जापान की पगडंडियों पर बाशो, हर्न और बोर्गेस के पदचिह्न
- Shivam Tomar
- Jan 5
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मूल लेखक : हावियर सिनाय (स्पेनिश)
हिंदी में अनुवाद : शिवम तोमर

आज से लगभग तीन सौ छत्तीस साल पूर्व, मात्सुओ बाशो ने प्रांतीय जापान के घुमावदार रास्तों की यात्रा पर निकलकर "जर्नल ऑफ ब्लीच्ड बोन्स इन अ फील्ड" लिखने का निश्चय किया। 130 साल पूर्व, लाफकादियो हर्न, जिनकी रगों में आयरिश और यूनानी खून दौड़ता था, पाश्चात्य जीवन की आपाधापी से तंग होकर जापान आ पहुँचे। कुछ सालों बाद, वहाँ के समाज और संस्कृति में निमग्न होकर उन्होंने अपना नाम बदलकर कोइज़ुमी याकूमो रखा और सैकड़ों दंतकथाओं को शब्दबद्ध किया। इकतालीस साल पहले, होर्हे लुईस बोर्हेस, जिन्होंने लाफकादियो हर्न और उससे पहले ए.बी. मिटफोर्ड को पढ़ा था (उन्हें उनकी किताब 'टेल्स ऑफ ओल्ड जापान' याद थी), ने प्रसिद्ध शिंटो मंदिर इज़ुमो की भूमि पर कदम रखा। उन्होंने उस टोरी (जापानी मंदिरों के प्रवेश द्वार को टोरी कहते हैं) को छुआ, जो आत्माओं के पवित्र आयाम में प्रवेश का प्रतीक है, और बाद में उन्होंने एक अद्भुत कविता लिखी : "द स्ट्रेंजर"।
फ़िलहाल, हर बार जब कोई ट्रेन सामने से गुज़रती है, तो चिरहरित जापान की यात्रा नए सिरे से शुरू हो जाती है।
यह अविश्वसनीय है कि जापान का प्रमुख द्वीप होन्शु कितना संकीर्ण है : स्थानीय ट्रेनों में यात्रा करते हुए, जो अपनी तेज़ आवाज़ के बावजूद एकदम साधारण धीमी गति से रेंगती हैं, हम तीन घंटों में इसे पूरी तरह से घूम सकते हैं। कभी उपनगर की छवियाँ खिड़की में पुनरावृत्त होती हैं, कभी एक गीला-सा जंगल दिखाई देता है। हिगाशी, जो मेरी प्रेमिका और मेरी सहयात्री हैं, मेरे सुझाव को मानती हैं कि हम मसुदा में समुद्र का दौरा करें, जहाँ हमें वैसे भी ट्रेन बदलने के लिए एक घंटे के लिए रुकना ही था। स्टेशन से उतर कर हम टैक्सी लेते हैं और ड्राइवर को उमी की ओर चलने के लिए कहते हैं; उमी समुद्र, जिसे कोरियाई लोग पूर्वी समुद्र कहते हैं। ड्राइवर वृद्धावस्था की दहलीज़ पर खड़ा है (जापान में युवा टैक्सी चालक कम ही होते हैं) और सफेद दस्तानों में ढके हाथों से वह यह चमचमाती कार चलाता है। सभी सड़कें वीरान हैं। हमें मालूम भी नहीं पड़ता और हम समुद्र तक पहुँच जाते हैं। जिस ट्रेन से हम यहाँ आए, वह सान'इन क्षेत्र के तट के समानांतर चल रही थी। तब हमने खिड़की से इस समुद्र को देखा था - नीला और मोहक। लेकिन अब ठंड है और हवा तेज़ चल रही है, और यहाँ रेत नहीं है, केवल पत्थर हैं। ड्राइवर हमें बिना कोई सवाल पूछे, टैक्सी से उतार देता है। जब वह हमारी बैग ट्रंक से बाहर निकाल रहा था तब उसकी टाई हवा में (मानो गुस्से में) फड़फड़ा रही थी।
