इतिहास के आवरण में होर्हे लुईस बोर्हेस की अपनी सृष्टि
- golchakkarpatrika
- 4 days ago
- 8 min read
Updated: 3 days ago

बोर्हेस की कहानियों में ‘भूलभुलैया’ बार-बार आती है। एक नये पाठक को उनकी कहानियां पढ़ते समय ऐसे ही चक्करदार पाठ का अनुभव हो सकता है। उनकी बनाई हुई सृष्टि भी वैसी ही है— असंख्य घुमावदार वीथियों का सिलसिला। पर जब आप इन रास्तों के अभ्यस्त होने लगते हैं तो उनमें गुम जाना एक अनिर्वचनीय सुख है।
मैंने उनकी कुछ कहानियां पढ़ी हैं, और जब तक ऐसा हो कि केवल उनकी सृष्टि ही सामने रहे, उनकी रचनाएं परस्पर गुम्फित होकर उनके बनाए संसार में समाविष्ट हो जाएं, एक कहानी मुझे बारहा याद आती है—
‘हकीम- मर्व का नकाबपोश रंगसाज़’
यह एक रंगरेज़ के उस समय की उभरती सत्ता के विरुद्ध वैचारिक और सशस्त्र संघर्ष पर आधारित कहानी है। अपने कथानक में कोई बहुत ग़ैर मामूली न होकर भी अपनी रचना में बहुत विशेष। यह देखने और महसूस करने वाली बात है कि कैसे इस ऐतिहासिक कहानी को बोर्हेस अपने विशिष्ट रूपकों से अपनी बना डालते हैं जो अपने अंतिम प्रभाव में पुनर्रचना न लगकर एक अनूठी मौलिक कृति महसूस होती है।
चूँकि कहानी के तथ्य ऐतिहासिक हैं, इसलिए थोड़ा इसकी पृष्ठभूमि पर बात करते हैं।
एक स्वाभाविक सा तथ्य है कि इस्लाम जब अपने शुरुआती दिनों में अपने आधार को मजबूत और व्यापक कर रहा था, तब उसके प्रभाव क्षेत्र की परिधि में कुछ इलाक़े ऐसे भी थे जहाँ उसे प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
इस्लाम जब ईरान में आया तो उसका सामना शासन और सभ्यता की लम्बी चली आ रही सुस्थापित परम्पराओं से हुआ। निश्चय ही धर्म के तौर पर इस्लाम इस नये क्षेत्र में सफल रहा, पर कहीं न कहीं वह ईरान के विचारों, दर्शन, जीवनशैली, भाषा और संस्कृति से प्रभाव ग्रहण किये बिना न रह सका होगा।
ऐसे ही दौर में मध्य एशिया में ईरानी प्रान्त खुरासान के कुछ हिस्से इस्लाम को स्वीकार तो कर रहे थे पर उनमें झिझक बनी हुई थी। वे अब्बासिद ख़लीफ़ाओं के ज़ोर आज़माइश वाले तौर तरीक़ों को जज़्ब नहीं कर पा रहे थे।
इसी प्रान्त के एक शहर ‘मर्व’ के बाशिंदे रंगरेज़ हकीम ने अब्बासिद ख़लीफ़ाओं के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष छेड़ दिया। केवल इतना ही नहीं, उसने अपने आपको भगवान का संदेशवाहक कहना प्रारम्भ कर दिया। अब्बासिदों के काले लिबास के विरोध में उसके अनुयायी सफ़ेद पोशाक पहनते थे। हकीम का किरदार और उसका जीवनवृत्त ऐतिहासिक है जिसका वर्णन ‘तारीख़ ए बुख़ारा’ सहित कई स्रोतों में मिलता है।
मर्व एक क़दीमी शहर है जो आज तुर्कमेनिस्तान का हिस्सा है। सातवीं शताब्दी में इसे ख़ुरासान की राजधानी के रूप में अरबों ने पुनर्निर्मित किया ताकि मध्य एशिया में इस्लाम का प्रसार अधिक दक्षता और बेहतर तरीक़े से किया जा सके।
कुछ शहरों की आत्मा में ही नागर तत्व होते हैं। प्राचीन मर्व को जितनी बार ध्वस्त किया गया उस पर फ़िर से नया मर्व खड़ा किया जाता रहा। यह मर्व की महत्ता ही रही कि हर बार यह एक महत्वपूर्ण शहरी केंद्र बनता रहा। धूल भरी आंधियां और ग़र्म हवाएं इसके जीवंत चरित्र को झुलसा न सकीं।
