चंद्रेश्वर की कविताएँ
- golchakkarpatrika
- Mar 27
- 4 min read

बैनीआहपीनाला
प्यार का रंग कैसा होता है
क्या ख़ूब गाढ़ा लाल
ओढ़हुल के फूल की तरह
क्या ख़ूब गाढ़ा पीला
सरसों के फूल की तरह
क्या ख़ूब गाढ़ा नीला
अलसी के फूल की तरह
क्या ख़ूब गाढ़ा हरा
पानी की घास की तरह
क्या ख़ूब गाढ़ा कत्थई
पके सेब की तरह
क्या ख़ूब भक्क गोर
चाँद के अंजोरिया की तरह
आख़िर कैसा होता है
रंग प्यार का
क्या रंग प्यार का
बैंगनी होता है
आसमानी होता है
नारंगी होता है
क्या प्यार के रंग में
शामिल नहीं
सारे रंग दुनिया के
इसमें शामिल
रंग गाढ़ा काला
राम और कृष्ण वाला
सूफ़ियों के लबादे वाला
शामिल इसमें
बैनीआहपीनाला ...।
मैंने कभी इज़हार ही नहीं किया
मैंने कई बार चाहा कि लिखूँ
एक प्रेम कविता
लिखने बैठ भी गया
काग़ज़-क़लम लेकर
(ख़ैर! अब तो कंप्यूटर का की-बोर्ड है
जिस पर नचानी हैं हाथों की उँगलियाँ )
पर यक़ीन मानिये आप सब
कि देर तलक सोचता ही रह गया
एक-एक कर आये
पिछले जीवन के जाने कितने प्रसंग
मीठे-तीते
उनमें ही लीन होता गया
शब्द धोखा देकर भाग गए कि
खेलते रहे लुका-छिपी का खेल
मेरे साथ
कह पाना मुश्किल
कुछ भी
मैंने तुम्हारे साथ
कभी ऊबड़-खाबड़ तो
कभी समतल चिकने रास्ते पर
चलते हुए साथ-साथ
अनगिन काँटों को किनारे किया
तो फूल भी रखे चुन-चुनकर
अपनी थैलियों में
हम कई बार प्यासे हिरन और
हिरनी की तरह
दौड़े साथ-साथ
भागे किसी मृग मरीचिका के पीछे
कभी मीठे पानी का स्रोत भी मिला
अचक्के में
उस सुख में सराबोर होना ही चाहे कि
पीछे से ज़ोरदार धक्का मारकर
गिरा दिया दुःख ने
रोज़ सुबह सोकर उठते ही
चूम लेना चाहता हूँ
तुम्हारे होंठ
पर चूम नहीं पाता
उस रोज़ गुड़हल के
लाल-लाल खिले फूल
तोड़ते हुए
सूखी पत्तियाँ आकर
गिर गईं तुम्हारे
माथे पर
चाहकर भी हटा नहीं पाया उन्हें
सच तो ये है कि मैंने कभी इज़हार ही नहीं किया
अपने प्रेम का
संकोच आया आड़े हमेशा ही
अब तो साथ-साथ चलते हुए
मैं-तुम एकमेक होकर
बन गए हैं हम
एक ही नींद है हमारी
हमारा एक ही जागरण
हमारी एक ही कल्पना है और
एक ही स्वप्न
हम जब लड़ते हैं
आपस में तो
जैसे ख़ुद से लड़ते हैं
हम जब मिलते हैं
एक-दूसरे से तो
जैसे ख़ुद से मिलते हैं
जैसे नदी के लिए पानी
जैसे देह के लिए प्राण
वैसे ही हम।
हासिल प्यार
किसी कोशिश में ही
दिखती है
ज़िन्दगी
प्यार बना रहता है
प्यार
जब तक उसे पाने
या हासिल करने की
दिखती है
कोशिश
किसी चीज़ के साथ भी
होता है
यही कि उसे
पाने की कोशिश और
इन्तज़ार में ही
छुपा होता है
आनंद
पाना या हासिल कर लेना
एक क़िस्म का विराम
कि ठहराव ही है
ठहराव या विराम
एक तरह से क़रीब हैं
मृत्यु के।
प्यार
प्यार हमारे जीवन में दिखा नहीं वैसे
जैसे पानी की सतह पर
तैरता दिखता है तीसी का तेल