इस देश की सड़कों पर चलना किसी भी प्रसिद्ध शहर में रुकने से एक बहुत अलग अनुभव है। चलना इसकी अंतरंगता को समझने जैसा है; रुकना इसके घमंड के सामने समर्पण करना। चलना इसकी प्रकृति में प्रवेश करना है; रुकना इसकी संस्कृति की सराहना करना है। चलना इसकी सादगी पर विचार करना है; रुकना इसकी समृद्धि में खो जाना है।
महान हाइकू-कवि बाशो बहुत पैदल चलते थे। सत्रहवीं सदी के अंतिम हिस्से में, उन्होंने गमनागमन की सुंदरता को महसूस करने और इस अनुभव पर काव्य लिखने के लिए एक यात्रा की शुरुआत की। बाशो ने क्योटो, उएनो, नीगाता, और तमाम जगहों की पैदल यात्रा की। मसुदा से सात सौ बहत्तर किलोमीटर दूर, टोक्यो में, वह जगह आज भी मौजूद है जहाँ उनका घर था। आज वहाँ एक छोटा सा संग्रहालय है जिसमें कुछ भी मूल रूप में संरक्षित नहीं है। जो सबसे प्रभावशाली है, वह संग्रहालय नहीं बल्कि बाशो की आदमक़द प्रतिमा है, जो एक वस्त्र में लिपटी हुई, जापानी राजधानी में सुमिदा नदी के सम्मुख खड़ी है। यह कांस्य पुरुष वही व्यक्ति है जिसने जापान में यात्रा को एक प्रदर्शन कला का रूप दिया था। आज, वह टोक्यो सेंट्रल स्टेशन पर दैनिक रूप से आने-जाने वाली तीन हज़ार ट्रेनों पर परछाइयाँ छितराती गगनचुंबी इमारतों का सर्वेक्षण करता हुआ अचल खड़ा है।
चित्रलिपि में लेखन पश्चिमी लेखन की तुलना में कविता का एक अलग अनुभव उत्पन्न करता है : दूरी एक गहरी खाई की तरह होती है। हाइकू बौद्धिक कृत्रिमता से बचते हुए प्रकृति की तलाश करती है। एक खंडहर जो पहले कभी भव्य क़िला हुआ करता था, उसके सामने घास के मैदान में खड़े होकर बाशो लिखते हैं :
आह! ग्रीष्म की घासें!
बस यही बच सका,
योद्धाओं के तमाम सपनों में से।
मसुदा की हवा और चुप्पी में कुछ देर ठहरने के बाद हमने वहाँ से निकलने का निर्णय लिया। लेकिन जाते कैसे? जो टैक्सी हमें लेकर आई थी वह तो जा चुकी थी, और दूसरी कोई टैक्सी दूर तक नज़र नहीं आती थी। इस लगभग निर्जन जगह पर कोई बस भी नहीं चलती। हम एक सड़क पर चलते हैं और अंततः एक शांत मोहल्ले में पहुँचते हैं, जहाँ सभी खिड़कियाँ बंद थीं। एक गली में, एक गोलमटोल चेहरे वाली महिला हमें देखती है। हिगाशी पहले उससे बात करती हैं : वह बताती हैं कि हम खो गए हैं और हमारी ट्रेन जल्दी ही रवाना होने वाली है। महिला हमें बताती है कि पास में एक शिंटो मंदिर है, और वहाँ टैक्सियाँ मिल जाएंगी। लेकिन हम अभी-अभी वहीं से गुज़रे थे और वहाँ कोई नहीं था। उस महिला की भाषा को समझने में हमें बहुत मुश्किल हो रही थी। वह लगातार बोलती रहती है, लेकिन बिना किसी चिंता के, और जल्द ही उसका पति आ जाता है। किसी तरह वे हमें अपनी छोटी-सी कार में बैठाकर स्टेशन तक छोड़ देते हैं। उस महिला का नाम यामादा था। जब हम उनसे विदा लेते हैं, तो वह महिला हिगाशी को पकड़कर कुछ मीठी, समझ से बाहर बातें कहती है। और हिगाशी का गला रुंध जाता है क्योंकि उसे अचानक ही अपनी दादी की याद आ जाती है, जो अर्जेंटीना जा बसी थीं और जो इस महिला की तरह, जो अब उनका हाथ पकड़े हुए है, सरल और उदार थीं। उसकी दादी का नाम तोयोको मसुदा था।
