीज क्यों इस तरह अव्यवस्थित पड़ी हुई थी।
मेरा स्थानांतरण इनहाउस न्यूज़लेटर अनुभाग में किया गया था जो केवल टोक्यो मुख्यालय में ही था। हमें कंपनी की स्थापना की पचासवीं वर्षगांठ मनाने हेतु एक पुस्तिका तैयार करनी थी। वास्तव में मुख्यालय के वरिष्ठ कर्मचारी इसे तैयार करने वाले थे किन्तु उनमें से एक पीठ की तकलीफ के कारण वह पिछले हफ्ते अस्पताल में भर्ती हो गया था। जबकि कुछ अन्य लोग, जो लॉकर की व्यवस्था देख रहे थे, उनके पास उस पर गबन का संदेह करने के कारण थे। फुजीसाकी, मुख्यालय का एक कर्मचारी, जिसके साथ मैंने तब काम किया था जब मैं फुकुशिमा में थी, ने मुझे बताया कि अफवाह थी कि कंपनी के अध्यक्ष ने इन हाउस न्यूज़लेटर अनुभाग के वरिष्ठ सदस्यों को इस सम्बन्ध में गुप्त जाँच का काम सौंपा था। यह व्यक्ति मेरी ही उम्र का था, बहुत अधिक मुस्कराता था, और अपनी गप्पें हाँकने की आदत के बावजूद काफी हद तक स्पष्टवादी था, इसलिए उसके आसपास होने पर मुझे स्वयं को संकुचित कर लेने की आवश्यकता नहीं महसूस होती थी।
फुजीसाकी ने मुझे यह कहानी पूर्वाभास के रूप में बताई थी। यह तब हुआ था जब मैंने अभिलेखागार को व्यवस्थित कर दिया था, फाइलों को खोजने हेतु ठीक से छाँटकर क्रम से लगा दिया था, लंच कर लिया था और उसका साक्षात्कार ले रही थी।
चूँकि मेरे अनुभाग का हर व्यक्ति बहुत व्यस्त था, मुझे भी न्यूजलेटर पर काम करने को कहा गया था। मैं बाहर कहीं के एक कर्मचारी का “इस माह का ग्रामीण इलाक़े का साथी कामगार” काॅलम के लिए साक्षात्कार लेने में अटकी हुई थी। मैंने जिस पहले व्यक्ति से बात की वह फुजीसाकी था।
“वैसे, इस काॅलम का क्या मतलब है?”
“हाँ, मुझे भी हमें “ग्रामीण इलाक़े का साथी कामगार” कहलाना कुछ ख़ास अच्छा नहीं लगता।”
“वैसे क्या तुम्हें पता है कि अभी इन हाउस न्यूज़लेटर अनुभाग वाले लोग इतने व्यस्त क्यों लग रहे हैं?”
जब मैंने कहा, “नहीं, क्यों?” तो फुजीसाकी मुझे उस व्यक्ति के बारे में बताने लगा जिसकी पीठ की मांशपेशियों में तकलीफ़ हो गयी थी।
थोड़ा-बहुत इधर-उधर की बातचीत के पश्चात मैंने उससे, पहले से तैयार प्रश्नों की लिस्ट के पश्चात, पूछा कि उसे अपने गृहनगर के सम्बन्ध में क्या पसंद था, उसे टोक्यो क्यों पसंद था, मुख्यालय में काम करना कैसा था, उसका विभाग कैसा था, वह अपनी वर्तमान उम्र में कंपनी के सम्बन्ध में कैसा अनुभव करता था, वह अगले दस वर्षों में कैसा होना चाहता था, इत्यादि इत्यादि।
साक्षात्कार के पश्चात् मैं अभिलेखागार में वापस चली गयी, थोड़े डर के साथ सोचती हुई कि कितना तकलीफदेह होगा यदि यह सब मुझे लिखना भी पड़ा। मुझे अब भी बेसमेंट में घुसे हुए, हरेक से दूर, अपना साधारण काम करते रहना बहुत आरामदायक लगता था। हमने एक खाली मुलाकात कक्ष को साक्षात्कार के लिए प्रयोग किया था लेकिन जब मैंने विक्रय विभाग में फुजीसाकी के बारे में पता करने को झाँका तो मैंने सबको वही आम लोगों वाली बातें करते हुए पाया कि पिछली रात की सामूहिक पार्टी कैसी थी, किस किस विभाग के किस किस को कितने पॉइंट मिले और उन्होंने क्या किया। वह सब मुझे थका देने हेतु पर्याप्त था। उसके मुकाबले बेसमेंट में रहना ओनसेन में रहने जैसा आरामदायक था। काग़ज़ के आपस में रगड़ने की बहाव जैसी निरंतर आवाज़ लगभग गर्म जल की धारा की ध्वनि की भांति सुनाई पड़ने लगी थी।
अकस्मात, मुझे आश्चर्य होने लगा कि यूरी क्या कर रही होगी।
मैंने एक चैट एप्लिकेशन खोली और उसे एक हॉरर फिल्म की टिकट भेजी जो उसे पसंद थी।
फिर मैं काम करने लगी, लेकिन बाद में अपराह्न में मेरे फोन में मैसेज की घंटी बजी।
यह संदेश फुजीसाकी का था। क्या तुम डिनर पर चलना पसंद करोगी? मैंने थोड़ी देर सोचा, फिर उत्तर दिया, खेद है, मुझे अभी आने के बाद का अपना सामान खोलकर व्यवस्थित करना है।
काम के बाद, मैं किचिजोजी में स्थित अपने स्टूडियो अपार्टमेंट में वापस चली गयी। मैं खुश थी कि उसके पास में ही एक बड़ा सा पार्क था। मैंने इनोकाशिरा पार्क की ओर के एक कमरे का चुनाव किया था लेकिन मेरी कंपनी द्वारा किराये में मदद के बावजूद टोक्यो के अपार्टमेंट बहुत महंगे थे। मैं इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कर सकती थी, सिवाय लम्बी साँस लेने के।
मेरे नए कमरे में मेरी कोकेशी और वृद्ध महिला की त्वचा मेरी प्रतीक्षा में थी। त्वचा उस वृद्ध स्त्री ने दी थी, जो मुझे याकुशी कोकेशी दू के बाहर मिली थी, जब मैं फुकुशिमा छोड़ रही थी।
“यह त्वचा तुम्हारी रक्षा करेगी।” उसने मुझसे कहा था।
“हुह? त्वचा? आप कह रही हैं मुझे यह त्वचा पहननी चाहिए?”
