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बिल्लियों का क़स्बा (मुराकामी की कहानी)

  • golchakkarpatrika
  • Aug 1
  • 33 min read
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कहानी : हारुकी मुराकामी
अंग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह 

टेंगो कोइन्जी स्टेशन पर चुओ लाइन की तीव्र सेवा वाली रेलगाड़ी पर सवार हुआ। डिब्बा ख़ाली था। उसने उस दिन के लिए कोई योजना नहीं बना रखी थी। जहाँ कहीं वह जाता, जो कुछ वह करता, वह सब पूरी तरह उसी की इच्छा पर निर्भर था। इस समय गर्मियों की एक हवाविहीन सुबह के दस बजे थे, सूरज त्रस्त किये दे रहा था। ट्रेन ने शिंजुकू, योत्सुया, ओचनोमिज़ू को पार किया और टोक्यो सेंट्रल स्टेशन, जो इस लाइन का आखिरी स्टेशन था, पर पहुँच गई। हर कोई नीचे उतर गया, और टेंगो ने भी अन्य सब का अनुगमन किया। फिर वह एक बेंच पर बैठ गया और इस बात पर थोड़ा विचार किया कि उसे कहाँ जाना चाहिए। "मैं जहाँ जाने का निर्णय लूँ, वहाँ कहीं भी जा सकता हूँ," उसने स्वयं से कहा "ऐसा लग रहा है कि आज का दिन गर्म रहने वाला है। मैं समुद्र तट पर जा सकता हूँ।" उसने अपना सिर उठाया और प्लेटफॉर्म पर लगी सूचना पढ़ने लगा।


इस बिंदु पर उसे भान हुआ कि वह इतने समय से क्या करता रहा था।


उसने अपना सिर झटकने का कई बार प्रयत्न किया लेकिन जो विचार उसमें धंसा हुआ था, वह बाहर निकलने को तैयार नहीं था। संभवतः उसने उसी समय, जब कोइन्जी में उसने चुओ लाइन की ट्रेन पकड़ी थी, अनजाने में ही अपना मन बना लिया था। उसने एक लंबी सांस ली, बेंच से उठा और स्टेशन के एक कर्मचारी से चिकुरा जाने वाली सबसे तेज ट्रेन के बारे में पूछा। वह आदमी ट्रेनों की मोटी समय-सारिणी के पन्ने पलटने लगा। उसे तातेयामा के लिए 11.30 पर जाने वाली स्पेशल एक्सप्रेस ट्रेन पकड़नी चाहिए, आदमी ने कहा, फिर वहाँ से लोकल ले लेनी चाहिए; वह दो बजे के आसपास चिकुरा पहुँच जाएगा। टेंगो ने टोक्यो-चिकुरा का आने-जाने का टिकट ख़रीदा। फिर वह स्टेशन में ही स्थित एक रेस्टोरेंट में गया और खाने के लिए करी, चावल और सलाद का ऑर्डर दिया।


उसका अपने पिता को देखने जाना एक अवसादकारी निर्णय था। वह उस व्यक्ति को कभी भी बहुत पसंद नहीं करता था, और दूसरी ओर उसके पिता भी उसके लिए मन में कोई विशेष प्रेम नहीं रखते थे। वे समय से चार वर्ष पूर्व ही सेवा मुक्त हो गए थे और उसके बाद जल्दी ही चिकुरा स्थित मानसिक बीमारों के लिए विशेषता प्राप्त एक सेनेटोरियम में भर्ती हो गए थे। टेंगो उन्हें वहां देखने दो बार से अधिक नहीं गया था- पहली बार उनके वहाँ प्रवेश के तुरंत बाद जब एक प्रक्रियागत समस्या के चलते टेंगो की आवश्यकता एकमात्र संबंधी होने के कारण पड़ी थी। दूसरी बार भी एक प्रशासनिक समस्या ही थी। कुल दो बार, बस।


सैनिटोरियम समुद्र के किनारे एक बड़े से भूमि के टुकड़े पर स्थित था। यह लकड़ी की ख़ूबसूरत पुरानी इमारत और कंक्रीट सीमेंट की तीन मंजिला नई इमारत का अजीब संयोजन था। हवा ताज़ा थी, और लहरों के शोर के अतिरिक्त वहाँ हमेशा शांति रहती थी। बगीचे के किनारे-किनारे चीड़ के वृक्षों की प्रभावशाली पंक्ति तेज़ हवा को रोकने का काम करती थी। और वहाँ चिकित्सा सुविधाएं बेहतरीन थी। अपने स्वास्थ्य बीमा, सेवानिवृति बोनस, बचत और पेंशन की मदद से टेंगो के पिता अपना शेष जीवन वहाँ आराम से व्यतीत कर सकते थे। हो सकता है, वे उत्तराधिकार में कोई बड़ी संपत्ति न छोड़ें लेकिन कम से कम उनकी बेहतर देखभाल हो जाएगी, इसी बात के लिए टेंगो बहुत आभारी था। टेंगो की उनसे कुछ लेने की अथवा उन्हें कुछ देने की कोई मंशा नहीं थी। वे दो बिलकुल भिन्न व्यक्ति थे जो दो पूरी तरह भिन्न स्थानों से आये थे और दो भिन्न स्थानों की ओर अग्रसर थे। संयोग से ही उन्होंने जीवन के कुछ वर्ष एक साथ व्यतीत किये थे, बस। यद्यपि यह एक लज्जाजनक स्थिति थी, लेकिन इस संबंध में कुछ ऐसा नहीं था जो टेंगो कर सकता ।


टेंगो ने टिकट के पैसे दिए और प्लेटफार्म पर जाकर तातेयामा के लिए ट्रेन की प्रतीक्षा करने लगा। उसके सहयात्री मात्र कुछ खुश दिख रहे परिवार थे जो कुछ दिनों के लिए बीच (समुद्र तट) पर जा रहे थे।


अधिकांश लोग रविवार को आराम करने के दिन के रूप में सोचते हैं। यद्यपि अपने समूचे बचपन के दौरान टेंगो ने एक बार भी रविवार को आनंद मनाने के दिन के रूप में नहीं देखा। रविवार एक विरूप चाँद की भाँति था जो केवल अपना अंधेरा पक्ष दिखाता था। जब सप्ताहांत आता, उसकी पूरी देह थकी हुई और दर्द करती सी लगने लगती और उसकी भूख समाप्त हो जाती। उसने कई बार रविवार के न आने के लिए प्रार्थना भी की थी लेकिन उसकी प्रार्थनाएं कभी फलीभूत नहीं हुईं।


जब टेंगो बच्चा था, उसके पिता एन एच के- जापान के एक अर्धसरकारी रेडियो और टेलीविजन नेटवर्क के लिए ग्राहक शुल्क इकट्ठा करने का काम करते थे और हर रविवार जब वे भुगतान वसूली हेतु घर, घर जाते, उसे भी अपने साथ ले जाते। टेंगो इन अभियानों पर किंडरगार्टन में प्रवेश से पूर्व ही जाने लगा था और यह सिलसिला उसके पांचवी कक्षा तक चला, बिना एक भी सप्ताह की छुट्टी के। उसे नहीं पता था कि एन एच के के अन्य वसूलीकर्ता भी रविवार को काम करते थे अथवा नहीं लेकिन जहाँ तक उसे स्मरण है, उसके पिता हमेशा करते थे। बल्कि और अधिक उत्साह से क्योंकि रविवार को उसके पिता उन लोगों को भी पकड़ लेते थे जो सप्ताह के दौरान घर से बाहर रहते थे।


टेंगो के पिता कई कारणों से उसे अपने साथ इन अभियानों पर ले जाते थे। एक कारण था कि वे बच्चे को अकेले घर पर नहीं छोड़ सकते थे। सप्ताह के अन्य दिनों टेंगो स्कूल अथवा डे केयर में जा सकता था लेकिन रविवार को ये संस्थान बंद रहते थे। दूसरा कारण, टेंगो के पिता ने बताया था कि एक पिता के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वह अपने पुत्र को यह दिखाए कि वह किस तरह का काम करता था। एक बच्चे को प्रारम्भ से ही पता होना चाहिए कि किस प्रकार के कार्य से उसका पालन हो रहा था और उसे श्रम का महत्व पता चलना चाहिए। टेंगो के पिता भी अपने पिता के खेतों में काम करने के लिए भेजे जाते थे, रविवार को भी अन्य दिनों की भांति, तभी से जब वह कुछ समझने लायक हुए थे। उन्हें काम के सीजन में स्कूल भी नहीं भेजा जाता था। उनके लिए इस प्रकार का जीवन सामान्य था। 


