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गैब्रियल मात्ज़नेफ़ : साहित्य का अपराध और वनेसा स्प्रिंगोरा का प्रतिरोध

  • golchakkarpatrika
  • Jul 4
  • 4 min read

Updated: Jul 4

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हिन्दी में बीते कुछ दिनों से पटना प्रकरण ने स्त्री अधिकारों की आवाज़ नये सिरे से बुलंद की है। गोल चक्कर के एक मित्र ने फ्रांस के इतिहास से एक ऐसी ही घटना का विवरण प्रस्तुत करता यह लेख भेजा है। गोल चक्कर इस लेख में प्रस्तुत स्त्रीवादी विचारों एवं पटना प्रकरण में सर्वाइवर युवती के पक्ष में खड़ा है।

-सम्पादक, गोल चक्कर



क्या साहित्य सब कुछ कहने की स्वतंत्रता है? क्या लेखक की प्रतिष्ठा उसकी नैतिकता से ऊपर है? क्या लेखनी अपराध को ढकने का माध्यम बन सकती है?


इन प्रश्नों का सामना हमें तब करना पड़ा जब फ्रांस के प्रतिष्ठित लेखक गैब्रियल मात्ज़नेफ़ की असलियत वनेसा स्प्रिंगोरा की आत्मकथात्मक पुस्तक Le Consentement (सहमति) के ज़रिए दुनिया के सामने आई।


गैब्रियल मात्ज़नेफ़ का जन्म 1936 में हुआ और वे 1970–80 के दशक में पेरिस के साहित्यिक समाज में अत्यंत प्रतिष्ठित माने जाते थे। उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखीं — डायरी, निबंध, यात्रावृत्तांत, और आत्मकथात्मक उपन्यास — जिनमें उनका निजी जीवन खुलकर दर्ज था। लेकिन इन आत्मकथाओं में जो दर्ज था, वह केवल निजता नहीं थी — वह एक विकृत मानसिकता का वैधीकरण भी था।


1974 की उनकी कुख्यात पुस्तक Les moins de seize ans (सोलह वर्ष से कम आयु की लड़कियाँ) में वे न केवल किशोरियों के साथ यौन संबंधों का वर्णन करते हैं, बल्कि उसे एक तरह की प्रेम कथा, आत्मिक आवेग और बौद्धिक खोज के रूप में प्रस्तुत करते हैं।


यह कोई छिपा हुआ अपराध नहीं था — बल्कि खुलेआम किया गया ऐसा स्वीकृत अपराध था, जिसे साहित्यिक ‘प्रतिभा’ और ‘प्रतिक्रांतिवादी अभिव्यक्ति’ का मुखौटा पहनाया गया। उन्हीं वर्षों में वे फिलीपींस की यात्राओं का उल्लेख करते हुए वहाँ के बालकों के साथ अपने यौन संबंधों को भी लेखन में दर्ज करते हैं।


सबसे भयावह पक्ष यह था कि फ्रांस के कई प्रतिष्ठित लेखक, प्रकाशक, और आलोचक — जिनमें गैलिमार जैसे प्रमुख प्रकाशक और ले मोंद जैसे अखबार तक शामिल थे — इस सब पर न केवल मौन रहे, बल्कि इसे "बौद्धिक निर्भीकता", "सांस्कृतिक असहमति", और "साहित्यिक विद्रोह" कहकर महिमामंडित करते रहे।


प्रश्न यह है कि जब कोई लेखक खुले तौर पर बच्चों के साथ यौन संबंधों को महिमा के साथ प्रस्तुत करता है — और जब समाज उसे पुरस्कार, पेंशन और मंच देता है — तो क्या वह केवल लेखक रह जाता है? या फिर वह एक अपराधी बनकर भी समाज के विवेक की परीक्षा लेता है?


