अलारिज, स्पेन का एक चमत्कारिक नगर
- golchakkarpatrika
- Mar 1
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Updated: Mar 2

सच कहूँ तो मुझे मालूम ही नहीं था कि स्पेन के दक्षिणी छोर पर एक ऐसा नगर है, जहाँ महात्मा गांधी को और टैगोर को आज भी प्रतिवर्ष याद किया जाता है, प्रत्येक वर्ष एक भारतीय को बुला कर सम्मानपूर्वक सुना जाता है।
जब गेलेसियन भाषा की प्रमुख कवि योलाण्डा ने मुझे अकरुना, जो स्पेन का गेलीसियन भाषा भाषी क्षेत्र है, में आमन्त्रित किया तो मुझे बताया कि मैं दो दिन के लिए अलारिज में भी आमन्त्रित हूँ। यह मेरे लिए सुखद संयोग ही था। योलाण्डा स्थानीय सांस्कृतिक विभाग के सहयोग से हर महीने एक विदेशी और एक गेलेसियन भाषा के कवि का पाठ करवाती हैं। इस बार मुझे आमन्त्रित किया गया था। अकरुना के साथ अलारिज भी देखने को मिला तो इससे बढ़ कर क्या बात हो सकती थी।
अकरुना (स्पेन) में काव्य पाठ के अगले ही दिन मुझे अलारिज के लिए रवाना होना था। योलाण्डा को दो दिन के लिए बाहर जाना था। निश्चय यह हुआ कि मेरे लिए सुबह आठ बजे के आसपास टैक्सी आ जायेगी और मैं नौ बजे की ट्रेन लेकर अलारिज पहुँच जाऊंगी। वहाँ मुझे लुइस मिलेंगे। मुझे यूरोप की रेलगाड़ियां आकर्षित करती हैं। मैं पहले रोम, नाॅर्वे आदि में रेल की यात्रा कर चुकी हूँ। इसलिये परेशान नहीं थी। यहाँ समस्या बस भाषा की थी। लेकिन मुझे बताया गया कि ख़ास स्टेशनों के नाम अंग्रेज़ी में भी बताये जाते हैं। यूरोप में रेल बहुत साफ़ और सुन्दर होती हैं। काफी कुछ सिस्टमेटिक होता है।
इस रेल में तीर्थयात्री भी दिखाई दे रहे थे, जो सान्त्र्यागो से लौट रहे थे। सान्त्र्यागो स्पेन ही नहीं पूरे यूरोप का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है, जहाँ पूरे यूरोप से तीर्थयात्री आते हैं। पुराने जमाने में वे सब पैदल आते थे। लेकिन आज वे रेल आदि का सहारा ले लेते हैं। जैसे कि यहाँ केरल में अय्यप्पन मन्दिर की तीर्थयात्रा में होने लगा है। खिड़की से बाहर झांकना बेहद रोमांच भरा था। नदी, पहाड़, झरने और विशाल चरागाह गुज़रते जा रहे थे। मेरे कान सजग थे ताकि मैं स्टेशनों के नाम सुन सकूं।
दो घण्टे में मैं अलारिज पहुँच गई और योलाण्डा द्वारा बताये गये काॅफी हाउस में बैठ गई। योलाण्डा ने मुझे कहा था कि एक काॅफी का आर्डर देकर वाई-फाई का पासवर्ड माँग लेना, जिससे लुइस को अपने आने की सूचना दे देना। लुइस आयोजक थे, लेकिन एक शब्द भी अंग्रेज़ी का नहीं जानते थे। थोड़ी देर में लुइस हाज़िर थे— हँसमुख, बच्चे सी चपलता। उन्होंने मेरा बैग उठाया और चलने को इशारा किया। हम लोग एक चौराहे पर कार में पहुँचे। फिर लुइस ने कार पार्क की, मेरा बैग लिया और अपने पीछे आने का इशारा किया। नगर के भीतर गाड़ी ले जाना संभव नहीं था। साइकिल या पैदल ही भीतर जाया जा सकता था। पूरा नगर पतली-पतली गलियों से घिरा था, जो छोटे-छोटे चौकों से जुड़ी थीं। गलियों के जाल का किसी बड़े चौक