“नहीं, नहीं,” वह अपना सर हिलती हुई हमारी बोली में बडबड़ाई और मुझे धूसर रंग का सिकुड़ा सा गट्ठर थमाने के पश्चात् आश्चर्यजनक गति से एक तरफ़ भाग गयी। ठीक उसी समय मैंने यूरी को, जो ऊपर आ गयी थी, पुकारते सुना। इसलिए मैंने त्वचा जल्दी से अपने बैग में ठूंस ली। मैंने अभी भी उसे नहीं पहना था — क्योंकि टोक्यो में अपने घर में आने के पश्चात् मैंने जो पहला काम किया था वह यह था कि मैंने उस त्वचा को धोकर सूखने के लिए फैला दिया था।
अब मेरे शयनकक्ष में एक हैंगर पर पड़ी त्वचा एकदम गीली नहीं लग रही थी। यह उससे अधिक कोमल थी जितनी मैंने अपेक्षा की थी, और इतनी अच्छी और साफ-सुथरी थी कि जैसे अभी-अभी किसी व्यक्ति से उतार ली गयी हो।
एक क्षण की हिचकिचाहट के पश्चात् मैंने निर्णय लिया कि मैं उसे अपने पूरे शरीर पर कस कर पहनना चाहूंगी, और फिर मैंने उसे पहन लिया।
दर्पण में देखते हुए मैं स्तंभित रह गयी - क्योंकि स्वयं को वृद्ध महिला की त्वचा में देखना उतना अजीब नहीं था। यह पूरे शरीर पर कस कर पहने गए जैसा कुछ नहीं था। बल्कि यह कुछ ऐसा था जैसे कि मैं वृद्ध हो गयी थी और थोड़ा-थोड़ा कर के इस स्थिति में आयी थी। इस बात के बावजूद कि त्वचा मुझे किसी और से प्राप्त हुई थी, जब मैंने दर्पण में वृद्ध महिला को देखा, मैंने सोचा यह मैं हूँ। त्वचा का ढीलापन, मेरे चहरे को आच्छादित करते उम्र के चिन्ह, मेरी आँखों के चारो ओर फुलझड़ियों की तरह झुर्रियों का स्फोट, अपेक्षाकृत पतले और भूरे रोम - सभी कुछ मुझे मेरे जैसे लगे। जैसे वृद्ध महिला की त्वचा मेरी त्वचा को स्वयं में अवशोषित कर के मेरी देह पर बिलकुल सही से फिट होने हेतु उसमें आत्मसात हो गयी हो। मैंने अपने अंगों और चहरे की पेशियों को गतिशील करने का प्रयत्न किया। उसके कुछ समय पश्चात, मुझे कुछ पीड़ा होनी महसूस होने लगी। सब कितना वास्तविक था। मैं चकित रह गयी। यह पीड़ा थी जिसने मुझे यह सोचने को प्रेरित किया कि जब मैं वृद्ध हो जाऊँगी, मेरे जोड़ बिलकुल इसी भांति पीड़ा देंगें।
मैं अतिउत्साहित हो गयी और मैंने कुछ तस्वीरें ली। मैंने कुछ टोनर उड़ेले और त्वचा पर कुछ मेकअप करना चाहा। मैं इनकार नहीं कर सकती कि मेरी चौबीस साल की शक्ल एक वृद्ध महिला के चहरे से मिलती सी नहीं लग रही थी, लेकिन उसमें कुछ ग़लत नहीं था और इस बात ने मेरे आत्मविश्वास को बढ़ावा ही दिया। यद्यपि मैं नहीं सोचती थी कि त्वचा को अधिक समय तक पहने रखना अच्छा विचार था, यह ध्यान में रखते हुए कि मेरे जोड़ कितनी कमजोरी महसूस कर रहे थे। मैंने मेकअप के तरह तरह के ढंग आजमाए और अलग-अलग मुद्राओं में और अलग-अलग कोणों से सेल्फी ली। हो सकता है यदि मैं अपनी वृद्ध महिला के रूप में ली गयी सेल्फी पोस्ट करती हुई एक मीडिया एकाउंट शुरू करती, तो वह बहुत लोकप्रिय होता।
मेरे फोन पर सन्देश की घंटी बजी।
‘तुम कल की छुट्टी में क्या कर रही हो ? क्या तुम मिलना पसंद करोगी?’ सन्देश फुजीसाकी का था।
क्या वह मुझे डेट पर ले जाने के लिए पूछ रहा था?
मैं वृद्ध महिला की त्वचा पहने हुए बाहर चली गयी।
यह हमारे तय समय से आधे घंटे बाद का समय था लेकिन वह वहाँ था, इनोकाशीरा पार्क में उस जगह मेरी प्रतीक्षा करता हुआ जिस जगह मिलने का हमने निर्णय किया था। लेकिन जिस ‘मुझ’ को वह जानता था वह नहीं आने वाली थी, मैं अपनी वृद्धावस्था के प्रतिरूप में नज़र आ रही थी।
मैं धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ी, उसके ठीक सामने लड़खड़ाने का अभिनय सा करती हुई, और गिर पड़ी।
“मैम, आप ठीक तो हैं?” उसने मुझे उठाते हुए कहा।
यह सब योजनानुसार था।
मैं फुजीसाकी से घृणा नहीं करती थी। यह ठीक-ठीक इसलिए था क्योंकि मैं उससे घृणा नहीं करती थी। अगर वह मुझे इस तरह देखता था जैसे कि मुझमें सबसे महत्वपूर्ण चीज मेरा चेहरा और शक्ल ही थी, तो मुझे जो नुकसान होता वह काफी बड़ा होता। मैं इस बात का पता लगाना चाहती थी, इसलिए संयोग सा प्रदर्शित करते हुए मैं एक बूढ़ी स्त्री के रूप में उसके करीब चली गयी।
मैं एक वृद्ध महिला थी, इसलिए कोई सौंदर्य, कोई असुन्दरता नहीं थी। बहुत से लोग एक अल्पकाय वृद्ध महिला के लिए सावधानी त्याग देते हैं। चूँकि मैं वृद्ध थी, इसलिए वह वास्तविक ‘मैं’ देखेगा और मुझे अपना वास्तविक ‘आत्म’ दिखायेगा। ये मेरे विचार थे।
“तुम्हें असुविधा हुई इसके लिए खेद है,” मैंने अपनी खरखराती आवाज में कहा। मेरा गला भी वृद्ध जैसा हो गया था।
हत्तेरे की। मैंने बाहर साँस छोड़ी। बाहर एकदम ठीक तापमान होने के बावजूद मुझे घबराहट के कारण पसीना आ रहा था।
फुजीसाकी ने पुनः पूछा कि मैं ठीक तो थी।
“क्या तुम किसी की प्रतीक्षा कर रहे हो? तुम्हें मेरे लिए चिंता नहीं करनी चाहिए।”
“नहीं, नहीं। मैं कुछ देर आपके साथ रहूँगा। क्या आपको चोट लगी है ? यदि ज़रुरत हुई तो मैं आपको पास के किसी क्लीनिक तक ले चलूँगा।”
“यह तुम्हारी मेहरबानी है।”
“नहीं, किसी को भी इतना तो करना ही चाहिए।”
“तुम्हारी उम्र कितनी है ?”