2020 में, लगभग चालीस वर्षों बाद, जब वनेसा स्प्रिंगोरा ने Le Consentement प्रकाशित की, तो फ्रांस को अपना साहित्यिक दर्पण तोड़कर उसमें असली चेहरा देखना पड़ा। वनेसा ने लिखा कि जब वे केवल 14 वर्ष की थीं, तब 50 वर्षीय मात्ज़नेफ़ ने उन्हें अपने प्रेमजाल में फँसाया। वे एक किशोरी थीं — भाषा, मनोविज्ञान, और रिश्तों को ठीक से समझने में असमर्थ — और मात्ज़नेफ़ एक प्रौढ़, प्रसिद्ध, प्रभुत्वशाली पुरुष थे, जो लेखन और यश के बल पर वनेसा को यह यक़ीन दिला सके कि देह का प्रेम ही सच्चा प्रेम है, जबकि वह एक भयावह शोषण था।


वनेसा लिखती हैं :


"लेखन का इस्तेमाल करते हुए, गैब्रियल मात्ज़नेफ़ अपनी शिकार करने की प्रक्रिया को साहित्यिक शोषण के माध्यम से दोगुना कर देता था।"


यह पंक्ति आज के साहित्यिक विवेक पर सीधा प्रहार है।


वनेसा की पुस्तक आते ही फ्रांसीसी समाज में ज़बरदस्त उथल-पुथल मच गई‌ :


• गैब्रियल मात्ज़नेफ़ के सभी प्रकाशकों ने उनसे नाता तोड़ लिया।


• उनकी पेंशन और सरकारी अनुदान रद्द कर दिए गए।


• किताबें बाज़ार से हटा दी गईं।


• उनके ख़िलाफ़ कानूनी जाँच भी हुई, हालाँकि statute of limitations के कारण उन्हें दंड नहीं दिया जा सका।

मात्ज़नेफ़ का साहित्य अब प्रतिबंधित नहीं तो उपेक्षित ज़रूर हो गया है। वे अकेले और लांछित हैं। वहीं वनेसा स्प्रिंगोरा की पुस्तक अब 20 से अधिक भाषाओं में अनूदित हो चुकी है — और उसे समकालीन नारीवादी साहित्य की प्रमुख कृति माना जा रहा है।


यह मामला केवल एक लेखक का व्यक्तिगत अपराध नहीं है। यह उस साहित्यिक और सांस्कृतिक संरचना पर प्रश्नचिन्ह है जिसमें प्रतिष्ठा, प्रतिभा और यश के नाम पर अपराध को छूट दी जाती है।


यह प्रसंग हमें मजबूर करता है कि हम पूछें:


• क्या लेखन की स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि कोई भी विषय — चाहे वह अनैतिक हो या अपराधपूर्ण — "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" बन सकता है?


• क्या साहित्यिक समाज की भूमिका केवल सराहना तक सीमित होनी चाहिए, या उसे नैतिक हस्तक्षेप भी करना चाहिए?


• क्या लेखक की प्रतिष्ठा, उसके कृत्य से बड़ी हो सकती है?


इस पूरे घटनाक्रम में वनेसा स्प्रिंगोरा की भूमिका केवल पीड़िता की नहीं है — वे एक नैतिक चेतना की वाहक बनकर उभरीं। उन्होंने अपने निजी अनुभव को लेखन में ढालकर पूरे समाज को आईना दिखाया।


वनेसा हमें यह याद दिलाती हैं कि चुप्पी, सबसे बड़ा अपराध होती है — और जब एक पीड़िता बोलती है, तो उसका स्वर केवल एक कथा नहीं होता, वह एक क्रांति बन सकता है।


~~~


गैब्रियल मात्ज़नेफ़ ने खुद को बचाने के लिए फिर अपने अंतिम शस्त्र अपनी लेखनी का प्रयोग किया और वनेसा स्प्रिंगोरा को वायरस बताते हुए एक किताब लिखी Vanessavirus जिसे फ्रांस के सभी प्रकाशकों ने प्रकाशित करने से मना कर दिया और अंततः उन्होंने पैसा ख़र्च करके सेल्फ पब्लिशिंग के माध्यम से वह किताब इटली से प्रकाशित करवाई लेकिन फ्रांस के सभी पुस्तक विक्रेताओं ने और पाठकों ने भी उस किताब का पूरी तरह से बहिष्कार कर दिया और आज गैब्रियल मात्ज़नेफ़ साहित्य के अंधकारमय कोनों में खो गए हैं। उनका लिखा हुआ अब ‘साहित्य’ कम उनके अपराधों का ‘सबूत’ अधिक लगता है।



इस प्रस्तुति के लेखक अभिषेक अग्रवाल साहित्य पढ़ने में रुचि रखते हैं। सदानीरा पत्रिका में उनके कुछ अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं।

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