टेंगो के पिता का तीसरा कारण अधिक सोचा-समझा हुआ था, इसीलिए इसने उनके बेटे के हृदय पर सबसे गहरे घाव छोड़े थे। टेंगो के पिता को अच्छे से पता था कि छोटे बच्चे के साथ होने पर उनका काम आसान हो जाता था। ऐसे लोग भी जो भुगतान न करने हेतु दृढ़ रहते, अक्सर पैसे निकाल देते जब वे एक बच्चे को अपनी ओर घूरता हुआ पाते। इसीलिए टेंगो के पिता सबसे कठिन इलाके रविवार के लिए बचाये रहते थे। टेंगो को प्रारंभ से ही एहसास हो गया था कि उससे यही भूमिका निभाने की अपेक्षा की गई थी, और उसे इससे अत्यधिक घृणा थी। लेकिन उसने यह भी महसूस किया कि उसे अपने पिता को ख़ुश करने को इस भूमिका को बड़ी चतुराई से निभाना है। यदि वह अपने पिता को प्रसन्न रखेगा, उसके साथ उस दिन कोमलता का व्यवहार किया जाएगा। इस प्रकार वह एक प्रशिक्षित बंदर बन गया था।


टेंगो के लिए सांत्वना की बात यह थी कि उसके पिता का वसूली का इलाका उसके घर से पर्याप्त दूर था। वे इचिकवा शहर के बाहरी इलाके के एक आवासीय मोहल्ले में रहते थे और उसके पिता के चक्कर शहर के मध्य के इलाकों में लगते थे। इस प्रकार वह कम से कम अपनी कक्षा के साथियों के यहाँ वसूली से बच जाता था। यद्यपि यदाकदा बाज़ार के इलाक़े से गुजरते हुए उसे उसकी कक्षा का कोई साथी दिख जाता था। जब ऐसा होता, वह दिखाई पड़ने से बचने हेतु अपने पिता के पीछे छिप जाता। 


सोमवार की सुबह उसके स्कूल के मित्र उत्साह से बताते कि एक दिन पूर्व वे कहाँ गए और क्या क्या किया। वे मनोरंजन पार्क, चिड़ियाघर और बेसबाॅल के खेल देखने गए होते थे। गर्मियों में वे तैराकी के लिए और सर्दियों में स्कीइंग के लिए गए होते। लेकिन टेंगो के पास बताने को कुछ न होता। रविवार को सुबह से साँझ तक वह और  उसके पिता अपरिचित लोगों के घरों की घंटियां बजाते, सिर झुकाते और जो भी दरवाज़े पर आता, उससे पैसे लेते। यदि कोई भुगतान न करना चाहता, तो उसके पिता धमकी देते अथवा उसकी खुशामद करते। यदि कोई भुगतान से बचना चाहने के लिए तर्क देता, उसके पिता अपनी आवाज़ ऊँची कर लेते। कई बार वे उन्हें गली के कुत्तों की भांति गाली देते। ये अनुभव ऐसे नहीं थे जिन्हें टेंगो अपने मित्रों के साथ बाँटता। वह अपने को व्हाइट कॉलर कामगारों के मध्यवर्ग के बच्चों के समाज में किसी अपरिचित ग्रह के प्राणी-सा पाता। वह एक अलग दुनिया में एक अलग तरह का जीवन जी रहा था। सौभाग्य से उसके ग्रेड अच्छे थे और एथलेटिक क्षमता भी। इसलिए यद्यपि वह दूसरे ग्रह का प्राणी था लेकिन बहिष्कृत नहीं था।  अधिकतर परिस्थितियों में वे उसके साथ सम्मान से पेश आते। लेकिन जब भी अन्य बच्चे उसे रविवार को कहीं जाने के लिए अथवा अपने घर आने के लिए निमंत्रित करते, उन्हें उनके प्रस्ताव को अमान्य कर देना पड़ता। जल्द ही उन्होंने पूछना ही छोड़ दिया।


कठिन तोहोकू क्षेत्र के एक कृषक परिवार में तीसरे पुत्र के रूप में जन्में, टेंगो के पिता ने 1930 के दशक में जितना शीघ्र संभव था, अपना घर त्याग दिया और मंचूरिया में गृहस्वामियों के एक समूह से सम्बद्ध हो गए। उन्हें सरकार के इस दावे पर विश्वास नहीं था कि मंचूरिया विशाल और समृद्ध कृषि क्षेत्र वाला एक स्वर्ग था। उन्हें इस वास्तविकता को जानने हेतु पर्याप्त ज्ञान था कि 'स्वर्ग' कहीं नहीं मिलने वाला। सामान्य रूप से कहें तो वे ग़रीब और भूखे थे। अधिक से अधिक वे यही आशा कर सकते थे कि यदि वे घर पर रहें तो जीवन भुखमरी के कगार पर ही रहेगा। मंचूरिया में उन्हें और अन्य गृहस्वामियों को कुछ कृषि उपकरण दिए गए और उन लोगों ने साथ-साथ खेती करना आरंभ कर दिया। ज़मीन घटिया और पथरीली थी और सर्दियों में सब कुछ जम सा जाता था। कभी-कभार भोजन हेतु आवारा कुत्ते मात्र ही उपलब्ध होते। फिर भी शुरुआत के कुछ वर्षों में सरकारी सहायता के बल पर उनका काम चलता रहा। जैसे ही उन्होंने समाचार सुना कि सोवियत सेनाओं ने सीमा पार कर ली है, उन्होंने अपना घोड़ा लिया, स्थानीय रेलवे स्टेशन की ओर भागे और डा-लियन के लिए आख़िरी से पहले की ट्रेन पर सवार हो गए। वे अपने कृषक साथियों में एकमात्र थे जो साल के अंत में वापस जापान पहुँच सके।


युद्ध के पश्चात टेंगो के पिता टोक्यो चले गए और एक कालाबाजारिये और एक बढ़ई के सहायक के रूप में जीवन बिताने की कोशिश करने लगे लेकिन वे मुश्किल से ख़ुद को जीवित रख पाए। तब वे एक शराब की दुकान पर डिलीवरी मैन का काम कर रहे थे जब संयोग से उनकी मुलाकात अपने एक पुराने मित्र, एक कर्मचारी जिसे वे मंचूरिया में जानते थे, से हो गयी। जब उस आदमी को पता चला कि टेंगो के पिता एक अच्छे काम की तलाश में दुर्दिन झेल रहे हैं, उसने उनकी सिफारिश एन एच के के सब्सक्रिप्शन विभाग में कर दी और टेंगो के पिता ने उसे ख़ुशी से स्वीकार कर लिया। यद्यपि वे एन एच के के बारे में कुछ नही जानते थे लेकिन वे हर उस चीज के लिये प्रयत्न करने को तैयार थे जिससे उन्हें एक निश्चित आय हो।


एन एच के में टेंगो के पिता ने अपने काम को बहुत उत्साह से किया। उनकी सबसे अच्छी विशेषता कठिन परिस्थितियों में भी उनकी दृढ़ता थी। किसी ऐसे के लिए जिसने जन्म के बाद शायद ही कभी पेट भर भोजन किया हो, एन एच के के लिए शुल्क वसूलने का काम बहुत कठिन काम नहीं था। उससे भी अधिक वे एक महत्वपूर्ण संगठन का सदस्य होने में संतुष्टि अनुभव करते थे, भले ही उसके सबसे निचले स्तर के सदस्य रहे हों। उनका प्रदर्शन और कार्य के प्रति निष्ठा ऐसी थी कि एक वर्ष पश्चात ही उन्हें अस्थायी वसूलीकर्ता की बजाय, कंपनी के स्थायी कर्मचारियों में सम्मिलित कर लिया गया, जो कि एन एच के में लगभग अभूतपूर्व उपलब्धि थी। जल्दी ही वे कारपोरेशन के स्वामित्व वाले एक घर में आ जाने में सफल रहे और कंपनी की स्वास्थ्य सेवा योजना में सम्मिलित कर लिए गए। यह उनके जीवन में आने वाला सबसे बड़ा सौभाग्य था।


युवा टेंगो के पिता ने कभी उसके लिए लोरी नही गायी, कभी सोते समय सिरहाने बैठ उसके लिए कहानियां नहीं पढ़ीं। इसकी जगह उन्होंने बच्चे को अपने वास्तविक अनुभवों की कहानियां सुनाई। वे अच्छे कहानी सुनाने वाले थे। उनके बचपन और युवावस्था की घटनाओं में बहुत अर्थगाम्भीर्य नहीं था किंतु उनके विवरण जीवंत थे। वे मज़ाक़िया, भावनात्मक और हिंसात्मक कहानियां थीं। यदि किसी जीवन को उसकी घटनाओं के रंगों और विविधता से मापा जा सकता है तो संभवतः टेंगो के पिता का जीवन, अपने विशिष्ट तरीके से ही सही, समृद्ध था। लेकिन उनकी कहानियों ने जैसे ही उनके एन एच के के कर्मचारी होने के कालखंड को छुआ, एकाएक उनकी सारी जीवंतता खो गयी। वे एक स्त्री से मिले, उससे विवाह किया और एक बच्चे, टेंगो, के पिता बने। टेंगो के जन्म के कुछ महीने बाद ही उसकी माँ बीमार पड़ी और मर गयी। उसके पिता ने उसके बाद, एन एच के के लिए कठोर मेहनत करते हुए भी, अकेले ही उसका लालन पालन किया। बस समाप्त। वे टेंगो की माँ से कैसे मिले और उससे विवाह किया, वह कैसी महिला थी, उसकी मृत्यु किस कारण से हुई, उसकी मृत्यु आसान थी अथवा उसे बहुत कष्ट सहना पड़ा- टेंगो के पिता ने इन सब बातों के संबंध में उसे लगभग कुछ नहीं बताया। यदि उसने पूछने की कोशिश भी की, उसके पिता ने प्रश्नों को टाल दिया। अधिकतर बार, इस तरह के सवालों पर वे क्रोधित हो जाते थे। टेंगो की माँ का एक भी फोटोग्राफ शेष नहीं था। 