“ मैं? मैं चौबीस का हूँ।”
“ओह! उसी उम्र के जिस उम्र की मेरी पोती है।”
उत्तेजित सी होकर चिल्लाते हुए कहने के पश्चात मैंने उसे एक बनी बनाई कहानी सुनाई।
मेरी एक पोती है और वह इस बात से घृणा करती है जब मैं उसे बताती हूँ कि वह कितनी सुन्दर है। मैंने उससे कहा कि किस तरह यह मुझे, दादी को, समझ में नहीं आता कि इसमें परेशान होने की क्या बात थी।
“ऐसा इसलिए हैं कि….” फुजीसाकी ने अपने शब्द सावधानी से चुने ताकि वृद्ध महिला समझ सके। “निश्चय ही जब आप ऐसा कहती होंगी आपका आशय अच्छा रहता है लेकिन दुनिया में बहुत सी पीड़ादायक चीजें हैं… किसी को सुन्दर कहना या न कहना उस पर एक लेबल लगाने जैसा है, इसलिए ऐसा हो सकता है कि जब आपकी पोती यह सुनती हो तो वह महसूस करती हो कि लोग सोचते हैं मानो वह आकर्षक होने अथवा विवाह करने मात्र के लिए ज़िन्दा है। मेरा मतलब है, मुझे निश्चित रूप से नहीं मालूम है। मैं आपकी पोती नहीं हूँ और कोई भी किसी चीज को अपने कारणों से नापसंद करता है।” फुजीसाकी सदैव ही तेजी से बातें करता था जैसा कि विक्री विभाग के लोग करते होते हैं, किन्तु इस बार उसने निश्चित रूप से अपने शब्दों का चयन सावधानी से किया था, इस बात का ध्यान रखते हुए कि किसी की भावनाएं न आहत हों।
“आह !” मैंने वास्तविकता का भान होने पर कहा। त्वचा के नीचे मैंने फुजीसाकी के बारे में बेहतर महसूस किया। हो सकता है, वह औरों सा विषमय न हो। इस एक बात ने मुझे खुश कर दिया।
उसके पश्चात दो और अवसरों पर मैं उससे ‘स्वयं’ के रूप में मिलने में असफल रही और उससे वृद्ध महिला के रूप में मिली।
मेरी चाची की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थी और मुझे उन्हें देखने जाना पड़ा था….
फिर मेरे चाचा के साथ दुर्घटना घट गयी थी और मुझे उन्हें देखने जाना पड़ा था......
मैं वे सन्देश जब हम मिलने वाले होते उसके ठीक पहले भेजा करती थी और उसका जवाब होता, “समझ गया। अपना ध्यान रखना।”
दोनों ही कारण झूठे थे लेकिन उसने एक वयस्क व्यक्ति की भांति व्यवहार किया और ‘वृद्ध’ मुझको यह नहीं देखने दिया कि वह इस कारण निराश था कि ‘युवा’ मैं नहीं आ रही थी।
“हम फिर मिलेंगे।” वह मुस्कराया और रेड बीन का उपहार जो न जाने कहाँ की वृद्ध महिला ‘मैंने’ उसे पिछले दिन के लिए धन्यवादस्वरूप दिया; उसने उसे तत्काल वहीं खा भी लिया। जब मैंने यूँ ही पूछ लिया कि क्या वह किसी के साथ डेट पर जाता है तो उसने कहा कि कोई उसकी निगाह में है और उसकी मुस्कराहट शानदार है। मैं जानती थी कि यह मैं थी। मुस्कराहट से उसका तात्पर्य, आतंरिक से था अथवा बाह्य से? मैंने आसानी से इसे आतंरिक समझा और अवकाश के अगले दिनों में उससे ‘स्वयं’ के रूप में मिलने का निर्णय लिया।
मुझे झूठ बोलने में, उससे वृद्ध महिला की त्वचा पहन कर मिलने में बुरा महसूस होता था। जितनी बार मैं फुजीसाकी से मिलती, जो कुछ उसके भीतर था अधिक चमकदार, बस प्रभामय लगता - यह कुछ ऐसा था मानो उसका प्रकाश मेरे मस्तिष्क में एक छाया सी निर्मित कर रहा था।
अगली जो छुट्टी हमें मिली, मैंने फुजीसाकी को बाहर चलने के लिए आमंत्रित किया।
मैं उससे, शिंजुकु गोयेन में, वृद्ध स्त्री के रूप में नहीं बल्कि अपने ‘स्वयं’ के रूप में मिली।
मौसम बहुत ख़ूबसूरत था।
“आज हमारे लिए बहुत शानदार मौसम है।”
“निश्चित रूप से।”
बातचीत के लिए बहुत साधारण से मुद्दे भी आज बात करते समय बहुत मज़ेदार लग रहे थे।
फुजीसाकी ने एक आह के साथ अंगड़ाई ली, एक गहरी साँस ली मानो वह अपनी सम्पूर्ण देह की रिक्ति को भर रहा हो, और बोला, “मैं प्रकृति से घिरा हुआ भीतर-बाहर से शांत महसूस कर रहा हूँ। वृक्ष और तालाब इतने बड़े हैं कि मुझे महसूस हो रहा है मानो मैं बिलकुल महत्वपूर्ण नहीं हूँ।”
“तुम जो कह रहे हो उसे मैं बिलकुल समझ गयी। तुम्हारी स्वयं की महत्वहीन होने की यह अनुभूति बहुत आरामदायक है।”
हाँ, जब मैं वृद्ध महिला की त्वचा पहनती थी, मुझे महसूस होता था जैसे मैं अदृश्य हो गयी होती थी। कोई भी मुझे अजीब नज़रों से नहीं देखता था। छिपे होना कितना आनंददायक था। किन्तु अब मैंने त्वचा उतार दी थी, अब मैं अनावृत हो गयी थी।
“मैं ख़ुश हूँ।” मैंने कहा।
“किस सम्बन्ध में?”