बाशो अपने साथ एक पुआल का बना गद्दा, एक रेनकोट, दवाइयाँ, खाने की एक टोकरी, कलम-कागज़ और स्याही बनाने के लिए इंकस्टोन लेकर चलते थे। यह बात जगज़ाहिर है कि जापानी लोग न्यूनतमवाद में अग्रणी होते हैं। आज भी, कई होस्टल पारंपरिक रयोकान हैं, जिनमें तातामी (बुनाई वाली घास) की फर्श और साधारण गद्दे होते हैं।
यात्रा के दौरान, हम कई रयोकान में ठहरे। हालाँकि इस तरह की सर्दी में ये भयानक रूप से ठंडे होते हैं और इनके भीतर एक निपट अवसाद सनसनाता रहता है, लेकिन ये स्थान क्वाइदान पढ़ने के लिए बिलकुल उपयुक्त हैं, जो लाफकादियो हर्न की एक ऐसी किताब है जिसमें उन्होंने भयानक रूप से निराशाजनक काल्पनिक कहानियाँ संकलित की हैं। एक रयोकान जिसमें हम रुके, वहाँ हर रात जब प्रबंधक (एक जापानी आदमी जिसका नाम फिलिप है और जो हमेशा वही काला विंडब्रेकर (जैकेट) पहनता है, जिस पर पैनासोनिक लिखा होता है) चला जाता है, तो यह कल्पना करना आसान हो जाता है कि खाली कमरों से भरी उस विशाल इमारत में वे भूत-प्रेत रहते होंगे, जो अपने पाठक खोजने आए हैं।
लाफकादियो हर्न ने तातामी स्टूडियो में, एक बहुत ऊँचे डेस्क पर बारह किताबें लिखीं। उनकी पत्नी, सेत्सु कोइजुमी, जो एक समुराई परिवार की बेटी थीं, उन्हें कई भूतिया कहानियाँ सुनाया करती थीं। वह कुछ समय तक अपनी पत्नी के साथ मत्सुए शहर में रहे, एक पुराने घर में जिसमें छोटे और नाजुक बगीचे थे, जो किसी भी निर्वासन को उचित ठहरा सकते थे। आज वहाँ जो संग्रहालय है, वहाँ हमें बताया जाता है कि उनके डेस्क की असामान्य ऊँचाई उनके निकट-दृष्टिदोष के कारण थी: हर्न ने एक ऊँचा मेज बनवाया था ताकि वह अपने कागजों को उस एकमात्र आँख के पास रख सकें जो क्रियाशील थी।
एक जापानी किंवदंती के अनुसार, हमारी छोटी अंगुली से जुड़ा लाल धागा हमें उस व्यक्ति से जोड़ता है, जिसे हम जल्द या देर से जानेंगे और प्रेम करेंगे। हिगाशी इस किंवदंती से परिचित हैं, लेकिन उनकी दादी ने यह उन्हें बुएनस आयर्स के एक जापानी मोहल्ले में पले-बढ़े उनके घर में नहीं सुनाई थी। इसके बजाय, उन्होंने इसे इंटरनेट पर पढ़ा। अब, ट्रेन आगे बढ़ रही है। इंजन सीटी मारता है। दृश्य तेजी से बदलते हैं। किंवदंतियाँ अजीब तरीकों से जीवित रहती हैं।