टेंगो मूल रूप से अपने पिता की कहानी पर अविश्वास करता था। वह जानता था कि उसकी माँ उसके जन्म के कुछ माह बाद नहीं मरी थी। उसकी एकमात्र स्मृति में, जब वह डेढ़ साल का था, वह एक आदमी, जो उसके पिता नहीं थे, की बाहों से लिपटी पड़ी थी। उसकी माँ ने अपना ब्लाउज उतार दिया था, स्लिप के स्ट्रैप खोल दिये थे और उस व्यक्ति को, जो टेंगो का पिता नहीं था, अपने स्तन चूसने दिए थे। टेंगो उन दोनों की बग़ल में सोया था और उसकी सांस सुनाई पड़ रही थी। लेकिन उस समय, वह नींद में नहीं था। वह अपनी माँ को देख रहा था।


यह टेंगो के मन में उसकी माँ की छवि थी। दस सेकेंड का वह दृश्य उसके मस्तिष्क में पूरी स्पष्टता के साथ दाग़ दिया गया था। यही एक मात्र सुनिश्चित सूचना उसके पास अपनी माँ के संबंध में थी, एक तनावपूर्ण संबंध जो उसका दिमाग़ उसके साथ स्थापित कर सकता था। टेंगो और वह दोनों इसी काल्पनिक गर्भनाल से जुड़े हुए थे। यद्यपि उसके पिता को कोई भान नहीं था कि इस प्रकार का सघन चित्र टेंगो की स्मृतियों में अस्तित्वमान है, अथवा उस तरह, जैसे घास के मैदान में कोई गाय। टेंगो इसके टुकड़ों की अंतहीन रूप से जुगाली-सी करता रहता था चबाने हेतु, जिससे उसे आवश्यक पोषण-सा मिलता था। पिता और पुत्र दोनों ही अपने अपने गहरे, अंधेरे, गुप्त भेदों की कारा में कैद थे।


वयस्क होने पर, टेंगो अक्सर आश्चर्य करता कि क्या उसकी स्मृतियों में उसकी माँ के स्तनों को चूसता हुआ युवा आदमी ही उसका जैविक पिता था। यह इसलिए क्योंकि टेंगो किसी भी तरह अपने पिता, एन एच के के बासी वसूली एजेंट, से नहीं मिलता-जुलता था। टेंगो एक लंबा, तगड़ा, चौड़े माथे और पतली नाक वाला व्यक्ति था जिसके कान कसे हुए थे। उसके पिता एक नाटे, फूहड़ और एकदम अनाकर्षक व्यक्ति थे। उनका माथा संकरा, नाक चपटी और कान किसी घोड़े के कान की भांति नुकीले थे। जहाँ टेंगो का व्यक्तित्व आत्मविश्वास से भरा और शानदार था, वहीं उसके पिता नर्वस लगते थे, संकुचित से। उनकी तुलना करते हुए लोग कई बार खुलेआम उनकी असमानता के बारे में टिप्पणी कर देते।


फिर भी यह शारिरिक बनावट नहीं बल्कि उनकी मनोवैज्ञानिक संरचना थी जिसने टेंगो का अपने पिता के साथ सामंजस्य मुश्किल कर दिया था। उसके पिता में उस बात के कोई लक्षण नहीं थे जिसे बौद्धिक जिज्ञासा कहा जा सके। सही था कि गरीबी में पैदा होने के कारण उन्हें अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई थी। टेंगो को कुछ अंश तक अपने पिता की परिस्थितियों पर दया आती थी। लेकिन ज्ञान प्राप्ति हेतु एक मूलभूत इच्छा- जिसे टेंगो लोगों में कमोबेश एक नैसर्गिक ज़रूरत मानता था- का भी उस व्यक्ति में अभाव था। उसके पास कुछ व्यवहारिक बुद्धि थी जिससे उसका जीवन चलता रहा लेकिन टेंगो अपने पिता में स्वयं में और गहराई लाने, एक अधिक विस्तृत और वृहत्तर संसार को देखने की कोई चाहत नहीं देख सका था। ऐसा कभी नहीं महसूस हुआ कि टेंगो के पिता को अपने क्षुद्र, सिकुड़े जीवन की ठहरी हुई हवा से कोई असुविधा हुई हो। टेंगो ने उन्हें कभी कोई पुस्तक उठाते नहीं देखा। उन्हें संगीत अथवा फिल्मों में कोई रुचि नहीं थी। और उन्होंने कभी कोई यात्रा नहीं की। एक मात्र चीज जिसमें उनकी रुचि महसूस होती थी वह था उनका वसूली का रास्ता। वे उस इलाक़े का एक नक्शा बनाते थे, उस पर रंगीन कलमों से निशान लगाते थे, और जब भी उनके पास ख़ाली समय होता, वे उसका परीक्षण करते, उसी प्रकार जैसे एक जीवविज्ञानी क्रोमोजोम्स का अध्ययन करता हो।


इसके विपरीत टेंगो, हर वस्तु के प्रति जिज्ञासु था। उसने विभिन्न विस्तृत स्रोतों से ज्ञान उसी कुशलता से अर्जित किया जैसे एक शक्तिशाली मशीन मिट्टी खोदती है। वह शुरुआती बचपन से ही गणित के क्षेत्र में एक चमत्कार माना जाने लगा था और वह जब तीसरी कक्षा में था तभी दसवीं कक्षा के प्रश्न हल कर दिया करता था। युवा टेंगों के लिए गणित अपने पिता से अपने जीवन को दूर रखने का एक प्रभावी माध्यम था। गणितीय दुनिया में वह एक लंबे गलियारे में चला जा सकता था,  गिनती युक्त एक द्वार के पश्चात दूसरे द्वार को खोलता हुआ। हर बार उसके सम्मुख एक नया करिश्मा घटित होता था, वास्तविक दुनिया के कुरूप निशान बस अदृश्य हो जाते थे। जब तक वह सक्रिय रूप से अनंत तार्किकता के उस इलाके का अन्वेषण करता रहता, वह स्वतंत्र होता था। 


जहाँ टेंगो के लिए गणित एक वैभवशाली काल्पनिक भवन की तरह थी, वहीं साहित्य एक विशाल जादुई जंगल जैसा था। गणित का अनंत विस्तार उर्ध्वाकार स्वर्ग की ओर था किंतु कहानियां उसके समक्ष अपनी दृढ़ जड़ें धरती में गहरे तक फैलाये पसरी होतीं। इस जंगल में कोई नक्शा नहीं था, कोई द्वार नहीं था। जैसे, जैसे टेंगो की उम्र बढ़ी, कहानियों के जंगल का आकर्षण उसके हृदय को गणित की दुनिया से भी अधिक तीव्रता से खींचने लगा था। निश्चय ही, उपन्यास पढ़ना एक दूसरे तरह का पलायन था- जैसे ही वह पुस्तक बंद करता उसे वास्तविकता की दुनिया में वापस आना पड़ता। लेकिन किसी बिंदु पर उसने अनुभव किया कि उपन्यासों की दुनिया से वास्तविकता में वापस लौटना उतनी विध्वंसकारी चोट नहीं थी नहीं थी जितना गणित की दुनिया से वापस लौटना। ऐसा क्यों था? काफी विचार के पश्चात वह एक निष्कर्ष पर पहुँचा कि कहानी के जंगल में चीज़ें चाहे जितनी स्पष्ट हो जाएं, लेकिन उनका एक निश्चित हल नहीं होता जैसा कि गणित में होता था। कहानी की भूमिका, अधिक से अधिक, किसी समस्या को एक दूसरे रूप में पक्षान्तरित कर देने की थी। समस्या की प्रकृति और दिशा के आधार पर, लेखन में एक हल सुझाया जा सकता था। टेंगो सुझाव के साथ वास्तविक दुनिया में वापस आ जाता था। यह कागज के ऐसे टुकड़े की भांति था जिस पर अपठनीय लिपि में किसी जादू का मंत्र लिखा हो। इससे कोई तात्कालिक उद्देश्य नहीं पूरा होता था लेकिन इसमें एक संभाव्यता निहित होती थी।