“कि मैं तुमसे इस तरह मिल सकती हूँ।”
जब मैंने यह कहा, उसका चेहरा और भी चमकने लगा।
हम पार्क में टहलते हुए एक-दूसरे के बारे में बातें आपस में साझा करते रहे।
वह किस प्रकार वीडियो गेम्स के काम में भी लगा था और उसका गुप्त चैनल अच्छा चल रहा था। वह अच्छा - बहुत नहीं लेकिन ठीक ठाक पैसा बना रहा था। मुझे हॉरर फ़िल्में पसंद थीं और फुकुशीमा में मैं और मेरी दोस्त यूरी उन्हें घर पर डरने के लिए और चीख रहे चरित्रों की नक़ल करने के लिए देखा करते थे। वह किसी प्रकार के सिस्टम विकास का काम करना चाहता था न कि बिक्री का। कि मुझे न्यूज़लेटर अनुभाग में काम करने से वास्तव में घृणा नहीं थी।
चूँकि मैं उससे कई बार वृद्ध महिला के रूप में मिल चुकी थी, मैं उससे बिना हिचकिचाहट के बात कर सकती थी।
मैं चिंतामुक्त थी। मैं ढेर सारी मात्रा में हँस पाने में सक्षम थी।
उसके पश्चात् हमने अपने शेड्यूल में सामंजस्य बिठा लिया और अक्सर मिलने लगे।
हमने फ़िल्में देखीं। हम एक मनोरंजन पार्क गए। हम एक ओपन एयर थियेटर में गए और फुजीसाकी के अनुमोदन पर घंटों गेम्स के लड़ाई के मुकाबले देखे। हमने एक फैंसी रेस्त्रां में, जहाँ से रात्रि में शहर बहुत शानदार दिखता था, डिनर भी किया लेकिन हमारा सम्बन्ध और आगे नहीं बढ़ा। मैं इस सम्बन्ध में खुश थी। चूँकि हमारे सम्बन्ध में यौनेच्छा अथवा शारीरिक सम्बन्ध नहीं सम्मिलित थे, ऐसा महसूस होता था मानों हम एक-दूसरे को स्पष्टता से देख पा रहे थे।
मैंने इच्छा की कि काश हम इसी तरह सदैव बस मित्र बने रह पाते….।
तब भी जब मैंने ऐसा सोचा, मैं जानती थी कि यदि उसने कहा कि वह अधिक गंभीर होना चाहता था तो मुझे इसमें कोई आपत्ति न होती।
इस बात को कुछ महीने हो गए थे जब से हमने साथ साथ बाहर जाना शुरू किया था।
हमारे लिए जगहें, जहाँ हम जाने का प्रयत्न करते, समाप्त होने लगीं थी और हम अपनी प्रिय जगहों पर वापस आना शुरू हो गए थे। हमें छोटे मनोरंजन पार्क पसंद थे।
एक दिन हम इनोकाशीरा पार्क में थे।
तालाब की ओर देखते हुए मुझे अजीब सी पूर्वाभास की सी अनिभूति हो रही थी।
“मुझे आश्चर्य है कि वह वृद्ध महिला ठीक ठाक है,” एकाएक वह बडबडाया, जब उसने दूर उस बेंच की ओर वहाँ से देखा जहाँ वह बाउंड्री से लग कर झुका हुआ था।
ओह ! ठीक। यद्यपि मौसम दूसरा था लेकिन पहली बार जब मैं उससे वृद्ध महिला की त्वचा पहन कर मिली थी, उस दिन भी तापमान बिलकुल आज ही की भांति ठीक था।
फुजीसाकी जिस बेंच की ओर देख रहा था मैं उसके ठीक सामने फिसल गयी थी।
एक वृद्ध महिला उसके सामने से गुज़र रही थी।
जब वह लड़खड़ाई और लगभग गिरने ही वाली थी, फुजीसाकी उसे सहायता देने हेतु दौड़ पड़ा।
मैंने महसूस किया मानो मैं स्वप्न देख रही थी।
हाँ ! मैं वास्तव में उसको पसंद करती हूँ, मैंने सोचा।
यह सुनिश्चित करने के पश्चात् कि महिला ठीक थी और उससे कुछ देर तक बात करते रहने के पश्चात् फुजीसाकी और मैं रात होने तक वहीं टहलते रहे। जब मैं यह आश्चर्य करती सोच रही थी कि कब और कैसे उससे मैं क्या महसूस करती हूँ, यह व्यक्त करूँ, वह चहरे पर गंभीर भाव लिए मेरी ओर मुड़ा और बोला, “मैं तुम्हें पसंद करता हूँ, क्योको। क्या तुम मेरी गर्लफ्रेंड बनोगी?”
आजकल किसी व्यक्ति के लिए, किसी वयस्क के लिए, यह बात इतनी स्पष्टता से पूछना बहुत मुश्किल बात थी। इसके लिए वास्तव में साहस की आवश्यकता थी।
“हाँ! मैं भी तुम्हें पसंद करती हूँ।”
उसका चेहरा चमकने लगा और लगा जैसे उसके आँसू निकल पड़ने वाले थे।
“अच्छा, तुम मुझमें क्या पसंद करते हो?