में खुलना यूरोपीय देशों की विशेषता है। लेकिन यहाँ पर चौक पर पहुँचते ही ख़ूबसूरत पत्थर का नल दिखाई दिया, जिसके आसपास प्याऊ जैसी बनावट थी। लुइस ने नल को खोल कर कुछ कहा। मैंने बिना सोचे-समझे हाथ पानी के नीचे किए। गरमागरम जलधार से हाथ जलते-जलते बचा। लुइस ने बोर्ड की ओर इशारा किया— नगर के बीचोंबीच गरम पानी की नहरें निकलती हैं। थोड़ी दूर पर एक ‘बाथ’, आज की भाषा में कहा जाए तो स्पा बना था।
अलारिज शहर अरनिइया (Arnoia) नदी के किनारे बसा है। यह रोमन काल से भी प्राचीन नगर है। राज परिवार के लोगों का निवास स्थान होने के कारण यह एक किले की तरह सुरक्षित किया गया। जब रोमन साम्राज्य का विकास हो रहा था, तो यह गुपचुप-सा प्रान्त भी उसके प्रभाव में आया। रोमन सेना पुर्तगाल की ओर बढ़ी तो रास्ते भर अपनी छाप छोड़ती गई। नदी का प्रयोग सेना के यातायात के लिए उपयुक्त था। रोमन सेना ने जगह-जगह अपने घोड़ों के लिए अस्तबल बनाये, विश्राम घर बनाए। इस तरह के नदी के किनारे अस्तबल और चमड़े के कारखाने खुल गये। और गरम जल स्रोतों के पास सैनिकों के आरामगाह बन गये। आज उन अस्तबलों में चमड़े के कारखाने खुल गये हैं, लेकिन अस्तबल के चिह्नों को जैसा कि तैसा रखा गया है। गरम स्रोतों को इंजीनियरिंग के द्वारा नलों से जोड़ा गया है। यही नहीं, नदी के किनारे जो पुल हैं, उन पर बनें अर्ध चन्द्राकार द्वार आज भी चमत्कृत करते हैं।
इस तरह रास्ते की इमारतें, घर आदि देखते चौकों के बाद चौक पार करते हम एक छोटे से घर में जा पहुँचे, जो होटल था। इसमें मेरे लिए कोने का एक बेहद छोटा कमरा बुक किया गया था। कमरे में बस एक बेड और एक मेज़ थी। खिड़की गली में खुलती थी। साफ़-सुथरा बाथरूम था।
मेरा सामान होटल में रख कर लुइस मुझे खाना खिलाने ले आये, और मेरी खाने की आदत के बारे में पूछा। मैंने कहा कि जो चीज़ यहाँ सबसे ज़्यादा पसन्द की जाती हो, मुझे वही खानी है। हम एक होटल में गए, जहाँ हमने लोकल ब्रेड के साथ सब्ज़ी खाई। सब्ज़ी में ख़ूब सारे आलू पड़े थे। निसन्देह मसाला भारत से अलग रहा होगा, लेकिन शोरबा था। महसूस हुआ कि यहाँ का भोजन अपेक्षाकृत सहज है। चार बजे तक तैयार रहने का कहकर लुइस ने मुझे होटल के कमरे में छोड़ दिया।
विन्सेन्ट (Vicente Martínez Risco Agüero (October 1, 1884 - April 30, 1963, Ourense)) ओरेन्स नगर की महान बौद्धिक हस्ती थे। उन्होंने Xeración Nós नामक सााहित्यिक संस्था की स्थापना की। गेलेसियन भाषा के साथ-साथ वह स्पेनिश उपन्यास और आलोचना कला के भी पिता भी माने जाते हैं। आपने गेलेसियन भाषा के उद्धार के लिये बहुत परिश्रम किया। लुइस विन्सेन्ट के नाम पर संस्था चलाते हैं, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। मुझे बताया गया कि विन्सेन्ट भारतीय संस्कृति से प्रभावित थे, और भारत आना भी चाहते थे। लेकिन वह वक़्त अलग था। वह पहले रवीन्द्रनाथ टैगोर के प्रशंसक थे, लेकिन यूरोप के ही किसी प्रान्त में जब वह