इस पठन-पाठन से जो एक संभव हल समझ पाने में टेंगो सक्षम रहा, वह था : मेरे वास्तविक पिता कहीं और होने चाहिए। डिकेन्स के उपन्यास के किसी अभागे बालक की तरह संभवतः कुछ विचित्र परिस्थितियों वश टेंगो का भी पालन-पोषण इस बहुरूपिये द्वारा किया गया। इस तरह की संभाव्यता एक साथ ही एक दुःस्वप्न और एक महती आशा दोनों थी। 'ऑलिवर ट्विस्ट' पढ़ने के पश्चात टेंगो ने पुस्तकालय में मौजूद डिकेन्स की सारी पुस्तकें चाट डालीं। जैसे, जैसे उसकी यात्रा डिकेन्स की पुस्तकों से हो कर गुज़रती रही, वह अपने स्वयं के पुनः कल्पित जीवन में गहरे धंसता गया। उनका एक-सा प्रतिरूप था लेकिन अनेक प्रकारांतरो के साथ। उन सभी में टेंगो स्वयं से कहता, वह अपने पिता के घर नहीं है जहाँ से वह सम्बद्ध है। वह ग़लती से इस पिंजरे में क़ैद हो गया है और किसी दिन उसके वास्तविक माता-पिता उसे ढूंढ लेंगे और मुक्त करा देंगे। फिर उसके पास सबसे सुंदर, शांत और स्वतंत्र रविवार, जिसकी कल्पना की जा सकती है, होगा।


टेंगो के पिता अपने बेटे की शैक्षणिक उपलब्धियों पर गर्व करते थे और अड़ोस-पड़ोस के लोगों से उनके बारे में डींगें हांका करते थे। लेकिन उसी के साथ ही वे टेंगो की तीक्ष्ण बुद्धि और प्रतिभा के प्रति एक तरह की अप्रसन्नता भी दर्शाते थे। अक्सर जब टेंगो अपने पढ़ने की मेज़ पर होता, उसके पिता हस्तक्षेप करते और उसे कोई गृहकार्य करने को कह देते अथवा उसके काल्पनिक आक्रामक व्यवहार के लिए उसे डांटने लगते। उसके पिता की डांट का निहितार्थ सदैव एक ही होता : जहाँ एक तरफ़ वे रोज़ दूर दूर फटेहाल लोगों की गालियां सुनते हुए दौड़ते हैं, वहीं टेंगो आराम से रहता हुआ कुछ नहीं करता। "जब मैं तुम्हारी उम्र का था वे मुझसे हाड़तोड़ मेहनत करवाते थे और मेरे पिता और बड़े भाई किसी भी बात के लिए पीट, पीट कर मुझे काला-नीला कर देते थे। वे कभी मुझे पर्याप्त भोजन नहीं देते थे। वे मेरे साथ एक जानवर का सा व्यवहार करते थे। मैं नहीं चाहता कि तुम केवल इसलिए अपने को कुछ विशिष्ट समझने लगो क्योंकि तुम्हें कक्षा में कुछ अच्छे अंक प्राप्त हो गए हैं।"


'यह व्यक्ति मुझ से ईर्ष्या करता है', किसी बिंदु विशेष पर टेंगो ने यह सोचना प्रारंभ कर दिया। उसे मुझसे जलन है या तो एक व्यक्ति के रूप में अथवा उस जीवन से जो मैं जी रहा हूँ। किंतु क्या एक पिता वास्तव में अपने पुत्र से ईर्ष्या करेगा? टेंगो ने अपने पिता के संबंध में कोई धारणा नहीं बनाई किंतु वह उनके शब्दों और कार्यों से नि:सृत एक घृणित प्रकार की निकृष्टता का अनुभव करने से स्वयं को नहीं रोक सका। ऐसा नहीं था कि टेंगो के पिता उससे एक व्यक्ति के रूप में घृणा करते थे बल्कि वे टेंगो के भीतर किसी चीज़ से घृणा करते थे, कोई ऐसी चीज़ जिसे वे क्षमा नहीं कर सकते थे।


जब ट्रेन टोक्यो स्टेशन से रवाना हुई, टेंगो ने यहाँ आते समय ख़रीदी पेपरबैक किताब निकाल ली। यह यात्राओं के बारे में कहानियों का एक संग्रह थी जिसमें 'बिल्लियों का कस्बा' नाम की एक कहानी शामिल थी, एक जर्मन लेखक, जिसे टेंगो नहीं जानता था, की शानदार कहानी। पुस्तक की प्रस्तावना के अनुसार कहानी दोनों विश्व युद्धों के मध्य के समय में लिखी गयी थी। 


कहानी में एक युवा बिना किसी ख़ास मंजिल को ध्यान में रखे एकाकी यात्रा कर रहा है। वह ट्रेन में चढ़ता है और किसी भी ऐसे स्टेशन पर उतर जाता है जो उसे रुचिकर लगता है। वह एक कमरा किराए पर लेता है, दृश्यावलियां देखता है, और तब तक रुकता है, जब तक उसे पसंद होता है। जब उसका मन भर जाता है, वह किसी और ट्रेन पर सवार हो लेता है। वह हर छुट्टी इसी तरह बिताता है। 


एक दिन वह ट्रेन की खिड़की से एक ख़ूबसूरत नदी को देखता है। घुमावदार धारा के किनारे किनारे छोटी छोटी हरी-भरी पहाड़ियां हैं और उनके मध्य पत्थर के पुराने पुल वाला एक छोटा सा प्यारा क़स्बा स्थित है। ट्रेन क़स्बे के स्टेशन पर रुकती है और युवक अपने बैग के साथ उतर जाता है। कोई और नहीं उतरता और ज्यों ही वह उतरता है, ट्रेन चल देती है।


स्टेशन पर, जहाँ बहुत कम काम-धाम है, कोई कामगार नहीं हैं। युवक पुल को पार करता है और क़स्बे में चलने लगता है। सभी दुकानों के शटर बंद हैं, टाउन हॉल वीरान है। शहर के एकमात्र होटल के रिशेप्शन पर कोई नहीं है। लगता है उस जगह कोई नहीं रहता। संभवतः सभी लोग किसी जगह झपकी ले रहे हैं। लेकिन अभी सुबह के मात्र साढ़े दस बजे हैं, नींद लेने के लिए बहुत जल्दी का समय। सम्भवतः किसी बात के कारण सभी लोगो को क़स्बा छोड़ना पड़ा होगा। किसी भी हाल में अगली ट्रेन अगले दिन सुबह तक ही आएगी इसलिए उसके पास इसी जगह रात्रि बिताने के अतिरिक्त अब कोई विकल्प न था। वह क़स्बे में इधर-उधर समय बिताने हेतु घूमने लगा। 


वास्तव में यह बिल्लियों का क़स्बा है। जब सूरज ढलने लगता है, बहुत से बिल्लियों के झुंड पुल के पार से आते हैं- सभी तरह की और रंगों की बिल्लियां। वे सामान्य बिल्लियों से काफी बड़ी थीं, फिर भी वे बिल्लियां ही थीं। यह दृश्य देखकर युवक स्तंभित रह गया। वह शीघ्रता से शहर के मध्य स्थित घंटाघर में चला गया और छुपने हेतु उसमें सबसे ऊपर चढ़ गया। बिल्लियां अपने काम में लगी रहीं, दुकानों के शटर खोलतीं अथवा दिन का काम आरंभ करने हेतु अपनी मेजें संभालतीं। जल्दी ही शहर में औरों की भांति पुल पार कर के और बिल्लियां आ गयीं। वे दुकानों में सामान ख़रीदने के लिए चली गयीं अथवा टाउन हॉल में जा कर प्रशासनिक कार्य देखने लगीं या रेस्टोरेंट में भोजन करने लगीं अथवा मधुशाला में जा कर बियर पीने और जानदार बिल्ली गीत गाने लगीं। चूंकि बिल्लियां अंधेरे में ही देख सकती हैं, उन्हें प्रकाश की लगभग न के बराबर आवश्यकता थी। लेकिन उस रात क़स्बा पूर्ण चंद्र के प्रकाश से आप्लावित था जिससे युवक घंटाघर के अपने छिपने के स्थान से प्रत्येक विवरण देख पा रहा था। जब भोर होने को हुई, बिल्लियों ने अपना काम पूरा कर लिया, दुकानें बंद कीं और पुल के पार वापस चली गयीं। 


जब तक सूर्योदय हुआ, बिल्लियां जा चुकी थीं और शहर फिर से वीरान हो गया था। युवक नीचे उतरा, अपने लिए होटल का एक बेड चुना और सो गया। जब उसे भूख लगती, वह होटल के किचन में बची ब्रेड और मछलियां खा लेता। जब अंधेरा घिरने लगता, वह पुनः घंटाघर में छिप जाता और भोर होने तक बिल्लियों के क्रियाकलापों का अवलोकन करता रहता। ट्रेन स्टेशन पर दोपहर से पहले और अपराह्न में रुकती थी। कोई सवारी न तो उतरती थी न ही चढ़ती थी। फिर भी ट्रेन उस स्टेशन पर ठीक एक मिनट रुकती थी, फिर पुनः चल देती थी। वह इनमें से कोई एक ट्रेन पकड़ सकता था और उस विचित्र कस्बे को पीछे छोड़ सकता था। लेकिन उसने ऐसा किया नहीं। युवा होने के कारण उसके भीतर एक जीवंत जिज्ञासा थी और वह साहसिक कार्यों के लिए तैयार था। वह इस चमत्कार का और अधिक भाग देखना चाहता था। यदि संभव होता, वह यह पता लगाना चाहता था कि यह क़स्बा कब और किस प्रकार बिल्लियों का क़स्बा बन गया। 