मत्सुए से छह स्टेशन और चार सौ तिहत्तर येन बाद, पहाड़ियों और बोई गई ज़मीनों के बीच, महान शिंटो मंदिर इज़ुमो विशाल लकड़ी की इमारतों से बना हुआ खड़ा है। कामी (देवताओं) से प्रार्थना करने के लिए, आपको एक रस्सी से बंधी घंटी को हिलाना होता है, फिर ताली बजानी होती है: यह आवाज़ देवताओं को जगाती है। हम भी दो इलेक्ट्रिक साइकिलों को दौड़ा कर स्टेशन से यहाँ पहुँचते हैं, और देवताओं का आह्वान करते हैं। किंवदंती के अनुसार, यह स्थल अमातेरासू, सूर्य देवी द्वारा स्थापित किया गया था, जिन्होंने कभी यहाँ से पूरे देश पर शासन किया था। शिंतोवाद—द्वीप का मूल धर्म—बहुदेववादी है। यह प्रकृति की पूजा करता है: हर साल, दसवें चंद्रमास में, अस्सी लाख देवता इज़ुमो में मिलते हैं। ऐतिहासिक शोध, जो थोड़ा कम काव्यात्मक है, कहता है कि यह मंदिर आठवीं सदी का है; इसका ज़िक्र कोजिकि में है, जो जापानी इतिहास का सबसे पुराना जीवित ग्रंथ है।
1979 में, जब बोर्हेस जापान आए, तो उन्होंने टोक्यो, ओसाका और क्योटो से दूर इस क्षेत्र में जाने की इच्छा जताई। वे जापान को जापानियों के नज़रिए से अनुभव करना चाहते थे। जब वे पहुँचे, तो ऊँचे पेड़ों के बीच घुमावदार रास्ते पर चलते हुए, उन्होंने भव्य प्रवेश द्वार पर हाथ रखा, जिसकी सतह पूरी तरह से भावचित्रों से सजी हुई थी, और उनकी साथी, मारिया कोडामा ने उनकी फोटो खींची। दूसरी ओर, एक पुजारी उनका इंतज़ार कर रहा था, ताकि उन्हें अपनी धार्मिक मान्यताओं के बारे में समझा सके।
अपने साथ लाई गई उस तस्वीर को देखते हुए, मैं ठीक उस जगह की तलाश करता हूँ जहाँ बोर्हेस ने अपनी हथेली रखी थी। थोड़ी देर बाद मुझे वह जगह मिल जाती है, और मैं भी अपना हाथ उन पवित्र प्रतीकों पर रख देता हूँ। मनुष्य और कला, देवता और पत्थर : जो कोई भी उस अंधे कवि के लेखन से प्रभावित हुआ है, उसे इज़ुमो आने पर यहाँ अपना हाथ अवश्य रखना चाहिए। हिगाशी सुझाव देती हैं कि हम अपनी आँखें बंद कर लें, और हमें अपने चेहरे पर हवा का स्पर्श महसूस होता है और कौओं की काल्पनिक बातचीत सुनाई देती है। लौटने पर, बोर्हेस ने अपनी पुस्तक 'द लिमिट' में 'द स्ट्रेंजर' कविता प्रकाशित की। उन्होंने लिखा कि "शिंतो धर्म जानता है कि मृत्यु के बाद हर मनुष्य एक देवता बन जाता है जो अपनों की रक्षा करता है। यह जानता है कि मृत्यु के बाद हर वृक्ष एक देवता बन जाता है जो वृक्षों की रक्षा करता है।"
जापानी रहस्यमयता की गहराई से प्रभावित, हम दोनों इलेक्ट्रिक साइकिलों को चलाते हुए वापस लौटते हैं। पहाड़ियों के बीच से धूप छन-छन कर गिर रही है। कुछ दिनों बाद, जब हम फुकुओका में आखिरी ट्रेन से उतरेंगे— वह बड़ा शहर जो गगनचुंबी इमारतों, भीड़ और कंपनियों से भरा है— तब हमें महसूस होगा कि इस यात्रा ने हमें एक अलग ही मंज़िल दिखाई है।
हिंदी अनुवाद एलिसन ब्रेडन द्वारा किए गए अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित है।
इस यात्रा वृत्तांत के लिए शुक्रिया शिवम।