प्यार हमने वैसे भी नहीं किया
जैसे हिन्दी की बंबइया फ़िल्मों में
करते हैं हीरो-हीरोइन
प्यार की गरमाहट से
भरे रहते थे हम हर वक़्त हर मोड़ पर
ज़िन्दगी को बनाते हुए
कुछ और ख़ूबसूरत
बिना किसी शोर-शराबे के
प्यार हमारे लिए गुलामी नहीं थी
आज़ादी भी नहीं थी ज़रूरत से ज़्यादा
प्यार करते हुए ही बनाया हमने
तिनका-तिनका जोड़कर घोंसला
दाने ले आए दूर देश से
उसके अंदर
हर मौसम का किया मुक़ाबला
साथ-साथ लड़े
हँसे-रोए साथ-साथ
हर मोर्चे पर
कई बार सोचा हमने
अलग होने के बारे में
पर हमेशा लगा कि मुमक़िन नहीं
पानी से मछली का होना
अलग।
आउटर पर खड़ी रेलगाड़ी
मत करना इंतज़ार मेरा
जब करती हो इंतज़ार मेरा
तो उसमें शामिल ख़ालीपन
बनाता है मुझे सफ़र में
कुछ असहज
तुम्हारी विकलता
परेशानी तुम्हारी
बन जाती है मेरी भी
इस रूट पर चलने वाली
किसी सुपरफास्ट रेलगाड़ी का भी
क्या भरोसा
कब कहाँ खड़ी हो जाए
अनिश्चित काल के लिए
पहले से दरवाज़े पर मत होना खड़ा
ठंडे पानी का भरा गिलास लेकर
चूल्हे पर चाय की पतीली
मत चढ़ाना पहले से
पता नहीं, स्टेशन के पहले आउटर पर ही
रुकी रहे रेलगाड़ी सिग्नल के लिए
यहाँ संभव है कुछ भी
हो सकता है शाम की रेलगाड़ी
पहुँचे देर रात मेरे स्टेशन पर
मेरे इंतज़ार में मत रहना तुम
खड़ी पहले से… दरवाज़े पर...।
न हो सामना घटाव से
मैंने प्यार किया है तो घृणा कौन झेलेगा
चुने ख़ूबसूरत फूल मैंने तो उलझेगा गमछा किसका
काँटों से
बनाये अगर मित्र मैंने तो शत्रु कहाँ जायेँगे
सुख ने सींचा है मुझे तो तोड़ा है
बार-बार दुःख ने
मेरे जीवन में शामिल है सोहर तो मर्सिया भी
ऐसे कैसे होगा कि जोड़ता चला जाऊँ
न हो सामना घटाव से
लिया है जन्म तो कैसा डर मृत्यु से।
यही समय होता
परिपक्व होते ही
रंग प्यार का
दिखता ख़ूब गाढ़ा
पके सिंदूरी आम की तरह
यही समय होता पर
उसके बिछुड़ने का भी
डार से।
चंद्रेश्वर वरिष्ठ कवि हैं। हिन्दी-भोजपुरी की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में 1982-83 से कविताओं और लेखों का लगातार प्रकाशन। अब तक आठ पुस्तकें प्रकाशित । तीन कविता संग्रह - 'अब भी' (2010), 'सामने से मेरे' (2017), 'डुमराँव नज़र आयेगा' (2021)। एक शोधालोचना की पुस्तक 'भारत में जन नाट्य आंदोलन'(1994 ) एवं एक साक्षात्कार की पुस्तिका 'इप्टा-आंदोलनः कुछ साक्षात्कार' (1998) का प्रकाशन। भोजपुरी कथेतर गद्य की दो पुस्तकें --'हमार गाँव' (2020), 'आपन आरा' (2023) एवं 'मेरा बलरामपुर' (हिन्दी में कथेतर गद्य, 2021-22 ) का भी प्रकाशन।
सम्मान : भोजपुरी कथेतर गद्य कृति 'हमार गांव' पर सर्वभाषा सम्मान (2024), रेवांत साहित्य गौरव सम्मान (2024)।
ई-मेल : cpandey227@gmail.com
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