तीसरी रात घंटाघर के नीचे चौराहे पर हड़कंप मच गया। “हे, क्या तुमने कोई मानव गंध महसूस की है?” बिल्लियों में से एक ने कहा। “अब जब तुमने इसका ज़िक्र किया है तो मुझे भी लगता है पिछले कई दिनों से कोई विचित्र गंध आ रही थी।” एक और ने अपनी नाक खुजाते हुए कहा। “ मुझे भी” एक और बिल्ली ने कहा। “नहीं, निश्चित रूप से नहीं। कोई तरीक़ा नहीं जिससे कोई मनुष्य बिल्लियों के इस क़स्बे में आ सके।” “लेकिन वह गंध निश्चित रूप से यहाँ है।”


बिल्लियों ने छोटे-छोटे समूह बना लिए और क़स्बे की तलाशी सतर्कता से शुरू कर दी। यह पता करने में उन्हें बहुत कम समय लगा कि गंध का स्रोत घंटाघर ही है। युवक ने सीढ़ियों से आती उनके गद्देदार पैरों की आवाज़ सुनी। तो अब! उन्होंने मुझे खोज लिया। उसकी गंध ने बिल्लियों को गुस्सा दिला दिया लगता था। मनुष्यों से इस क़स्बे में पांव रखने की अपेक्षा नहीं की जाती थी। बिल्लियों के तेज़ पंजे और सफ़ेद दाँत थे। उसे पता नहीं था कि यदि उसे खोज लिया जाता तो उसका क्या भयानक हश्र होना था लेकिन यह निश्चित था कि वे उसे क़स्बे से जीवित तो नहीं ही जाने देंगी।


तीन बिल्लियाँ घंटाघर की मीनार पर चढ़ गईं और हवा में सूघने लगीं। “आश्चर्य” एक बिल्ली ने अपनी मूछें सहलाते हुए कहा “मुझे मानव गंध आ रही है लेकिन यहाँ कोई नहीं है।”


“यह आश्चर्यजनक है,” एक दूसरी बिल्ली ने कहा “लेकिन यहाँ निश्चित रूप से कोई नहीं है। आओ चलें और कहीं और ढूँढें।”


बिल्लियों ने परेशानी से अपना सिर हिलाया फिर सीढ़ियां उतरने लगीं। युवक ने रात के अंधेरे में उनके क़दमों की मंद होती आवाज़ सुनी। उसने राहत की साँस ली लेकिन उसकी समझ में नहीं आया कि अभी-अभी क्या हुआ था। कोई बात नहीं थी कि वे उसे न ढूँढ पातीं। लेकिन किसी कारणवश वे उसे नहीं देख पाईं। कुछ भी हो, उसने निर्णय लिया कि सुबह होते ही वह स्टेशन जाएगा और ट्रेन पकड़ कर इस क़स्बे से दूर चला जाएगा। उसका भाग्य सदैव उसका साथ नहीं देगा।


लेकिन अगली सुबह ट्रेन उस स्टेशन पर नहीं रुकी। वह उसे बिना धीमा हुए गुज़रते देखता रहा। अपराह्न की ट्रेन ने भी वैसा ही किया। वह इंजीनियर को नियंत्रण कक्ष में बैठा देख सकता था। लेकिन ट्रेन के रुकने के कोई चिह्न नहीं थे। ऐसा था मानो युवक को वहाँ खड़े ट्रेन की प्रतीक्षा करते कोई देख ही नहीं सकता हो- अथवा ख़ुद स्टेशन को ही न देख सकता हो। एक बार जब अपराह्न वाली ट्रेन अपने रास्ते पर ओझल हो गयी, वह जगह और शांत हो गयी। सूरज डूबने लगा। यह बिल्लियों के आने का समय था। युवक जानता था कि वह न खोजे जाने वाले तरीके से खो चुका है। यह बिल्लियों का क़स्बा नहीं है। यह वह जगह है जहाँ उसे खो जाना था। यह एक और दुनिया है जो उसी के लिए विशेष रूप से सृजित की गयी है। और अब कभी भी ट्रेन उसे उस दुनिया में जिस दुनिया से वह आया था, वहाँ वापस ले जाने के लिए स्टेशन पर नहीं रुकेगी।


टेंगो ने कहानी दो बार पढ़ी। वाक्यांश “जगह जहाँ उसे खो जाना था” ने उसका ध्यान आकृष्ट किया। उसने किताब बंद की और ट्रेन की खिड़की से गुज़र रहे औद्योगिक दृश्य देखने लगा। थोड़ी देर बाद वह नींद की गोद में चला गया, छोटी सी झपकी नहीं, बल्कि पूरी गहरी नींद। ट्रेन मध्य ग्रीष्म ऋतु में बोसो प्रायद्वीप के समुद्री किनारे से गुज़र रही थी। 


एक सुबह जब वह पाँचवी कक्षा में था, सावधानी से सोचने के पश्चात, टेंगो ने निर्णय लिया कि वह अपने पिता के साथ रविवार को वसूली के लिए जाना बंद कर देगा। उसने अपने पिता से कहा कि वह इस समय का उपयोग, अध्ययन करने, किताबें पढ़ने और दूसरे बच्चों के साथ खेलने में करना चाहता है। वह अन्य दूसरों की भाँति सामान्य जीवन जीना चाहता है।


टेंगो को जो कहना था उस ने स्पष्टता और व्यवस्थित तरीके से कह दिया।


उसके पिता निश्चय ही भड़क गए। उन्हें इस की परवाह नहीं थी कि दूसरे परिवार क्या करते हैं। उन्होंने कहा “हमारा चीज़ों को करने का अपना तरीका है। तुम तो मुझसे ‘सामान्य जीवन’ की बात ही मत करो श्रीमान सर्वज्ञ। तुम ‘सामान्य जीवन’ के संबंध में जानते ही क्या हो?” टेंगो ने उनके साथ बहस करने की कोशिश नहीं की। वह उन्हें चुपचाप देखता रहा, जानते हुए कि वह जो कुछ भी कहेगा, उसके पिता की समझ में नहीं आएगा। आखिर में उसके पिता ने कहा यदि वह उनकी बात नहीं मानेगा, वे उसे नहीं खिला-पिला पाएँगे। ऐसे में टेंगो को वहाँ से चले जाना चाहिए।


टेंगो ने वैसा ही किया जैसा उस से कहा गया। वह मानसिक रूप से तैयार हो गया था। वह डरने को तैयार नहीं था। अब जबकि उसे इस पिंजरे को छोड़ने की अनुमति मिल गयी थी, वह किसी अन्य बात की तुलना में अधिक निश्चिन्त था। किंतु ऐसा कोई तरीका नहीं था कि कोई दस वर्ष का बालक अपने बलबूते जीवित रह पाता। जब उसकी कक्षा समाप्त हुई उसने अपनी मुसीबत अपनी अध्यापिका को बतायी। अध्यापिका चौंतीस-पैंतीस वर्ष की अकेली, उदार हृदय की सुलझी हुई महिला थीं। उन्होंने टेंगो की बात संवेदनशीलता से सुनी और उसे ले कर उस के पिता के पास गयीं और उनसे लम्बी वार्ता की।


टेंगो को कमरे से बाहर जाने को कह दिया गया इसलिए उसे निश्चय नहीं था कि उन्होंने एक-दूसरे से क्या कहा लेकिन अंत में उसके पिता को हथियार डाल देने पड़े। उनका गुस्सा कितना भी अधिक हो लेकिन वे एक दस वर्ष के बच्चे को गलियों में भटकने को अकेले नहीं छोड़ सकते थे। माँ-बाप द्वारा बच्चे का पालन पोषण करने का कर्तव्य एक कानूनी मसला था।


अपने पिता के साथ अध्यापिका की बातचीत के फलस्वरूप टेंगो जैसे वह चाहे रविवार उस तरह बिताने हेतु स्वतंत्र था। यह पहला वास्तविक अधिकार था जो उसने अपने पिता से प्राप्त किया था। उसने अपनी स्वतंत्रता की ओर पहला कदम बढ़ा लिया था।


सेनेटोरियम के रिसेप्शन पर टेंगो ने अपना और अपने पिता का नाम बताया ।


नर्स ने पूछा “क्या आपने अपने आज आने की सूचना हमें दी थी?” उसकी आवाज़ में एक तरह की कठोरता थी। एक छोटे कद की महिला जो धातु के फ्रेम का चश्मा पहने थी और उसके छोटे बालों में सफ़ेदी झांकने लगी थी ।


“नहीं, आज सुबह मुझे एकदम से लगा और मैंने ट्रेन पकड़ ली।” टेंगो ने ईमानदारी से जवाब दिया। 


नर्स ने उसे हल्की सी वितृष्णा से देखा। फिर उसने कहा “मिलने आने वालों से अपेक्षा की जाती है कि वे मरीज से मिलने आने से पूर्व हमें सूचित करें। हमारी अपनी शेड्युल है और मरीज की इच्छा का भी ध्यान रखना पड़ता है।”


“मुझे माफ़ कीजिए। मुझे नहीं पता था।”


“तुम पिछली बार कब मिलने आए थे?”