“वाओ ! आँसू। मैं रो रहा हूँ। हा हा हा। मैं तुम्हारे बारे में क्या पसंद करता हूँ, हुह। मुझे तुम्हारा चेहरा पसंद है।”
एक क्षण को मैं जम सी गयी।
साथ साथ हँसते और रोते हुए, उसने अपना चेहरा ढांप लिया। “आह ! मैं कितना नर्वस था!”
किन्तु मैं अपना चेहरा ढाँपना चाहती थी। अपने हाथों के पीछे चेहरा छिपाये उसने जो कुछ क्षण मेरे सामने व्यतीत किये मुझे असम्भाव्य रूप से लम्बे लगे।
मैं किसी को बताना चाहती थी कि मुझे कैसा महसूस हुआ था। मैंने यूरी को फोन करने का सोचा फिर इसके विरुद्ध निर्णय लिया। मुझे अनुभूति हो रही थी कि जैसे वह इस बात को वास्तव में नहीं समझ पाती। बाद में अपने घर पर मैं बिस्तर पर गिर पड़ी, यह महसूस करते हुए कि मानो मैं सुबकना प्रारम्भ करने वाली थी, मैंने अपनी शेल्फ पर कोकेशी को देखा। ओह! बिलकुल ठीक। यह कोकेशी इस पूरे समय मेरे साथ रहती रही है, हर समय मुझे देखती हुई।
“मैंने वास्तव में सुन्दर कहे जाने से हर समय घृणा की है। जो कोई मुझे देखते हुए यह कहता है, मुझे लगता है मानो उसके लिए जो कुछ भी मेरे भीतर है, उसका कुछ भी महत्त्व नहीं है.....”
एक बार जब मैंने बात करनी प्रारम्भ कर दी, मैं रुक नहीं सकी। मैंने कोकेशी से स्वयं को परेशान करने वाली हर बात कह डाली।
जिस दिन फुजीसाकी ने मुझे अपनी गर्लफ्रेंड होने के लिए पूछा था उसी दिन हमारी कंपनी ने हमें कार्यालय में और आते-जाते समय मास्क पहनने को निर्देशित किया। पचासवीं वर्षगांठ की पुस्तिका की तैयारी का काम पूर्णता की ओर था और मैंने बेसमेंट में अभिलेखागार तथा छठवें तल पर स्थित इन हाउस न्यूज़लेटर अनुभाग के मध्य अपना समय व्यतीत करना जारी रखा।
हर कोई अपना आधा चेहरा एक मास्क से ढांपे रखता था। इसमें मैं भी सम्मिलित थी। मैं किसी और का चेहरा भी बहुत अच्छे से नहीं देख सकती थी। और यह तथ्य कि कोई मेरा चेहरा अच्छे से नहीं देख सकता था, मेरे लिए बहुत राहत की बात थी। बेसमेन्ट में अपने काम में डूबे हुए समय गुज़ारना मुझे पहले से भी अधिक आरामदायक लगने लगा था।
मैंने उस दिन फुजीसाकी को स्पष्ट रूप से बता दिया था कि मैं भी उसे पसंद करती थी और अब हम दोनों साथी थे। लेकिन हम उस दिन के बाद से बाहर नहीं गए थे।
ईमानदारी से कहूँ तो मैं नहीं जानती थी कि उसके बारे में अब और क्या सोचना चाहिए।
उस बात के बारे में क्या जो उसने बहुत समय पहले मुझे वृद्ध महिला के रूप में कही थी?
सिवाव काम के दौरान मिलने पर दो चार शब्द कहने के, मैंने उससे यह अनुरोध किया था कि मैं कोविड से डरी हुई थी और उससे कुछ समय के लिए नहीं मिलने वाली थी।
एक दिन उसने मुझे मैसेज किया।
“जब चीजें सामान्य हो जाएँगी, मैं बात करना चाहूंगा।”
मैं नहीं कह सकी कि मैं उसे पसंद नहीं करती थी।
किन्तु पसंद के साथ ही, मैं अब उससे डर भी रही थी, इसलिए मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए।
हमने इनोकाशीरा पार्क में मिलने का निर्णय लिया।
किन्तु मैं अपने रूप में नहीं गयी। मैंने वृद्ध महिला की त्वचा पहन ली।
मैंने सोचा यह मेरी रक्षा करेगी।
जब हमारी मुलाकात का समय समाप्त हो गया, वह झुंझलाया हुआ था जो कि उसके लिए एक नयी बात थी। निरंतर अपनी घडी देखता, वह अपना सिर लटकाये बैठा था। कदमों की आहट होने पर उसने निश्चित रूप से सोचा होगा कि मैं आ पहुंची थी। उसने तत्काल ऊपर देखा किन्तु मेरी जगह वृद्ध महिला को देखकर निराश हो गया।
“आपको बहुत दिनों से देखा नहीं,” उसने मास्क से ऊपर अपनी आँखों में मुस्कराहट लाने का प्रयत्न करते हुए कहा।
दोनों ही मास्क लगाए हुए, हमने एक दूसरे को अपनी वर्तमान अवस्था में ढाल लिया।
किस प्रकार ‘मेरी’ पोती उस व्यक्ति के साथ थी जिसे वह पसंद करती थी। किन्तु कुछ समय बाद से वह उस के बारे में सुनिश्चित नहीं थी।
मेरा एक अंश यह चाहता था कि उसे भान हो जाये कि मैं कौन थी।
“ऐसा ही है,” फुजीसाकी ने कहा, “मेरी गर्लफ्रेंड के साथ भी चीजें ठीक नहीं चल रही हैं। लेकिन मैं निश्चित नहीं हूँ कि क्यों।”
“ओह !” मैंने उनके संबंधों के बारे में चिंता प्रदर्शित करते हुए कहा। मैंने कहा कि यदि वह अन्यथा न ले तो मैं उसकी गर्लफ्रेंड के बारे में (जो कि मैं ही थी) जानना चाहूंगी। इस पर वह बात करने लगा।
वह हँसा और बोला कि उसे लगता था मानो उसका साक्षात्कार हो रहा था।
“हूँ !” मैंने गंभीर चेहरा बनाया और उसकी कहानी पर विचार किया। “क्या तुम नहीं सोचते कि यह सब इस कारण था कि जब तुमने अपनी भावनाएं व्यक्त की थी तो कहा था कि तुम उसके चेहरे को पसंद करते हो?” मैंने कहा। “तुम जानते हो, मेरी…. मेरी पोती इस तरह की चीजों को पसंद नहीं करती, मैंने तुम्हें पहले भी कहा था, ठीक?”