सबसे महत्वपूर्ण बात जो इसके पक्ष में जाती थी, वह थी एक विशेष अक्षांश-देशांतर पर इसकी उपस्थिति। सभ्यताओं के चौराहे पर रेशम मार्ग में आने वाला मर्व दुनिया भर के बुद्धिजीवियों, विद्वानों, कलाकारों, शिल्पियों को पुराने ज़माने से अपने पास बुलाता रहा है। यह विचारों की कई हवाओं के असर में रहा और शायद इसीलिए इस्लाम के ईरान में फैलने के बाद भी इस जैसी जगहों पर पहले से प्रचलित धर्मों, आस्थाओं और स्थानीय विश्वासों का असर आठवीं सदी तक कई तरह से गया नहीं था।
वहीं अब्बासिद ख़लीफ़ाओं की सेना पूरी शक्ति से नये इलाकों को जीतने और वहाँ अपने धर्म का प्रचार करने में रत थी।
पृष्ठभूमि के बाद अब बोर्हेस की कहानी पर आते हैं।
सामान्यतः पौर्वात्य धर्म दर्शन और विशेषतः अरब और इस्लाम को अपनी कई कहानियों में लाने वाले महान कथाकार होर्हे लुइस बोर्हेस ने मर्व के इसी बाशिन्दे हकीम पर अपनी कहानी ‘हकीम, द मास्क्ड डायर ऑफ़ मर्व’ लिखी है।
यह कहानी साल 1934 में एक पत्र ‘क्रिटिका’ में प्रकाशित हुई थी और उनके किसी संग्रह में सबसे पहले 1935 में आये संग्रह ‘यूनिवर्सल हिस्ट्री ऑफ इन्फेमी’ या ‘यूनिवर्सल हिस्ट्री ऑफ इनीक्विटी’ में शामिल हुई थी।
कहानी का मुख्य किरदार रंगसाज़ी का उस्ताद ऐतिहासिक चरित्र हकीम है। उसका समय आठवीं सदी का है जब वह खुरासान प्रांत के मर्व में रहता था। वह हर वक़्त सफ़ेद रंग का रेशमी नकाब पहनता था और उसने अपने आप को नई आस्था का मसीहा घोषित का दिया था। इस तरह वह इस्लामी ध्वजवाहको के विरुद्ध ईरान के पश्चिमोत्तर में एक चुनौती बन गया था।
एक ऐतिहासिक कहानी को जब बोर्हेस लिखते हैं तो यह किसी तारीख़ी घटना का पुनर्कथन भर नहीं हो सकता। उसे वह इस तरह अपनी विशिष्ट रचना बना डालते हैं कि ऐतिहासिकता उनकी विशिष्ट कृति का एक अवयव, एक स्ट्रोक भर रह जाती है और समूचे कथानक के आख्यान पर उनका वैशिष्ट्य आच्छादित हो जाता है।
बोर्हेस की विशेषता तथ्य और गल्प के द्वैत-अद्वैत की लुका छिपी है।
बोर्हेस की कहानियों में उद्धरण, ऐतिहासिक नाम, संदर्भ स्रोत और प्रकाशन के ब्यौरे इतने विश्वसनीय लगते हैं कि उनका कथा साहित्य तथ्य और गल्प के झूला पुल पर एक दूसरे की ओर झुकते रहने की असमाप्त श्रृंखला लगता है।
इस्लाम के इतिहास, गणित, आईने, अनंतता, प्रतिकृतियां, भूलभुलैया आदि उनके रचाव की महत्वपूर्ण सामग्री हैं। ये सब मोटिफ़ बोर्हेस की कहानियों मे सतत आवाजाही करते रहते हैं।
अपने पिता के भाइयों से विरासत में मिली रंगसाज़ी की कला मर्व के इस ‘अवगुंठित रंगसाज़’ हकीम के विपथगामी आचरण का पहला संकेत है क्योंकि ‘एक रंगसाज़ ईश्वर के दिए नैसर्गिक रंगों में घाल मेल कर उसकी व्यवस्था में हस्तक्षेप करता है।’