“दो वर्ष पूर्व।”


“दो वर्ष पूर्व” उसने कहा और मिलने आने वालों की सूची एक बालपेन हाथ में लिए जाँचने लगी। “तुम्हारा मतलब है दो साल में तुम एक बार भी मिलने नहीं आए?”


“जी यह सही है।” टेंगो ने कहा।


“हमारे अभिलेखों के अनुसार तुम मिस्टर कवाना के एकमात्र सम्बंधी हो।”


“जी सही बात है।”


उसने टेंगो की ओर देखा, लेकिन कहा कुछ नहीं। उसकी आँखें उस पर कोई दोषारोपण नहीं कर रहीं थी, वह बस तथ्य जाँच रही थी। स्पष्ट रूप से टेंगो का मामला असाधारण नहीं था।


“शारीरिक रूप से वे स्वस्थ हैं, यह दूसरा क्षेत्र हैं जिसमें उन्हें दिक्कतें हैं,” उसने अपनी तर्जनी ऊँगली से अपना माथा छूते हुए कहा।


टेंगो ने उसे धन्यवाद दिया और प्रवेश द्वार के पास बने प्रतीक्षालय में प्रतीक्षा करते हुए अपनी किताब पढ़ने लगा। यदा-कदा बाहर से हवा का एक झोंका समुद्र की महक और चीड़ के वृक्षों की शीतल धुन लिए आ जाता था। वृक्षों की डालियों पर चिपके झींगुर चीख़ रहे थे। ग्रीष्म अपने चरम पर थी लेकिन झींगुर जानते थे कि यह लम्बे समय तक नहीं रहने वाली है।


अंततः चश्मे वाली महिला ने आकर टेंगो को सूचित किया कि वह अब अपने पिता से मिल सकता है। “मैं तुम्हें उनके कमरे तक का रास्ता दिखा दूँगी,” उसने कहा। टेंगो सोफे से उठ गया और एक बड़े से दर्पण के पास से गुज़रते हुए उसे भान हुआ कि वह किस तरह के वाहियात कपड़े पहने हुए था: एक जेफ़ बेक जापान टूर कमीज, जिसके बटन एक दूसरे से मैच नहीं कर रहे थे, चिनो जिसके घुटने पर पिज़्ज़ा सास के निशान थे और एक बेसबॉल कैप- किसी भी तरह से एक तीस वर्ष के बेटे के लिए, जो अपने पिता को दो साल में पहली बार मिलने जा रहा था, यह पोशाक उचित नहीं कही जा सकती थी। न ही उस के पास ऐसा कुछ था जो ऐसे समय उपहार के रूप में दिया जा सके। कोई आश्चर्य नहीं कि नर्स ने उसे वितृष्णा की दृष्टि से देखा था।


टेंगो के पिता अपने कक्ष में खुली हुई खिड़की के पास, अपने घुटनों पर हाथ रखे एक कुर्सी पर बैठे हुए थे। पास ही एक टेबल पर एक गमले में लगा पौधा रखा था जिसमें कई फूल लगे हुए थे। गिरने की दशा में चोट न लगे इसलिए फर्श मुलायम पदार्थ का बना हुआ था। टेंगो पहले नहीं समझ पाया कि खिड़की के पास बैठा वृद्ध व्यक्ति उसके पिता हैं। वे सिकुड़ गए थे- ‘संकुचित हो जाना’ अधिक उपयुक्त होगा। उनके बाल छोटे थे और ऐसे सफ़ेद जैसे बर्फ़ से ढका हुआ लॉन। उनके गाल धंस गए थे। सम्भवतः इसी कारण उनकी आँखें पहले के मुक़ाबले अधिक बड़ी लग रहीं थी। उनके माथे पर तीन गहरी सिलवटें पड़ी हुई थी। उनकी भौंहें भारी और बहुत लम्बी थीं। नुकीले कान हमेशा के मुक़ाबले बड़े लग रहे थे। वे दूर से चमगादड़ के पंख जैसे लग रहे थे। वे मनुष्य कम, किसी और तरह के प्राणी, कोई चूहा या गिलहरी- एक चालक प्राणी जैसे लगे। जो भी हो, वे टेंगो के पिता- अथवा पिता के अवशेष थे। पिता जो टेंगो को याद थे, एक मेहनतकश, कठोर व्यक्ति थे। आत्मनिरीक्षण और कल्पनाशीलता भले ही उनके लिए अजनबी शब्द हों, पर उनकी अपनी नैतिकता और उद्देश्यपूर्णता थी । जिस व्यक्ति को टेंगो ने अपने सामने पाया, वह कुछ नहीं, एक रिक्त ढाँचा मात्र था।


“मिस्टर कवाना !” नर्स ने टेंगो के पिता से साफ़ और स्पष्ट आवाज़ में कहा, जैसी कि उसे मरीज़ों से बात करने हेतु ट्रेनिंग मिली होगी। “मिस्टर कवाना ! देखिए कौन आया है मिलने! टोक्यो  से आपका बेटा।”


टेंगो के पिता उसकी ओर मुड़े। उनकी भावहीन आँखों को देखकर टेंगो को लगा मानो डाल से लटकते हुए चिड़िया के ख़ाली घोंसले हो।


“हेलो,” टेंगो ने कहा।


उसके पिता ने कुछ नहीं कहा। अलबत्ता वे सीधे टेंगो को इस तरह देखते रहे जैसे वे विदेशी भाषा में लिखा कोई बुलेटिन पढ़ रहे हों।


“डिनर साढ़े छः बजे शुरू होता हैं।” नर्स ने टेंगो से कहा “कृपया उस समय तक रुक कर जाएँ।” 


नर्स के जाने के पश्चात टेंगो एक क्षण को हिचकिचाया, फिर अपने पिता के पास गया और एक काफी समय से प्रयोग के कारण घिसे हुए कपड़े से मढ़ी हुई कुर्सी पर उन के सामने बैठ गया। उसके पिता की आँखें उसके क्रियाकलापों का पीछा करती रहीं।


“आप कैसे हैं?” टेंगो ने पूछा।


“अच्छा हूँ, धन्यवाद।” उसके पिता ने औपचारिकता से कहा।


टेंगो की समझ में नहीं आ रहा था कि इसके बाद क्या कहे। अपनी कमीज़ की तीसरी बटन से खेलते हुए वह खिड़की के बाहर चीड़ के वृक्षों को देखने लगा। फिर पुनः अपने पिता की ओर देखा।


“क्या तुम टोक्यो  से आए हो?” उसके पिता ने पूछा।


“जी टोक्यो  से।”


“तुम निश्चय ही एक्सप्रेस ट्रेन से आए होगे।”


“जी, बिलकुल ठीक,” टेंगो ने कहा। “तातेयामा तक, उसके बाद चिकुरा के लिए एक लोकल ट्रेन पकड़ी।”


“तुम तैरने के लिए आए हो?” उसके पिता ने पूछा।


“मैं टेंगो हूँ, टेंगो कवाना, आपका बेटा।”


उसके पिता के माथे की झुर्रियां गहरी हो गयीं। “बहुत सारे लोग झूठ बोलते हैं क्योंकि वे एन एच के का सब्सक्रिप्शन नहीं भुगतान करना चाहते।”


“पिता जी!” टेंगो ने उन्हें पुकारा। उसने लम्बे समय से इस शब्द का उच्चारण नहीं किया था। “मैं टेंगो हूँ, आपका बेटा।”


“मेरा कोई बेटा नहीं है,” उसके पिता ने घोषणा की।


“आपके कोई बेटा नहीं,” टेंगो ने मशीनी अन्दाज़ में दुहराया।


उसके पिता ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया।


“फिर मैं क्या हूँ?” टेंगो ने पूछा।


“तुम कुछ नहीं हो,” उसके पिता ने दो बार हल्के से अपना सिर हिलाते हुए कहा।


टेंगो की साँस रुक सी गयी। उसे शब्द नहीं मिल रहे थे। उसके पिता को भी कुछ नहीं कहना था। दोनों चुप बैठे रहे, अपने उलझे हुए विचारों को टटोलते हुए। बस झींगुर बिना किसी भ्रम के अपनी पूरी आवाज़ में गा रहे थे।


वे सच कह रहे हो सकते हैं, टेंगो ने सोचा। भले उनकी स्मृति नष्ट हो गयी हो, लेकिन उनके शब्द सम्भवतः सच हैं। 


“आपका क्या मतलब है?” टेंगो ने पूछा।


“तुम कुछ नहीं हो,” उसके पिता ने दोहराया। उनकी आवाज़ में कोई भावना नहीं थी। “तुम कुछ नहीं थे, तुम कुछ नहीं हो, तुम कुछ नहीं रहोगे।”


टेंगो की इच्छा हुई कि वह उसी समय कुर्सी से उठे, स्टेशन जाए, ट्रेन पकड़े और टोक्यो  वापस चला जाये। लेकिन वह खड़ा नहीं हो सका। वह उसी युवक की तरह था जिसने बिल्लियों के कस्बे तक की यात्रा की थी। उसे जिज्ञासा थी। वह अधिक स्पष्ट उत्तर चाहता था। निश्चय ही, ख़तरा भी सिर पर मंडरा रहा था। लेकिन यदि उसने इस अवसर को गंवा दिया तो उसके पास स्वयं के बारे में जानने का कोई अवसर नहीं बचा रहेगा। टेंगो ने शब्दों को अपने मस्तिष्क में बार बार संयोजित, पुनर्संयोजित किया जब तक कि अंत में वह उन्हें बोलने हेतु तैयार न हो गया। यही वह प्रश्न था जिसे वह बचपन से पूछना चाहता था लेकिन कभी उसके लिए ऐसा कर पाना संभव न हो पाया। "आप क्या कह रहे हैं, तब क्या आप मेरे जैविक पिता नहीं है, ठीक? आप मुझसे कह रहे हैं कि हमारे बीच कोई रक्त-संबंध नहीं है, क्या यही मतलब है?"