उनसे मिले तो उन्हें लगा कि रवीन्द्रनाथ का समाजवाद पुस्तकीय है, जबकि गांधी का समाजवाद समाजपक्षीय है। वह तभी से गांधी के अनुयायी बन गये, हालांकि उन्हें गांधी से मिलने का मौका कभी नहीं मिला। आज भी उनके नाम पर चलने वाली संस्था भारतीय कलाकारों या साहित्यकारों को साल में एक-दो बार ज़रूर आमन्त्रित करती है, विन्सेन्ट के भारत प्रेम के प्रतीक के रूप में। मेरे लिए ऐसे महान जन के कार्यक्रम में भाग लेने से ज़्यादा महत्वपूर्ण क्या होता।
मैने एक शावर लिया और कविताओं का जत्था निकाल लिया, और देखने लगी कि क्या-क्या पढ़ा जा सकता है। मेरी बीस से अधिक कविताओं का योलाण्डा ने गेलेसियन भाषा में अनुवाद कर लिया था, यहाँ पर भी कम से कम एक घण्टे पाठ होना था। बीच -बीच में खिड़की के बाहर झांक लेती। गलियां एकदम सटी थीं। मकानों को होटलों में बदल दिया गया है, जैसा कि अधिकतर पर्यटन स्थान वाली नगरियों के साथ हो रहा है़। अच्छी बात यह है कि न ही इमारते तोड़ी गईं, न ही सड़कें बड़ी की गईं। हाँ, भीतर से कमरों को नया रूप दे दिया गया। शाम को लुइस अपनी पत्नी अना के साथ हाजिर थे। अना ज़्यादा व्यवहारिक लगी, हालांकि वे एक शब्द भी अंग्रेज़ी नहीं जानती थीं। लेकिन हाथों और आँखों से बात समझाने का प्रयास कर रही थीं। हम लोग पुनः गलियों-गलियों निकलते हुए शहर को पहचानने की कोशिश करने लगे।
सबसे पहले लुइस मुझे नदी के किनारे एक रोमनकालीन अस्तबल में ले जाते हैं, जहाँ घोड़े रखे जाते थे। आज वह चमड़े का व्यापारिक केन्द्र है। नदी बेहद ख़ूबसूरत, और उस पर बने अर्धचंद्राकार पुल तो बहुत ही सुन्दर, जिनकी परछाई जल पर इस तरह पड़ रही थी कि वे पूर्ण चन्द्राकार लग रहे थे। हम नदी के किनारे बढ़ते चले गए। लुइस दम्पत्ति का भाषा न जानना मुझे आश्वासित कर रहा था। इस तरह का नज़ारा सिर्फ चित्रों में देखा था। आज सम्मुख देख कर विभोर थी।
फिर हम घूमकर नगर में आ गए। रास्ते में हम एक बेकरी पर रुके, जहाँ मेरे चित्र वाला पोस्टर लगा हुआ था। मुझे बहुत अच्छा लगा। इसी बेकरी से कविता पाठ के स्थान पर भोजन आना था। हम लोगों ने आइसक्रीम खाई, फिर चल दिए। रास्ते में मैंने बहुत से वृद्धों को बेंच पर गुमसुम बैठे देखा। वे साथ थे, फिर भी चुप थे। उम्र का सन्नाटा उनकी आँखों में उतर आया था। मैंने अकरुना में अनेक वृद्धों को पार्कों या चौराहों पर बैठे देखा था। फिर मुझे लगा, कम से कम वे पार्क तक तो जा सकते हैं। हमारे देश में बूढ़ों को न घर से बाहर निकलने देते हैं, न उनको सामने लाते हैं।
अब हम एक ऐसी जगह पहुँचे जो कभी अस्तबल हुआ करता था, लेकिन उसी पर रेस्टोरेन्ट बना दिया गया। घोड़ों के चारों की मांद, घानी आदि को जस का तस रखा गया था। अस्तबल की किसी भी निशानी को मिटाये बिना उसे बड़ी सुन्दरता से रेस्टोरेन्ट का रूप दे दिया गया था। मुझे अपने देश की सिर्फ़ एक बात बुरी लगती है कि यहाँ आधुनिकता प्राचीन निशानों को मिटा कर आती है, जबकि यूरोपीय देश अपनी स्मृतियों को मिटाते नहीं, उन्हें भीतर से नया रूप देकर भी पुरातन कला को जीवित रखने की कोशिश करते हैं।
