अमरनाथ कुमार की कविताएँ
- golchakkarpatrika
- Jan 14
- 1 min read
Updated: Jan 15

बुढ़ाते बच्चे
मेरे बच्चे नहीं डालते
मेरे जेब में
अपनी हथेलियाँ
ना ही
मेरे कमरे में आते हैं
बार-बार
उन्हें निजात की
इतनी अच्छी तालीम
कहाँ से मिली
नहीं पता
पर दुख है
मुझसे पहले
मेरे बच्चे बुढ़ा गए ।
पिता और माँ की प्रेम कहानी
मेरे पिता
माँ को कभी नहीं दे पाए
महकते फूलों का
एक भी गजरा
गुलाब या गेंदा
दिया जा सकता है
प्यार में,
मेरे पिता नहीं जानते
खोईछा भर
सरसों और बथुआ के साग से ही
खुश होकर
मेरी माँ ने
ता-उम्र किया
प्रेम
मेरे किसान पिता से।
बूढ़ी आँखें
बूढ़ी होती आँखें
भले न देख पाएँ स्पष्टता से
लेकिन आते-जाते
क़दमों की आहट से
जान जाएंगे
बच्चों की
उदासीनता
और
प्रेम
घृणा
और
करुणा
मिले
स्नेह या त्याग
बूढ़ी आँखों से
धरती हमेशा भीगती रहती है।
पिता का हँसना
पिता का हँसना
कभी-कभार होता है
घर में
जबकि
माँ हँसती है
बात-बेबात
जब कोई घर आता है
माँ बिना चाय के जाने नहीं देती
मुस्कुराते हुए भर कप देती है
चाय
माँ का मुस्कुराना छुपा लेता है
कि रसोई में सब कुछ ठीक है
जैसे देश में सब कुछ ठीक है
जबकि
पिता के हँसने से
मैं समझ जाता हूँ
देश की अर्थव्यवस्था...।
26 वर्षीय अमरनाथ कुमार की कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। अमरनाथ भारतीय एवं विश्व साहित्य पढ़ने में रुचि रखते हैं।
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'पिता का हॅंसना' कई बार पढ़ी जा सकती है।
बधाई-अभिनंदन जैसे शब्द कवि के लिए हल्के हो जाते हैं कविता दर कविता के साथ।
कवि के लिए कवित्व बना रहे, प्रेषित कर रहा हूॅं।