“मैं उसे तार्किक रूप से समझता हूँ -- किसी के बारे में निर्णय इस आधार पर नहीं लेना चाहिए कि वे कैसे दिखते हैं। लेकिन मुझे जो पसंद है, वह पसंद है। और मैं वास्तव में क्योको के चहरे को पसंद करता हूँ। यह अजीब लगता है कि मैं उसे इतना पसंद करूँ लेकिन उससे कहूं न। यदि हम एक-दूसरे को पसंद करते हैं तो क्या उसे मेरी भावनाएं नहीं स्वीकार करनी चाहिए, भले ही उसे बुरा लगा हो कि वे उसके चेहरे के सम्बन्ध में थीं?”
उसने अपने शब्द सावधानी से चुने थे किन्तु इस बात के प्रति विश्वस्त लगता था कि वह सही था।
“यदि तुम जानते हो कि इससे उसे बुरा लगेगा तो हो सकता है तुम्हें यह नहीं कहना चाहिए था।” मैंने जवाब दिया लेकिन मैं कुछ-कुछ समझ रही थी कि उसका मतलब क्या था। किसी को पसंद करना और यह देखने के लिए अपना स्वार्थी ‘आत्म’ बने रहना कि दूसरे तुम्हें कितना स्वीकार करेंगे, मैं इस भावना से अवगत थी।
“वैसे, चहरे के अतिरिक्त क्या और भी बातें हैं जो तुम पसंद करते हो…?” मैंने थोड़ा नर्वस होते हुए पूछा। यह वह प्रश्न था जो मैं सबसे अधिक पूछना चाहती थी।
और वह चुप हो गया।
वाह। मैंने सोचा।
यह एक झटका था कि वह तत्काल उत्तर नहीं दे सका।
वह अपने फोन पर कुछ टाइप करने लगा और कुछ नहीं बोला।
यह ऐसा था मानों वह भूल गया हो कि मैं भी वहीं थी। वह टाइप करता, मिटाता और फिर टाइप करता रहा।
जब मैं बेंच से जाने को उठी, उसने ऐसी आँखों के साथ कहा जो कहीं दूर केंद्रित थी, “ओह, फिर मिलते हैं।”
मैं घर चली गयी और कोकेशी से बताया कि उस दिन क्या हुआ था। जब मैं बात कर रही थी मैंने स्वयं को इतना अधिक थका हुआ महसूस किया कि मैं बिस्तर में गिर गयी, त्वचा को पहने हुए ही।
जब मेरी ऑंखें खुली, मेरे कमरे में अँधेरा था। स्पष्टतः मैं सो गयी थी।
मैं रसोईघर में थोड़ा पानी पीने के लिए गयी और फिर बिना लाइट जलाये अपने बिस्तर पर बैठ गयी।
वास्तव में मैं फुजीसाकी के बारे में नहीं सोचना चाहती थी, लेकिन अंततः मैं यही करती रही।
एक समय मैंने सोचा था कि वह आतंरिक रूप से सुन्दर था, लेकिन अब मुझे कुछ पता नहीं था। मैं पूर्णतः थकान से चूर हो रही थी।
फुजीसाकी के सम्बन्ध में सम्भ्रम के साथ ही एक घनीभूत अपराधबोध मेरी देह में चक्कर लगा रहा था।
जब पार्क में मैं उससे अपने बारे में बात कर रही थी, अकस्मात मेरे मन में एक विचार आया था : मैं इस वृद्ध महिला के अस्तित्व का शोषण कर रही थी, क्या नहीं?”
कोई सुंदरता नहीं, कोई असुन्दरता नहीं ? लोग एक वृद्ध महिला के समक्ष सावधान नहीं रहेंगे ?
वरिष्ठ लोग भी प्रेम में पड़ते हैं ; वे भी सुंदरता-असुन्दरता के चक्कर में चिंतित होते हैं। ऐसा नहीं है कि सभी प्रौढ़ महिलाएं सब कुछ को स्वीकार कर लेने वाली होती हैं। निश्चय ही उनमें से कुछ सहिष्णु होती हैं। कुछ की रोमांस में रूचि समाप्त हो चुकी होती है, जबकि अन्य के पास ऐसा करना शुरू करने का कोई अवसर नहीं होता। हर चीज उम्र अथवा सेक्स पर नहीं, बल्कि व्यक्ति पर निर्भर करती है। किन्तु मैं यह सामान्य तथ्य भूल गयी थी और मैंने उन सब बातों को असावधानी से एक साथ गूँथ दिया था।
मुझे स्वयं से घृणा होने लगी, और मैंने एक गहरी साँस ली।
मेरे फोन में मैसेज का संकेत करती हरी लाइट जल बुझ रही थी। अँधेरे में मेरा झुर्रियों भरा वृद्ध महिला का हाथ प्रगट हुआ और पुनः गायब हो गया।
मुझे फुजीसाकी से एक संदेश प्राप्त हुआ था।
“आज किसी ने मुझे किसी बात की ओर इशारा किया था इसलिए मैं इस सम्बन्ध में सोच रहा था कि मैं तुम में, तुम्हारे चेहरे के अतिरिक्त, और क्या पसंद करता हूँ, क्योको। और इस सम्बन्ध में चीजों का एक अंतहीन सिलसिला है। यह लिस्ट लम्बी होने वाली है किन्तु सबसे पहली बात यह है कि जब लोग बात करते हैं तो तुम किस प्रकार सुनती हो। और जब तुम किसी बात से ख़ुश होती हो तो तुम इस सम्बन्ध में किस प्रकार बताती हो। और मुझे यह पसंद हैं कि जब कोई बात तुम्हें बुरी लगती हैं तो वह तुम्हारे चहरे के भावों से साफ़-साफ़ स्पष्ट हो जाती है। और यह कि जब हम लड़ाई के वीडियो गेम देख रहे होते हैं तो तुम हमेशा उस खिलाडी का पक्ष लेती हो जो हारने वाला होता है - यह कितनी दयालुतापूर्ण बात है। मुझे वह विचित्र तरीका भी पसंद हैं जिस तरीके से तुमने मात्र एक बार इंस्टाग्राम पर फ़्राईड श्रिम्प की तस्वीर पोस्ट की थी। मुझे तुम्हारे साथ बिताया गया समय पसंद है और मुझे वह समय भी पसंद है जो मैं तुम्हारे बिना बिताता हूँ - यह सोचते हुए कि क्योको क्या कर रही होगी। और और भी बहुत सी चीजें हैं......”