अना की आयु मेरे समान ही होगी, लेकिन वे बेहद उत्साहित महिला हैं। लुइस दिल से सोचने वाले और अना बहुत व्यावहारिक महिला। ऐसे छोटे शहरों के वासी एक-दूसरे को नाम से जानते हैं। उनका करीब सारा परिवार आसपास ही रहता था। अना मुझे अधिक से अधिक स्थान दिखलाना चाहती थीं। रास्ते में अना ने मुझे एक विशालकाय ननरी दिखाई, बड़ी अजीब सी इमारत, एक भी खिड़की नहीं दिखाई दे रही थी। ऐसा लगा कि कोई अंधा कुंआ ज़मीन से ऊपर खड़ा हो। जो किसी जेल से कम नहीं थी। कहा जाता है कि जो पुरुष अपनी पत्नी से नाराज़ होते या पसन्द नहीं करते, वे पत्नी को यहाँ छोड़ कर चले जाते। ननरी के भीतर क्या होता, कोई नहीं जानता। क्योंकि एक बार भीतर जाने के बाद कोई उन्हें देख नहीं सकता था। अना ने एक खिड़की दिखाई जो रोशनदान के आकार की थी। उसका पल्ला कुछ इस तरह था कि भीतर स्थित व्यक्ति की शक्ल दिखाई नहीं देती थी। यदि घर का कोई जन उपहार लेकर आये तो उसे उस खिड़की से सामान देना होता था, जो घूमती थी, जिससे भीतर बैठे जन की परछाई भी ना दिखे। औरत को सजा देने के अनेक तरीके रहे हैं, यह तरीका भी कम वीभत्स नहीं रहा होगा। न जाने कितनी आत्माओं का रुदन होगा भीतर। भाषा की समस्या थी, इसलिए मैं इतिहास पूछ नहीं सकती थी, सोचा कि इसके बारे में कहीं तो जानकारी मिलेगी, लेकिन बहुत खोजने पर भी नहीं मिली। ननरी किस तरह का जेलखाना थी, इस पर रिसर्च होनी चाहिये, लेकिन धर्म के छत्ते पर कौन हाथ डाले।
अलारिज में बैलों का महत्व रहा है, यहां बुल फाइट प्रचलित रही है, यह स्पेन का प्रमुख खेल रहा है। कहते हैं कि छटी-सातवीं सदी से यह खेल स्पेन में बहुत महत्वपूर्ण हो गया था। अलारिज में भी बुल फाइटिंग होती है और गली में जगह-जगह बुल के स्कल्पचर बनाए गए हैं। महान कलाकार Arturo Di Modica द्वारा बनाए गए शिल्प बेहद दर्शनीय हैं। हम जगह-जगह बैलों की आकृति को देख सकते हैं।
पतली-पतली गलियों से निकल कर जब हम विन्सेन्ट मारनेज रिस्को (Vicente Martínez Risco) के भवन पहुँचे तो देखा कि लुइस, जो हमसे कुछ पहले पहुँच चुके थे, ख़ून से लथपथ थे। वह बाहर किसी डाॅक्टर के पास जा रहे थे। पता चला कि अँधेरे में उनका सिर किसी काँच से टकरा गया था और ख़ून बहने लगा। अना उन्हें लेकर भागी।
सुबह से लुइस बच्चों की तरह उत्साहित थे, लेकिन अब उनका ख़ून से लथपथ चेहरा देखकर मन उदास हो गया। मैंने अपना मन विन्सेन्ट के पुस्तकालय आदि को देखने में लगाया। उनके पुस्तकालय और आदमकद मूर्तियों से स्पष्ट ही उनकी साहित्यिक समृद्धि की जानकारी मिल रही थी। क्या हम मेधावी विन्सेन्ट के बारे में कुछ जानते थे? मैं अपनी अज्ञानता को स्वीकार करूंगी कि नहीं जानती थी। लेकिन पता चला कि कोलकाता से उनका सम्बन्ध था। विन्सेन्ट ने गेलेसियन भाषा के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान तो दिया ही, साथ ही गेलेसियन भाषा भाषियों को वैश्विक साहित्य से परिचित करवाया। कुछ देर बाद लोग आने शुरु हो गए थे। तीन लोग मेरी कविता का अनुवाद पढ़ने वाले थे। वे तीनो मुझसे बात करने लगे। मुझे यह देखकर अच्छा लगा कि वे कविता को समझना चाह रहे थे, जिससे सही तरीके से पाठ कर सकें। मैं लुइस के बारे में सोच ही रही थी, कि वे और अना आते दिखाई दिये। लुइस किसी बच्चे की तरह चपल थे।