"रेडियो वेव्स की चोरी एक ग़ैर-कानूनी हरकत है," उसके पिता ने टेंगो की आँखों में देखते हुए कहा, "यह पैसे अथवा कीमती सामान चुराने से अलग नहीं है, क्या तुम ऐसा नहीं समझते?"


"आप संभवतः ठीक कह रहे हैं," इस बार टेंगो ने उन से सहमत होने का निर्णय लिया।


"रेडियो वेव्स आसमान से बारिश या बर्फ़ की तरह मुफ्त में नहीं बरसतीं," उसके पिता ने कहा।


टेंगो ने अपने पिता के हाथों की ओर देखा। वे सफाई से उनके घुटनों पर रखे हुए थे। वे लंबे समय तक घर से बाहर काम करने के कारण हड्डियों तक काले पड़ गए प्रतीत हो रहे थे।


"जब मैं छोटा था तब मेरी माँ बीमारी से नहीं मरी थी, क्या ऐसा हुआ था?" टेंगो ने धीरे से पूछा।


उसके पिता ने उत्तर नहीं दिया। उनके चेहरे के भाव नहीं परिवर्तित हुए और उनके हाथों में कोई हरकत नहीं हुई। उनकी आँखें टेंगो पर जमी हुई थीं मानो वे किसी अपरिचित को देख रही हों। 


"मेरी माँ ने आप को छोड दिया। वह मुझे और आपको पीछे छोड़ किसी और आदमी के साथ चली गयी। क्या मैं ग़लत कह रहा हूँ?"


उसके पिता ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया। "रेडियो वेव्स चुराना अच्छी बात नहीं है। तुम ऐसा करके बच नहीं सकते, चाहे जो कुछ करो।"


यह व्यक्ति मेरे प्रश्न बिलकुल अच्छी तरह समझता है। वह केवल उनके उत्तर प्रत्यक्ष रूप से नहीं देना चाहता, टेंगो ने सोचा।


"पिता जी," टेंगो उनकी ओर मुखातिब हुआ "हो सकता है आप सच में जैविक पिता न हों किंतु मैं आपको वही पुकारूंगा क्योंकि मैं नहीं जानता कि आपको और क्या कह कर पुकारा जा सकता है। आप से सच कहूँ तो मैंने कभी आपको पसंद नहीं किया। हो सकता है मैंने अधिकांश समय आपसे घृणा की हो। आप यह जानते हैं, क्या नहीं। लेकिन यह मान कर भी कि हमारे बीच कोई रक्त संबंध नहीं है, अब मेरे पास आप से घृणा करने का कोई कारण नहीं है। मैं नहीं जानता कि क्या मैं उतनी दूर जा सकता हूँ कि आप को पसंद करने लगूं, लेकिन मैं सोचता हूँ मैं आपको जितना अभी समझता हूँ, उससे बेहतर समझने योग्य हो जाऊंगा। मैं हमेशा इस बारे में सत्य जानना चाहता था कि मैं कौन हूँ और कहाँ से आया हूँ। बस इतना ही। यदि आप मुझे अभी और यहीं सच बताते हैं, मैं आपसे और घृणा नहीं करूंगा। वास्तव में मैं आप को और अधिक घृणा न करने के अवसर का स्वागत करूंगा।"


टेंगो के पिता उसे भावहीन आंखों से ताकते रहे, लेकिन टेंगो ने महसूस किया कि जैसे उन ख़ाली घोंसलों में कहीं दूर गहराई में उसने रोशनी की सूक्ष्म सी चमक देखी हो।  


"मैं कुछ नहीं हूँ," टेंगो ने कहा। "आप सही हैं। मैं किसी ऐसे की भांति हूँ जिसे रात्रि के महासागर में पूर्णतः एकाकी तैरने हेतु छोड़ दिया गया हो। मैं मदद चाहता हूँ लेकिन कोई वहाँ नहीं है। मेरा किसी चीज़ से कोई संबंध नहीं है। ‘परिवार’ से सबसे मिलती-जुलती जो चीज़ है, वह आप हैं। इस बीच आपकी याददाश्त दिनों-दिन ख़राब होती जा रही है। और आपकी स्मृति के साथ, मुझसे संबंधित सच भी खोता जा रहा है। बिना सच की मदद के मैं कुछ नहीं हूँ और कभी कुछ हो भी नहीं पाऊंगा। आप वह भी ठीक कह रहे थे।"


"ज्ञान एक मूल्यवान सामाजिक संपत्ति है," उसके पिता ने एकल स्वर में कहा। यद्यपि उनकी आवाज़ पूर्व की अपेक्षा अधिक शांत थी मानो किसी ने वहाँ पहुंच कर उसका वॉल्यूम कम कर दिया हो। "यह ऐसी संपत्ति है जो ढेर के ढेर अर्जित की जानी चाहिए और अत्यधिक सावधानी से प्रयोग की जानी चाहिए। इसे अगली पीढ़ी को उपयोगी प्रारूपों में सौंपना चाहिए। उस कारण से भी एन एच के को आपके सभी सब्स्क्रिप्शन्स का भुगतान चाहिए और--"


उसने अपने पिता को बीच में ही रोक दिया। "मेरी माँ किस तरह की व्यक्ति थी? वह कहाँ गयी? उसका क्या हुआ?"


उसके पिता ने अपना पाठ रोक दिया, उनके होंठ सख्ती से बंद हो गए।


अब पहले से अधिक कोमल आवाज़ में टेंगो कहता रहा, "एक दृश्य अक्सर मुझे दिखाई देता है--एक ही दृश्य बार बार। मुझे संदेह है कि यह स्वप्न नहीं, यह किसी वास्तव में घटित घटना की स्मृति है। मैं तब डेढ़ वर्ष का था और मेरी माँ मेरी बग़ल में थी। वह और एक युवा आदमी एक-दूसरे को पकड़े हुए थे। आदमी आप नहीं थे। वह कौन था मुझे कोई अंदाजा नहीं है, लेकिन वह निश्चय ही आप नहीं थे।"


उसके पिता ने कुछ नहीं कहा लेकिन उनकी आँखें स्पष्ट रूप से कुछ और देख रहीं थी--कुछ जो वहाँ नहीं था।


"मैं सोचता हूँ क्या मैं तुमसे अपने लिए कुछ पढ़ने को कह सकता हूँ।" टेंगो के पिता ने एक लंबे अंतराल के बाद उससे औपचारिक स्वर में कहा। 'मेरी दृष्टि उस सीमा तक खराब हो गयी है कि अब मैं किताबें बिलकुल नहीं पढ़ सकता। बुक केस में कुछ किताबें हैं। जिसे तुम पसंद करो, चुन लो।"


टेंगो बुक केस में रखी किताबों की स्पाइन पर लिखे नाम पढ़ने हेतु उठ खड़ा हुआ। उनमें से अधिकांश ऐतिहासिक उपन्यास थे उस युग की कथा कहते जब समुराई इस धरती पर भ्रमण करते थे। टेंगो अपने पिता के लिए कोई ऐसी पुरानी किताब नहीं पढ़ना चाहता था जो पुरानी कलात्मक भाषा से बोझिल हो।


"यदि आपको एतराज न हो तो मैं आपके लिए बिल्लियों के कस्बे के बारे में एक कहानी पढ़ता हूँ," टेंगो ने कहा। यह इस किताब में है जिसे मैं अपने स्वयं के पढ़ने के लिए लाया था।"


"बिल्लियों के कस्बे के बारे में कहानी," उसके पिता ने शब्दों का स्वाद लेते हुए कहा। "उसे ज़रूर पढ़ो, यदि इसमें तुम्हें तकलीफ न हो।"


टेंगो ने अपनी घड़ी देखी। "कोई तकलीफ़ नहीं होगी। अभी मेरी ट्रेन के जाने में काफी समय है। यह एक विचित्र कहानी है। मैं नहीं जानता कि यह आपको पसंद भी आएगी अथवा नहीं।"


टेंगो ने अपनी पेपरबैक निकली और धीरे-धीरे स्पष्ट और सुनाई देने योग्य आवाज़ में पढ़ने लगा, बीच-बीच में सांस लेने हेतु एक, दो बार रुकता हुआ। वह जब भी पढ़ना बंद करता अपने पिता की ओर देखता लेकिन उसे उनके चेहरे पर कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं दिखी जो समझ में आ सके। क्या उन्हें कहानी में आनंद आ रहा था? वह बता नहीं सकता था।


"क्या बिल्लियों के उस कस्बे में टेलीविजन थे?" उसके पिता ने पूछा जब टेंगो ने कहानी पूरी पढ़ दी।


"कहानी जर्मनी में 1930 में लिखी गयी थी। उस समय टेलीविजन नहीं हुआ करते थे। यद्यपि उस समय रेडियो होते थे।"


"क्या बिल्लियों ने उस क़स्बे का निर्माण किया था? या फिर लोगों ने बनाया था, बिल्लियों के वहाँ आकर रहने से पूर्व?" उसके पिता ने पूछा, वे इस तरह बोल रहे थे मानो स्वयं से बात कर रहे हों।


"मुझे नहीं पता," टेंगो ने कहा। "लेकिन ऐसा लगता है कि क़स्बे का निर्माण मनुष्यों द्वारा किया गया था। हो सकता है लोगों ने किसी कारणवश उसे छोड़ दिया हो -- जैसे कि वे सभी किसी तरह की महामारी के कारण मर गए हों-- और फिर बिल्लियां वहाँ रहने आ गयी हों।"


उसके पिता ने सहमति में सिर हिलाया। "जब कोई रिक्ति निर्मित हो जाती है, किसी चीज़ को उसे भरने के लिये आना ही पड़ता है। यही सभी करते हैं।"


"यही सभी करते हैं?"