कहानी इतिहास के चरित्रों, जगहों, घटनाओं वगैरह के बारे में बात करती है पर इसकी केंद्रीय थीम बोर्हेस के वे मोटिफ़ ही हैं जिनमें एक गणितीय सृष्टि को लेकर उनका अपना आग्रह, संख्याओं के प्रति उनका अतिशय झुकाव, प्रतिकृतियां और छायाओं की संख्या, उनका विशेष आवृत्ति मोह ही प्रधान कहा जा सकता है। कहानी पात्रों और घटनाओं की दिशा तक तो ऐतिहासिक स्रोतों के प्रति वफ़ादार रहती है पर अपनी संरचना में यह एक विशिष्ट बोर्गेजियन कहानी है।
देखिये कैसे हकीम की ब्रह्माण्ड सम्बन्धी अवधारणा में बोर्हेस चुपके से दाखिल हो जाते हैं-
“एक अजन्मा, अनाम, बेचेहरा भगवान था जिसकी आकृति नौ छायाएं डालती थी। समेकित प्रभाव में ये नौ छायाएं एक स्वामी के रूप में पहले स्वर्ग का शासन करती थीं। ठीक पहले जैसा दूसरा अपने से निम्नतर लोक का स्वामी था और हूबहू तीसरा अपने से निम्नतर का। इस तरह 999 लोक थे। ये सभी पहले की ठीक प्रतिकृति थे। सबसे निचले लोक का, यानी निम्नतम का भगवान जो स्वयं छाया की छाया था जो बदले में किसी छाया की छाया था, हम धरती वालों पर शासन करता था और जिसकी दिव्यता का अंश शून्य की और अग्रसर होता था।”
“पृथ्वी एक त्रुटि है। आईने और पितृत्व घृणित हैं क्योंकि वे संख्याएं बढ़ाते हैं।”
कितनी सुंदरता से बोर्हेस इसमें गणित के रूप में आ गए हैं। यहाँ हकीम की कहानी, उसकी ऐतिहासिकता सब बोर्हेस की विशिष्ट रचनाशैली और उसके उपादानों की अनुगामी होकर रह गई हैं।
कहानी में मर्व का अवगुंठित मसीहा दावा करता है कि जिबरील उसका सर ईरानी तलवार से काट कर अपने दाहिने हाथ में पकड़े ऊपर उड़ चला और उसके सर को सीधे सर्वशक्तिमान के सामने प्रस्तुत किया। तब उस ईश्वर ने उसके मुंह को जो शब्द कहे वे इतनी प्राचीन पवित्रता से भरे थे कि उच्चारने वाले का कंठ जल जाए!
कहानी की यह घटना अनायास एक वैदिक कथा की स्मृति कराती है जब अश्विनी कुमार दध्यंच से गुप्त सोमयज्ञ ज्ञान का आग्रह करते हैं। उस ज्ञान का जिसके लिए इंद्र ने दध्यंच को स्पष्ट मना किया होता है। शक्तिशाली इंद्र का भय दध्यंच अश्विनी कुमारों के सामने व्यक्त करते हैं कि यदि यह ज्ञान मैंने तुम्हें दिया तो इंद्र मेरा शिर विच्छेद कर देंगे। तब एक उपाय के तहत अश्विनी कुमारों ने दध्यंच का सिर काट कर उसकी जगह एक अश्व का मुख लगा दिया। फिर अश्वमुख ने उन दोनों को वह गुप्त ज्ञान दिया। इंद्र को जब पता चला तो उसने तुरंत दधीचि का अश्व शिर काट दिया। अश्विनी कुमार इस होनी को जानते थे इसलिए उन्होंने छिपाया हुआ असल शिर दधीचि के पुनः लगा दिया। (वेंडी डॉनिगर - हिन्दू मिथ्स)
वैदिक कथा को उद्धृत करना यहाँ बहुत मायने नहीं रखता पर कहीं न कहीं बोर्हेस कहानी में आये सन्दर्भों और घटनाओं का निर्माण मूल रचनाओं की उपादान सामग्री की तरह कैसे कर पाते हैं, इसका अंदाज़ा लग सकता है। और यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अक्सर हम सोचते हैं कि इनकी कहानियों में गल्प कैसे तथ्य की तरह भासता है।
कहानी में हकीम पहले एक बैल का मुखौटा पहने रहता है पर बाद में इसके स्थान पर एक चार तह वाला रेशमी नकाब पहनता है। उसका दावा है कि जो भी उसका मुंह देखेगा, उसके तेज से अँधा हो जाएगा।
