चंद्रमोहन की कविताएँ
- golchakkarpatrika
- Jan 20
- 3 min read

सिटी
यहाँ सिटी में हर कोई
ईश्वर बनने की कोशिश कर रहा
हर कोई ईश्वर बनते हुए चाहता है
कि कोई मुझे पूजे
और जय हिंद कहे
हर कोई ईश्वर बनना चाहता है यहाँ
जहाँ मेरे जैसे मज़दूर लाखों-करोड़ों हैं
जिनकी जिंदगी 24 घंटे में 18 घंटे
खटते बीतती है
हर कोई ईश्वर बनना चाहता है
और धीरे-धीरे ज़मीन कब्ज़ा करते हुए
बनना चाहता है अमर देवता
खड़ा करना चाहता है अस्पताल, स्कूल से लेकर
हर चीज़ का बिजनेस मॉडल
यहाँ लिखा है कि
कबूतर का शिकार कर भोजन ना बनाएँ
यहाँ कहीं नहीं लिखा कि आदमी की हत्या न करें
मज़दूर को हद से ज्यादा खटाकर न मारें
यह कहीं नहीं लिखा है
यहाँ हरएक बनना चाहता है ईश्वर
कोई नहीं बनना चाहता है राजमिस्त्री, लेबर...।
एक मजूर की डायरी
मेरे पास जब सिर्फ़
काम ही काम था
खाना नहीं था
तब मुझे मजदूर साथियों ने पराठा खिलाया
मुझे जिलाया
और तब मैंने जिया सरल और कठिन मजूर जीवन
कहीं से पन्ने फाड़ कर
उस पर
नोट किया गद्य जैसा कुछ
कि मेरे जैसे कितने ही थे मुर्दे
काम के दायरे में पसरे हुए
जो अपनी कहानी नहीं लिख सकते थे
तब मैंने मालिकों द्वारा डस्टबिन में फेंकी हुई
कलमों को उठाकर
चिथड़े पन्नों पर
जस का तस छाप दिया
जैसा मैंने जीवन जीया।
काम के मरभूखे , पुणे
क्या एक मज़दूर की डायरी ऐसी ही होती है
फटी, लिथड़ी हुई
धूल मिट्टी से
नहाई हुई
क्या मेरी ज़िंदगी ऐसी ही है
काम करती हुई, टूटी-बिखरी हुई
क्या मेरी कविता के कोने में ओवरटाइम
नहीं गिराता है मुझे
लगातार 16 घंटे वॉचमैन का काम करते
देखो-देखो मेरे जैसे अनगिनत लड़कों को देखो
सेवा में जुटे हैं महान पूँजीपतियों की
11 फ्लोर के टेरिस लॉक के पास से
उस खुली खिड़की से देखो तो
बाहर से आज़ादी की अनुभूति होती है
पहाड़ जो दूर हैं
फैक्ट्री के पाइप से फेंका जाता धुंआ ऊपर उठ रहा
वहीं बिल्डिंग के नीचे काम पर लगे हैं
काम के मर भूखे।
सुनो वॉचमैन
वॉचमैन से कहा जाता है कि
तुम चौकीदार नहीं हो और वॉचमैन भी नहीं
उनसे कहा जाता है
कि तुम मज़दूर नहीं सिक्योरिटी गार्ड हो
तुम्हारी सारी हरकतें सीसीटीवी कैमरे
देखते हैं
तुम क्या कर रहे हो या कि तुम नींद में ऊँघ रहे हो
तुम्हारी निगरानी की जा रही है
हज़ारों कैमरों से
तुम्हें कंट्रोल किया जा रहा है
कंट्रोल रूम से
सुनो वॉचमैन
तुम जो 16 और 24 घंटे
ओवरटाइम करते हो
ओवरटाइम के लिए सिग्नेचर करने दूर
वहाँ सिक्योरिटी ऑफिस जाते हो और
शरीर का ख़ून दूसरों की सुरक्षा के लिए खपाते हो
तुम एक मरभूखे मज़दूर के सिवा कुछ नहीं
तुमसे ग़लत कहा जाता है सिक्योरिटी ऑफिस में
कि तुम वॉचमैन हो
तुम चौकीदार हो
और तुम कहते हो कि नहीं
मैं सिक्योरिटी गार्ड हूँ
तुम ख़ुद अपने शरीर की सुरक्षा नहीं कर पाते हो
भूख लगने पर खाना खाने जब किसी दुकान पर जाते हो
कोई राउंडर देखता है तुम्हें
तो धरती की सबसे गंदी गाली देता है
और दिन भर की मज़दूरी काट देता है
तुम अपना गुस्सा शांत करने के लिए
मन ही मन सभी धनी लोगों को गरियाते हो
पर कुछ कर नहीं पाते हो।
सिक्योरिटी गार्ड का सुपरवाइजर
सुपरवाइजर जो ख़ुद कैप नहीं लगाता माथे पे
पर वार्निंग देता है हर वाचमैन को
कि टोपी लगाओ रे!
सुपरवाइजर के ऊपर साहब है
पर साहब ख़ुद यूनिफॉर्म नहीं पहनता
पर हमको डिसप्लिन सिखाता है
और माँ-बहन की गालियाँ बड़बड़ाता है...।
चंद्रमोहन (चन्द्र) असम के एक गाँव खेरोनी काछारी में रहते हैं। पहला कविता संकलन 'फूलों की नागरिकता' शीर्षक से प्रकाशित। हिंदी की समकालीन पत्रिकाओं हंस, पाखी, वागर्थ, समयांतर, परिंदे, ककसाड़ आदि में कविताएँ प्रकाशित। कुछ वेबसाइटों पर कविताएँ प्रकाशित। यादवेन्द्र के संपादन में आयी पुस्तक ‘यादों में चलती साइकिल’ में संस्मरण प्रकाशित। संजय कुंदन के संपादन में 2021 में छपे कविता संग्रह ‘कंटीले तार की तरह’ में अन्य कवियों के साथ कविताएँ संकलित। ईमेल : chandramohan909065@gmail.com
कविताएँ अच्छी हैं पर अभी सबीर हका से तुलना बेमानी होगा। उनकी तरह बनना भी नही चाहिए। पर अभी इन्हें और पकना चाहिए।
जब कविताएँ अनुभव से उपजी हों तो उनमें यथार्थ से टकराने का माद्दा होता है। चन्द्र ने बड़ी सहजता से क्लिष्ट जीवन के यथार्थ को वस्तुगत रूप में सामने रखा है। कविता की दिशा जब लगातार विधर्मी होने लगी हो, ऐसे में चन्द्र की ये सहज सी लगने वाली कविताएँ अपने असल धर्म की ओर लौटने का प्रयास करती प्रतीत होती हैं।मनुष्यता के पक्ष में इन कविताओं को हम खड़ा हुआ पाते हैं।
आदमी की कविता है यहयह - निखालिस आदमी की भाषा में ..