फुजीसाकी का सन्देश चलता ही चला गया। यह बहुत लम्बा था। मुझे कई बार स्क्रोल करना पड़ा।
अकस्मात् मैं हंसने लगी।
पहले उस दिन, जब उसने वृद्ध महिला के रूप में उपस्थित ‘मेरे’ सामने अकस्मात टाइप करना शुरू कर दिया था वह यही लिखने के लिए कर रहा होगा।
मैं प्रसन्नता से भर गयी।
उस दिन मेरी फुजीसाकी के लिए भावनाएं किसी रोलर-कोस्टर पर थीं और मैं थक गयी थी।
हाँ, मैं उसे वास्तव में पसंद करती हूँ।
इस विचार ने मेरे मस्तिष्क को इतने आराम की स्थिति में पहुंचा दिया कि अब मैं सो सकती थी। लेकिन जब मैं अगली सुबह सो कर उठी, मैं इतनी शिथिल थी कि मैं अपनी जगह से हिल भी नहीं सकती थी।
क्यों? मुझे आश्चर्य हुआ। किन्तु मुझे भान हुआ कि यह मामला वृद्ध महिला की त्वचा के कारण होना चाहिए।
मैंने उसे इतनी देर तक पहने रखा था कि वृद्धावस्था की पीड़ाओं ने मुझे जकड़ लिया था।
मुझे उसे उतारना था।
मैंने सोचा था कि जब मैं वह त्वचा उतार दूंगी तो ठीक हो जाउंगी किन्तु जब मैंने उसे वैसे ही उतारना चाहा जैसा सदैव किया करती थी - अपनी कनपटी पर चुटकी से पकड़ कर जोर से ऊपर की ओर ठेलना - तो वह अलग नहीं हुई। वह कस कर चिपकी हुई महसूस हुई। मैंने त्वचा को अपनी देह के हर संभव स्थान से पकड़ना चाहा लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। मैं उसे काटने से बचना चाह रही थी। जब मैंने पुनः अपनी कनपटी पर जितना मैं कर सकती थी उतनी जोर से खींचना चाहा, मैं लड़खड़ा गयी और अपनी अलमारी पर गिर गयी। उस पर रखी कोकेशी फर्श पर गिर कर इतनी सफाई से टूट गयी कि मैं विश्वास न कर सकी।
कोकेशी की देह के दो हिस्सों को देखते हुए मेरी ऑंखें आँसुओं से भर गयी और रोकुरोसेन लिपटता सा महसूस हुआ।
मुझे क्या करना चाहिए ?
“मुझे खेद है। मुझे खेद है। मुझे खेद है। मुझे बहुत खेद है।”
इस झटके ने मुझे मेरी शारीरिक पीड़ा भुला दी और कोकेशी से सब तरह से क्षमा मांगने के पश्चात्, मैंने कहा, “मुझे उसकी स्मृति में कुछ करना चाहिए,” जैसे कि कोई प्रार्थना।
क्या मुझे उसे त्सुचियू ओनसेन ले जाना चाहिए? ऐसा लगा कि जो कोकेशी वे वापस स्वीकार करते थे, उन्हें या तो प्रदर्शन के लिए रख देते थे अथवा कला की भांति उनका पुनरुत्पादन कर देते थे। मैं कब जा सकती थी? जब मैं अपना शेड्यूल एप खोल कर अपनी योजना उतनी तेजी से बनाने में व्यस्त थी जितना मेरे लिए सम्भव था, तभी मुझे त्सुचियू ओनसेन के सम्बन्ध में पुरानी कहानी का स्मरण हो आया।
किस प्रकार शोतोकू ताइशी का राजदूत गर्म जल के स्रोत द्वारा उपचारित हो गया था।
और उसकी बीमारी कुछ सुन्न पड़ जाने सम्बन्धी विकार से सम्बंधित थी।
यदि मैं वहाँ स्नान करती तो संभव था त्वचा की दशा अपने आप ठीक हो जाती।
ऐसा महसूस हुआ कि मैं उसी दिन जल्दी से वहाँ की यात्रा कर सकती थी।
मैंने अपने कार्यालय में अपनी घरघराती आवाज़ में फोन किया, उन्हें सुनिश्चित किया कि मुझे बुखार नहीं था, कोकेशी को सावधानी से लपेटा और उसे अपने बैग में रख लिया और टोक्यो स्टेशन की ओर चल पड़ी।
शिनकानसेन से फुकुशीमा के रास्ते में और फुकुशीमा से त्सुचियू ओनसेन तक टैक्सी में, मैं यही सोचती रही कि किस प्रकार फुजीसाकी के सन्देश का जवाब दूँ लेकिन कुछ भी मेरे मस्तिष्क में नहीं आया।
ओनसेन रिसॉर्ट में, बिलकुल पहले ही की भांति, अराकावा ओहाशी पुल की बगल में विशाल कोकेशी मेरा स्वागत करने हेतु खड़ी थी। इतना विश्वास दिलाती ऑंखें, मैंने सोचा। उन आँखों की चमक किसी बात से धुंधली नहीं होगी।
मैं वैसी ही साहसी होना चाहती हूँ।
जिस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया वह स्नानागार में प्रवेश करते ही यूरी से मिलना था।
उसने निश्चय ही अवकाश लिया होगा और मेरी ही भांति ओनसेन आयी होगी। मैंने पूछना चाहा, लेकिन मैं कैसे पूछ सकती थी? मैं एक वृद्ध महिला थी। मैंने सोचा कि मैं उससे बच कर निकल जाऊंगी और मेरा पता भी नहीं चलेगा, किन्तु उसको इतने समय बाद देखने ने मेरे ह्रदय में गर्माहट ला दी थी।
कोकेशी कपड़े बदलने वाले कक्ष में थी। आदर्श रूप से मैं उसकी स्मृति में कुछ करने की सी नयी अनुभूति करना चाहती थी, और शोकमय भी थी इसलिए मैंने पहले गर्म जल स्रोत में डुबकी लगाने का निर्णय लिया। मुझे अनुभव हो रहा था कि मेरी देह की पीड़ा कुछ कम हो चली थी किन्तु मैं घबरायी हुई थी। यूरी अब कुछ देर से मुझे ही ताक रही थी।
“उम्म, क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकती हूँ?” मैंने उसकी दृष्टि को और अधिक देर तक सहन कर पाने में स्वयं को अक्षम पा कर पूछा। मैं वृद्ध महिला की तरह दिख भी रही थी और मेरी आवाज़ भी वैसी ही लग रही थी, न कि उस ‘मैं’ जैसी जिसे यूरी जानती थी।
कोई तरीका नहीं था जिससे वह मुझे पहचान सकी होती।
लेकिन फिर भी.....