"बिलकुल।"


"आप किस तरह की रिक्ति को भर रहे हैं?"


उसके पिता ने इसे घूरा। फिर उन्होंने अपनी आवाज़ में एक व्यंग्य का स्पर्श लाते हुए कहा, "क्या तुम नहीं जानते?"


"नहीं, मैं नहीं जानता," टेंगो ने कहा।


उसके पिता के नथुने फैल गए। एक भौंह थोड़ी सी उठ गई। "यदि तुम इसे बिना किसी स्पष्टीकरण के नहीं समझ सकते, तुम इसे स्पष्टीकरण के पश्चात भी नहीं समझ सकते।"


टेंगो ने उस व्यक्ति के भावों को पढ़ने को कोशिश करते हुए अपनी आँखें सिकोड़ीं। उसके पिता ने पहले कभी इस तरह की विषम, सांकेतिक भाषा का प्रयोग नहीं किया था। वे सदैव स्पष्ट और व्यावहारिक शब्दों में बोलते थे।


"मैं समझ गया। तो आप किसी तरह की रिक्ति को भर रहे हैं," टेंगो ने कहा "ठीक है फिर, लेकिन वह रिक्ति कौन भरेगा जो आप अपने पीछे छोड़ आये हैं?"


"तुम," उसके पिता ने अपनी तर्जनी उंगली उठा कर सीधे टेंगो की ओर तानते हुए कहा। "क्या यह समझना आसान नहीं है? मैं वह रिक्ति भर रहा हूँ जो किसी और ने सृजित की थी, इसलिए तुम वह रिक्ति भरोगे जो मैंने सृजित की है।"


"उस तरह जैसे लोगों के कस्बे से चले जाने के पश्चात बिल्लियों ने की थी।"


"बिलकुल ठीक," उसके पिता ने कहा। फिर वे निष्प्रयोज्य ही अपनी तनी हुई तर्जनी उँगली को ऐसे घूरने लगे जैसे वह कोई रहस्यमय, खोई हुई वस्तु हो।


टेंगो ने आह सी भरी। "अच्छा, तब मेरे पिता कौन हैं?"


"बस एक रिक्ति। तुम्हारी माँ ने एक रिक्ति के साथ अपनी देह का युग्मन किया और तुम्हें जन्म दिया। मैंने उस रिक्ति को भरा।"


इतना कह कर उसके पिता ने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपना मुँह बंद कर लिया।


"और उसके छोड़ कर जाने के पश्चात आपने मेरा लालन-पालन किया। क्या आप यही कह रहे हैं?"


काफी इत्मीनान से अपना गला साफ़ करने के पश्चात, उसके पिता ने कहा, मानो किसी मंदबुद्धि बच्चे को कोई साधारण सी सच्चाई समझाने का प्रयत्न कर रहे हों, "इसीलिए मैंने कहा था 'यदि तुम बिना किसी स्पष्टीकरण के नहीं समझ सकते, तुम स्पष्टीकरण के बाद भी नहीं समझ सकते।"


टेंगो ने अपने हाथ मोड़ कर अपनी गोद में रख लिए और सीधे अपने पिता के चेहरे को देखने लगा। यह व्यक्ति एक रिक्त ढांचा नहीं है, उसने सोचा। यह टुकड़ों में जीता हुआ और समुद्र के किनारे अपनी इस ज़मीन के टुकड़े पर नयी शुरुआत करता, संकरी और दृढ़ आत्मा वाला रक्त-मांस का एक मानव है। उसके पास कोई विकल्प नहीं है सिवाय अपने भीतर धीरे-धीरे फैलती जा रही रिक्ति के साथ-साथ जीने के। आख़िर में वह रिक्ति उसकी जो भी स्मृतियाँ शेष हैं, उन्हें भी निगल जाएगी। यह केवल समय बीतने भर की बात है।


टेंगो ने छः बजने के ठीक पहले अपने पिता को अलविदा कहा। जब वह टैक्सी के आने की प्रतीक्षा कर रहा था, वे एक-दूसरे के सामने खिड़की के पास बैठे रहे, बिना कुछ कहे। टेंगो और भी बहुत से प्रश्न पूछना चाहता था लेकिन वह जानता था कि उसे कोई उत्तर नहीं मिलेगा। उसके पिता के कस कर बंद किये गए होठों के दृश्य ने उसे यह बात स्पष्ट कर दी थी। यदि तुम किसी बात को बिना स्पष्टीकरण के नहीं समझ सकते, तुम उसे स्पष्टीकरण के पश्चात भी नहीं समझ सकते। जैसा कि उसके पिता ने कहा था।


जब उसके जाने का समय करीब आया, टेंगो ने कहा, "आपने आज मुझे बहुत कुछ बताया। यद्यपि यह अप्रत्यक्ष और कभी-कभी समझने में कठिन था लेकिन संभवतः यह उतना ईमानदार और स्पष्ट था जितना आप कर सकते थे। मैं इसके लिए आभारी रहूँगा।"


अब भी उसके पिता ने कुछ नहीं कहा। उनकी आंखें दृश्य पर इस भांति टिकी हुई थी जैसे कोई अभिरक्षा पर तैनात सिपाही इस बात के लिए कृतसंकल्प हो कि जंगली कबीले द्वारा दूर चोटियों पर भेजे जा रहे संदेश की एक भी लपट चूकनी नहीं चाहिए। टेंगो ने अपने पिता के दृष्टिपथ में देखने का प्रयत्न किया, लेकिन जो कुछ भी दिखा वह चीड़ के वृक्ष मात्र थे, आगत सूर्यास्त से बदरंग से होते हुए।


"मुझे दुख है यह कहते हुए, लेकिन मैं आपके लिए वस्तुतः कुछ नहीं कर सकता - सिवाय यह आशा करने के कि आपके भीतर सृजित हो रही रिक्ति की प्रक्रिया पीड़ामुक्त हो। मुझे पता है आप ने बहुत कष्ट सहे हैं। आपने मेरी माँ को उतनी गहराई से प्रेम किया जितना करना आप जानते थे। मुझे इस बात का आभास हो चुका है। लेकिन उसने आपको छोड़ दिया। यह आपके लिए निश्चय ही कठिन रहा होगा - किसी रिक्त क़स्बे में रहने की भांति। फिर भी आपने उस रिक्त क़स्बे में मेरा पालन-पोषण किया।"


कौवों का एक झुंड कांव-कांव करता हुआ आकाश के पार चला गया। टेंगो खड़ा हुआ, अपने पिता के पास गया और उनके कंधे पर अपना हाथ रख दिया। "विदा, पिता जी, मैं जल्दी ही फिर आऊंगा।"


अपना हाथ दरवाजे के हैंडल पर रखे, टेंगो एक आख़िरी बार मुड़ा और यह देख कर वह स्तंभित रह गया कि उसके पिता की आँख में आँसू की एक बूँद लरज रही थी। वह कमरे के मद्धिम प्रकाश में मंद चाँदनी की चमक लिए हुए थी। आँसू की बूँद धीरे-धीरे उनके गाल पर ढुलकती हुई उनकी गोद में गिर गयी। टेंगो ने दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गया। उसने स्टेशन के लिए कैब ली और उसी ट्रेन पर सवार हो गया जो उसे यहाँ ले कर आई थी।


(जे रुबिन के अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित)



श्रीविलास सिंह वरिष्ठ कवि, गद्यकार एवं अनुवादक हैं।  उनसे अधिक परिचय के लिए देखें : वृद्ध स्त्री की त्चचा, महमूद दरवेश की कविताएँ, केन का मेमना 

1 Comment


कुमार मुकुल
Aug 02

अच्छी कहानी,

"यदि तुम किसी बात को बिना स्पष्टीकरण के नहीं समझ सकते, तुम उसे स्पष्टीकरण के पश्चात भी नहीं समझ सकते।"

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