अंततः ख़लीफ़ाओं की सेना उसका नकाब नोच लेती है और तेजोमय मुख के स्थान पर एक कोढ़ग्रस्त, ग्रंथियों से भरा बदसूरत चेहरा सामने आता है। वह तुरंत ईरानी तलवारों से बींध दिया जाता है।
कहानी में हक़ीम का ये अंत ऐतिहासिक अंत से अलग है जिसके अनुसार वह अपनी शताधिक पत्नियों को आग में झोंक कर स्वयं भी जल मरता है। अंत को अलग करने के पीछे भी बोर्हेस संभवतः अपनी एक और प्रिय थीम ‘अस्मिता’ को कहानी में नुमाया करना चाहते होंगे। चरित्रों की अस्मिता के द्वन्द्व को उभारना उनका प्रिय शगल रहा है। उनकी कहानियों में इसे भी बार बार आते देखा जा सकता है।
कहानी हकीम के कई चमत्कारों का ज़िक्र अवश्य करती है किंतु यह उसका अभीष्ट नहीं। अन्यथा वह हकीम के सबसे प्रसिद्ध चमत्कार ‘नख़्शब के चाँद’ का ज़िक्र भी करती जिसके अनुसार हकीम ने एक कुएं में धातु के विशाल पात्र में पारा भरकर एक चाँद निर्मित किया था जो हर रात कुएं से निकलता और लोगों को चमत्कृत करता।
कहानी अपने लक्ष्य के अनुसार ही केवल ज़रूरी भर विवरण और तथ्यों से काम चलाकर बोर्हेस की बनाई विशिष्ट सृष्टि में समा जाती है। वह सृष्टि जो उन्होंने गणित, अवकलन, आईनों, संख्याओं, अनंतता आदि से अपनी अनेक कहानियों के ज़रिये रची है।
ब्रह्माण्ड की उनकी अवधारणा गणितीय व्यवस्था में विन्यस्त एक पुस्तकालय जैसी है जिसमें किताबें नहीं संख्यागत व्यवस्था की गणितीय सटीकता ही महत्वपूर्ण हैं।
बोर्हेस ने ऐतिहासिक चरित्रों पर कई कहानियां लिखी हैं और यह भी उनमें से एक है। उनकी बहुत सी कहानियां जो ऐसी नहीं हैं, उनमें भी स्रोत, विश्वकोश, सिक्के, नाम, जाली प्रकाशन इत्यादि इतने विश्वसनीय रूप से आते हैं कि जैसे उन्हें कल्पित तथ्यों की पुष्टि में प्रस्तुत किया जा रहा हो। और इस तरह ऐतिहासिक चरित्र या कल्पित लेखकीय पात्र सब एक जैसे प्रतीत होते हैं। सब में एक ही प्रकार से रखे गए विवरण। कुल मिलाकर ये सब लेखक के रचे प्रतिसंसार के अवयव, उसके संघटक ही बन जाते है।
यही बोर्हेस का जादू है।
मूल कहानी Hakim- the masked dyer of Merv इस लिंक के ज़रिए पढ़ी जा सकती है।
होर्हे लुईस बोर्हेस का जन्म वर्ष 1899 में बूइनस आयरिस, अर्जेन्टीना में हुआ। शिक्षा यूरोप में हुई। स्पेनिश भाषा के महानतम रचनाकारों में से एक। कविताएँ, कहानियाँ और लेख कई संग्रहों में प्रकाशित। दक्षिणी अमेरिकी होकर भी आत्मा और चेतना से विश्व नागरिक। मारियो वरगास लोसा के अनुसार “सरवेंतिस के बाद स्पेनिश भाषा से सबसे महान लेखक। उन्हें नोबेल न दिया जाना उतना ही बुरा जितना कि जॉयस, प्रूस्त या काफ्का को नहीं दिया जाना।” उनकी कहानियों और काम के बारे में इतालो काल्विनो का कहना है : “मुझे उनका लिखा पसंद है क्योंकि उनका लिखा हर अंश ब्रह्मांड का प्रतिरूप प्रस्तुत करता है।” बोर्हेस बाद के जीवन में लगातार दृष्टि बाधा से जूझते रहे। उनकी मृत्यु 1986 में जेनेवा में हुई।
संजय व्यास के दो गद्य संग्रह ‘टिम टिम रास्तों के अक्स’ और ‘मिट्टी की परात’ प्रकाशित हैं।
%20(3).png)




Comments