भवन के कमरे छोटे -छोटे थे। उन्हीं में से एक अपेक्षाकृत बड़े कमरे में पाठ आरंभ हो गया। गेलेसियन भाषा में अनुवाद के कारण लोग कविता समझ भी पा रहे थे। काव्य पाठ अच्छी तरह से चला, लुइस दर्द भूल कर फिल्म बनाते रहे। कमरा तंग था, लेकिन लोगों में उत्साह था।
मुझसे कुछ सवाल भी पूछे गए। एक सवाल ने मुझे चक्कर में डाल दिया। मेरे अनुवाद का पाठ करने वाले ने पूछा कि आपकी कविताओं में खिड़की और दरवाज़े के प्रतीक बहुतायत में आये हैं, क्या कारण है? दरअसल जिन कविताओं का गेलेसियन में अनुवाद हुआ था, वे मेरी शुरुआती दौर की कविताएं थी। निसन्देह उस वक़्त मैं सामाजिक बन्धनों से जूझकर अपने लिए राह बनाने की कोशिश कर रही थी। ऐसे में खिड़की, दरवाज़ा, आँगन — ये सब स्वतन्त्रता के प्रतीक रहे होंगे।
पाठ के बाद स्थानीय पुडिंग, चीज़ और वाइन की पार्टी थी। देर रात को मुझे होटल में पहुँचा कर अना और लुइस घर चले गए और बताया कि वे अगली दुपहर मुझे लेनेआयेंगे। योलाण्डा ने बताया था कि मैं अलारिज दो दिन रहूंगी। लेकिन लुइस को अकरुना में कोई काम था, इसलिये अगले दिन ही लौटना था।
दूसरे दिन मुझे करीब के होटल में नाश्ता करना था, जो वहाँ का ख़ास नाश्ता कहलाता था, वह था चाॅकलेट ड्रिंक। होटल के कमरे में चाय की केतली नहीं थी। सुबह-सुबह चाकलेट ड्रिंक पीना मेरे लिए सहज नहीं था। मैंने देखा कि वहाँ एक-दो बेहद बूढ़े व्यक्ति बैठे हैं। मालूम पड़ा कि होटल वाला उन्हें रोज़ाना मुफ़्त में चाॅकलेट ड्रिंक देता है, जिसे वे आराम से पीकर जाते हैं। समाज सेवा का यह तरीक़ा भी बढ़िया है। वृद्ध बाहर आकर अख़बार पढ़ते हैं, चाॅकलेट ड्रिंक पीते हैं, और ग्यारह बजे तक चौक में चले जाते हैं, धूप सेंकने के लिए। उम्र की अन्तिम दहलीज हथेली पर वक़्त की चादर रख देती है।
वापस आने पर होटल वाले ने मुझे कमरा ख़ाली करने को कहा। कुछ देर में अना आ गईं। मैंने तब तक अपना सामान लगा लिया था। अब अपना बेग होटल में छोड़ कर हम दोनों फिर से नगर प्रदक्षिणा को चल दिये। वही पतली गलियां, वे गरम सोते, हवेलियां, चौक…। अना को हर कदम पर जान-पहचान वाला मिल जाता। मुझे लगा कि कितना अच्छा होता है इस तरह के नगर में रहना, जहाँ सब अपने ही हों।
यह नगर अपनी स्मृतियों की पोटली ले पीछा करता रहता है।
रति सक्सेना कवि, आलोचक, अनुवादक और वेद शोधिका हैं। उनसे अधिक परिचय के लिए देखिए : रति सक्सेना की कविताएँ
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रति सक्सेना ने स्पेन के छोटे से नगर की बड़ी छवि प्रस्तुत की है।