“क्योको ?” उसने पुकारा।
“हुह ?”
“क्योको यह तुम्हीं हो, ठीक? मैं यह जानती थी।”
“लेकिन कैसे ?”
“तुम ऐसी क्यों दिख रही हो? तुम बूढी क्यों हो?”
“तुम कैसे जानती थी कि यह मैं थी ?”
“हुह, मैं बस जानती थी। जो भी कारण रहा हो, जिस क्षण मैंने तुम्हें देखा उसी समय मैंने सोचा, “यह वृद्ध महिला क्योको की भांति लग रही है,” और वास्तव में ऐसा ही था।”
“क्या ? क्या यह कुछ अधिक ही अजीब नहीं है?”
“नहीं तुम्हारे वृद्ध महिला की भांति दिखने में अजीब क्या है। क्या हुआ ? क्या यह कोई बहुरूप है? अथवा हम दोनों में से कोई दशकों पूर्व के समय में फिसल गया है ?”
यूरी तेजी से मेरे पास आयी और उसने वृद्ध महिला की त्वचा को छुआ।
मैं उसे बताने वाली थी कि वह त्वचा मुझमें अटक गयी थी और वापस उतर नहीं रही थी लेकिन जब उसने त्वचा में चुटकी ली, वह खिंच गयी -- वाओ।
“ओह माय गॉड !”
जब मैं चीखी, यूरी इस कारण आश्चर्यचकित हो गयी कि मैं क्यों आश्चर्यचकित थी।
मैं टब से बाहर निकल आयी और वाशिंग क्षेत्र में जा कर मैंने वृद्ध महिला की त्वचा उतार दी।
“वाओ !” यूरी यह देख कर चकित रह गयी इसलिए उसे मैंने कई बार पहना और उतारा।
हम दोनों साथ साथ हँसती रही।
मुझे एक विचार बार बार आ रहा था कि हो सकता हैं कि त्वचा के ढीली होने का कारण मात्र गर्म जल में डुबकी लगाना न रहा हो बल्कि यह भी रहा हो कि यूरी ने मुझे देख लिया था बगैर इस बात के किसी महत्त्व के कि मैं कैसी दिखती थी।
जब मैं कोकेशी को वापस करने गयी, यूरी भी मेरे साथ गयी। इससे मुझे प्रसन्नता हुई जब उसने कहा कि यह वाली खास रही होनी चाहिए। हो सकता है टूट गयी कोकेशी किसी दिन पुनर्जन्म ले और कभी पुनः हमसे मिले।
मैं स्नानागार में कपड़े बदलने वाले कक्ष में त्वचा को सूखने के लिए लटकाने गयी। ऐसा लग रहा था कि इसमें कुछ समय लगेगा इसलिए कुछ देर तक इधर उधर यूरी के साथ टहलने के पश्चात हम एक बेंच पर बैठ गए।
गर्म जल स्रोत में बनी अंडे की खिचड़ी खाते हुए मैंने यह सोचने का प्रयत्न किया कि उसे कब बताना चाहिए।
वृद्ध महिला की त्वचा के बारे में और इस बारे में कि किस प्रकार उसने मुझे बचाने की कोशिश की थी।
फुजीसाकी के बारे में।
मैं हर उस बात के बारे में उसे बताना चाहती थी जो मेरे टोक्यो जाने के बाद घटित हुई थी।
और मैं उसे यह बताने की कोशिश करना भी चाहती थी कि मुझे सुन्दर कहे जाने से कितनी घृणा थी।
भले इससे चीजें अजीब सी हो जाती, लेकिन मैं निश्चित थी कि हम ठीक रहेंगे। मेरा मतलब है, उसने मुझे अभी अभी बिना मेरी शक्ल पर ध्यान दिए पहचान लिया था। हो सकता है कि मैं फुजीसाकी को बताऊँ की वृद्ध महिला मैं ही थी, मैंने सोचा।
यूरी ने कहा, “मैं शर्त लगाती हूँ कि हम तब भी साथ रहेंगी जब हम वृद्ध महिलाएं हो जाएँगी। हम गर्म जल स्रोत में स्नान कर रहीं होंगी और साथ-साथ पुडिंग खा रही होंगी, आज ही की तरह।”
“ओह, हाँ, मैं भी ऐसा ही सोचती हूँ।”
“वावो ! देखो।”
बिना मौसम के हिमपात हो रहा था।
जब मैंने ताइशी-दू भवन की ओर दृष्टि डाली, मैंने किसी को देखा। यह वही वृद्ध महिला थी जिसने मुझे त्वचा दी थी। ठीक उसी समय एक युवा महिला सीढ़ियों से ऊपर की ओर आ रही थी। उसे देख कर वृद्ध महिला मुस्करायी।
एमिली बैलिस्ट्रीरी के अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित
आओ ओमाए (28 नवम्बर, 1992) जापान के श्रेष्ठ उदीयमान कहानीकार हैं।
श्रीविलास सिंह वरिष्ठ कवि, गद्यकार एवं अनुवादक हैं। उनसे अधिक परिचय के लिए देखें : महमूद दरवेश की कविताएँ , केन का मेमना
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